"रवि (संगीतकार)": अवतरणों में अंतर
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{{सूचना बक्सा कलाकार | |||
|चित्र=Ravi-Shankar-Sharma.jpg | |||
|चित्र का नाम=रवि | |||
|पूरा नाम=रवि शंकर शर्मा | |||
|प्रसिद्ध नाम= | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[3 मार्च]], [[1926]] | |||
|जन्म भूमि=[[दिल्ली]] | |||
|मृत्यु=[[7 मार्च]], [[2012]] | |||
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] | |||
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|कर्म भूमि=[[भारत]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=भारतीय हिन्दी सिनेमा | |||
|मुख्य रचनाएँ= | |||
|मुख्य फ़िल्में=‘चौदहवीं का चांद’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘गुमराह’, ‘ख़ानदान’, ‘व़क्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘हमराज’, ‘आँखेंं’, ‘नील कमल’, ‘एक फूल दो माली’, ‘निकाह’ आदि। | |||
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|पुरस्कार-उपाधि=फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, [[पद्मश्री]] ([[1971]]), 'लता मंगेशकर पुरस्कार', 'कवि प्रदीप शिखर सम्मान'। | |||
|प्रसिद्धि=फ़िल्म संगीतकार | |||
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|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
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|अन्य जानकारी=रवि की किस्मत का सितारा वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित [[गुरुदत्त]] की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया था। | |||
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'''रवि शंकर शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ravi Shankar Sharma'', जन्म- [[3 मार्च]], [[1926]], [[दिल्ली]]; मृत्यु- [[7 मार्च]], [[2012]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों में प्रसिद्ध संगीतकार थे। बतौर संगीत निर्देशक उन्होंने [[1955]] में फिल्म ‘वचन’ से अपना सफर शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 50 से अधिक फिल्मों में [[संगीत]] दिया। रवि को उन लोगों में माना जाता है, जिन्होंने [[महेन्द्र कपूर]] और [[आशा भोंसले]] को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि हिन्दी फिल्मों के कुल 500 सुपर हिट गीतों को लिया जाए तो उनमें अकेले रवि के 100 से ज्यादा सुपर हिट गीत हैं और बाकी 400 सुपर हिट गीतों में 15 से ज्यादा संगीतकारों के नाम आते हैं। यह भी एक दिलचस्प बात है कि रवि की धुनों में रंगे गीत ब्याह-शादियों में गाए जाने वाले परंपरागत फिल्मी गीतों में सभी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़के दुल्हन ससुराल चली' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसे फिल्मी गीत [[विवाह]] और बैंड बाजे वालों के भी प्रिय गीत हैं। | '''रवि शंकर शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ravi Shankar Sharma'', जन्म- [[3 मार्च]], [[1926]], [[दिल्ली]]; मृत्यु- [[7 मार्च]], [[2012]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों में प्रसिद्ध संगीतकार थे। बतौर संगीत निर्देशक उन्होंने [[1955]] में फिल्म ‘वचन’ से अपना सफर शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 50 से अधिक फिल्मों में [[संगीत]] दिया। रवि को उन लोगों में माना जाता है, जिन्होंने [[महेन्द्र कपूर]] और [[आशा भोंसले]] को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि हिन्दी फिल्मों के कुल 500 सुपर हिट गीतों को लिया जाए तो उनमें अकेले रवि के 100 से ज्यादा सुपर हिट गीत हैं और बाकी 400 सुपर हिट गीतों में 15 से ज्यादा संगीतकारों के नाम आते हैं। यह भी एक दिलचस्प बात है कि रवि की धुनों में रंगे गीत ब्याह-शादियों में गाए जाने वाले परंपरागत फिल्मी गीतों में सभी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़के दुल्हन ससुराल चली' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसे फिल्मी गीत [[विवाह]] और बैंड बाजे वालों के भी प्रिय गीत हैं। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
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रवि जब दिल्ली में रहते थे, तब उनको फिल्म संगीत का बहुत शौक था। वह [[मोहम्मद रफ़ी]] के गानों के शौकीन थे। अपने [[परिवार]] का खर्च चलाने के लिए वह इलेक्ट्रिशियन बन गए थे। सन [[1950]] में वह दिल्ली से मुम्बई रवाना हो गए। मुम्बई में न उनके पास रहने का घर था और न ही हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बीताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदे मातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में- ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर निर्माता एस. डी. नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं। बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। [[दिल्ली]] से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा [[हिन्दी]] फिल्मों का मशहूर संगीत निर्देशक रवि बन गया।<ref>{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2012/03/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%9F-%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE/ |title= सुपर हिट धुनों के संगीतकार थे रवि|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=dainiktribuneonline.com |language= हिंदी}}</ref> | रवि जब दिल्ली में रहते थे, तब उनको फिल्म संगीत का बहुत शौक था। वह [[मोहम्मद रफ़ी]] के गानों के शौकीन थे। अपने [[परिवार]] का खर्च चलाने के लिए वह इलेक्ट्रिशियन बन गए थे। सन [[1950]] में वह दिल्ली से मुम्बई रवाना हो गए। मुम्बई में न उनके पास रहने का घर था और न ही हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बीताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदे मातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में- ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर निर्माता एस. डी. नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं। बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। [[दिल्ली]] से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा [[हिन्दी]] फिल्मों का मशहूर संगीत निर्देशक रवि बन गया।<ref>{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2012/03/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%9F-%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE/ |title= सुपर हिट धुनों के संगीतकार थे रवि|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=dainiktribuneonline.com |language= हिंदी}}</ref> | ||
फिल्म 'नागिन' में रवि ने हेमंत कुमार के सहायक रूप में बहुत मेहनत की थी अौर फिल्म में बीन की धुन बनाई। फिल्म में बीन की धुन उन्होने गीत "मेरा दिल ये पुकारे आजा" से लेकर बनाई थी। इसी बीच रवि की मुलाक़ात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई जो उन दिनों अपनी फ़िल्म 'वचन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल ने रवि की प्रतिभा को पहचान उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर संगीतकार काम करने का मौक़ा दिया। अपनी पहली ही फ़िल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस फिल्म में उन्होने तीन काम किये, पहला संगीत तो दिया ही, साथ ही साथ दो गीत "चंदा मामा दूर के" अौर "एक पैसा दे दे बाबू" की शब्द रचना की। इसके अलावा आशा भोसले के साथ एक युगल गीत "यूँ ही चुपके चुपके बहाने बहाने" को स्वर भी दिया। वर्ष [[1955]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'वचन' में पार्श्वगायिक आशा भोंसले की आवाज में रचा बसा गीत 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए भूर के...' उन दिनों | फिल्म 'नागिन' में रवि ने हेमंत कुमार के सहायक रूप में बहुत मेहनत की थी अौर फिल्म में बीन की धुन बनाई। फिल्म में बीन की धुन उन्होने गीत "मेरा दिल ये पुकारे आजा" से लेकर बनाई थी। इसी बीच रवि की मुलाक़ात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई जो उन दिनों अपनी फ़िल्म 'वचन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल ने रवि की प्रतिभा को पहचान उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर संगीतकार काम करने का मौक़ा दिया। अपनी पहली ही फ़िल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस फिल्म में उन्होने तीन काम किये, पहला संगीत तो दिया ही, साथ ही साथ दो गीत "चंदा मामा दूर के" अौर "एक पैसा दे दे बाबू" की शब्द रचना की। इसके अलावा आशा भोसले के साथ एक युगल गीत "यूँ ही चुपके चुपके बहाने बहाने" को स्वर भी दिया। वर्ष [[1955]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'वचन' में पार्श्वगायिक आशा भोंसले की आवाज में रचा बसा गीत 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए भूर के...' उन दिनों काफ़ी सुपरहिट हुआ और आज भी बच्चों के बीच काफ़ी शिद्धत के साथ सुना जाता है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://sameer-goswami.blogspot.in/2016/02/blog-post_27.html |title= संगीतकार रविशंकर शर्मा यानि रवि|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=sameer-goswami.blogspot.in |language= हिंदी}}</ref> | ||
इसके बाद रवि ने देवेन्द्र गोयल की सारी फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं- 'नई राहें', 'नरसी भगत', 'चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ', 'एक फूल दो माली', 'दस लाख', इन सभी फिल्मों की सफलता के बाद रवि कुछ हद तक फिल्म संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। अपने वजूद को तलाशते रवि को फ़िल्म इंडस्ट्री में सही मुक़ाम पाने के लिए लगभग पांच वर्ष इंतज़ार करना पड़ा था। इस बीच उन्होंने 'अलबेली', 'प्रभु की माया', 'अयोध्यापति', 'देवर भाभी', 'एक साल', 'घर संसार', 'मेंहदी' जैसी कई दोयम दर्जे की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया, लेकिन इनमें से कोई फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई। | इसके बाद रवि ने देवेन्द्र गोयल की सारी फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं- 'नई राहें', 'नरसी भगत', 'चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ', 'एक फूल दो माली', 'दस लाख', इन सभी फिल्मों की सफलता के बाद रवि कुछ हद तक फिल्म संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। अपने वजूद को तलाशते रवि को फ़िल्म इंडस्ट्री में सही मुक़ाम पाने के लिए लगभग पांच वर्ष इंतज़ार करना पड़ा था। इस बीच उन्होंने 'अलबेली', 'प्रभु की माया', 'अयोध्यापति', 'देवर भाभी', 'एक साल', 'घर संसार', 'मेंहदी' जैसी कई दोयम दर्जे की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया, लेकिन इनमें से कोई फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई। | ||
==सफलता== | ==सफलता== | ||
रवि की किस्मत का सितारा वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक [[गुरुदत्त]] की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। संगीत निर्देशन में रवि ने सफलता की बुलंदी को छुआ। उन्होंने अपने कॅरियर में 50 से ज्यादा फिल्में कीं। इनमें से ज्यादातर म्यूजिकल हिट रहीं। उनकी फिल्मों में ‘घर संसार’, ‘मेहंदी’, ‘चिराग़ कहां रोशनी कहां’, ‘नई राहें’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘घूंघट’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘आज और कल’, ‘गुमराह’, ‘गृहस्थी’, ‘काजल’, ‘ख़ानदान’, ‘व़वक्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘सगाई’, ‘हमराज’, | रवि की किस्मत का सितारा वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक [[गुरुदत्त]] की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। संगीत निर्देशन में रवि ने सफलता की बुलंदी को छुआ। उन्होंने अपने कॅरियर में 50 से ज्यादा फिल्में कीं। इनमें से ज्यादातर म्यूजिकल हिट रहीं। उनकी फिल्मों में ‘घर संसार’, ‘मेहंदी’, ‘चिराग़ कहां रोशनी कहां’, ‘नई राहें’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘घूंघट’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘आज और कल’, ‘गुमराह’, ‘गृहस्थी’, ‘काजल’, ‘ख़ानदान’, ‘व़वक्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘सगाई’, ‘हमराज’, ‘आँखेंं’, ‘नील कमल’, ‘बड़ी दीदी’, ‘एक फूल दो माली’, ‘एक महल हो सपनों का’ के नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्म ‘निकाह’ ([[1982]]) थी। इसके सभी गाने सुपर हिट थे। रवि ने [[हिन्दी]] फिल्मों के अलावा करीब 14 [[मलयालम भाषा|मलयालम]] फिल्मों में भी [[संगीत]] दिया।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/news/MH-senior-musician-ravi-passed-away-mumbai-2954004.html |title= ‘लाई है हजारों रंग होली...’ के संगीतकार रवि नहीं रहे!|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhaskar.com |language= हिंदी}}</ref> | ||
====फ़िल्म 'निकाह' का संगीत निर्देशन==== | |||
रवि को अपनी जिन्दगी में कई बार अग्निपरीक्षाओं से गुजरना पड़ा, मगर वह हर बार अपनी परीक्षाओं में खरे उतरे। रवि के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने [[शास्त्रीय संगीत]] की कोई शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर कई सुपर हिट धुनें बनाईं। सही मायने में [[आशा भोंसले]] को जिन गिने-चुने संगीतकारों ने तराशा, उनमें रवि प्रमुख थे। साथ ही [[महेन्द्र कपूर]] जैसे गायक की जिन्दगी तो रवि साहब की धुनों पर गीत गाकर ही बनी। बात सन [[1981]] की है, निर्माता-निर्देशक [[बी. आर. चोपड़ा]] उन दिनों 'निकाह' फ़िल्म बना रहे थे। राज बब्बर, दीपक पाराशर फ़िल्म के हीरो थे और पाकिस्तान से आई सलमा आगा फ़िल्म की हिरोइन थीं। फ़िल्म के संगीतकार के रूप में चोपड़ा साहब ने संगीतकार रवि को लेने का फैसला लिया, क्योंकि रवि पहले भी उनकी 'गुमराह', 'वक्त', 'हमराज', 'धुंध' जैसी कई फ़िल्मों में [[संगीत]] दे चुके थे। मगर उन्हें कुछ लोगों ने समझाया कि यह मुस्लिम पृष्ठभूमि की फ़िल्म है, इसमें नौशाद साहब या कोई और मुस्लिम संगीतकार को लो। रवि मुस्लिम बैकग्राउंड पर बढ़िया धुन नहीं बना पाएंगे। चोपड़ा साहब पहले तो कुछ सोच में पड़ गए, मगर फिर बोले, नहीं हम रवि को ही लेंगे। मुझे उन पर पूरा भरोसा है। 'निकाह' में रवि संगीतकार बन गए और जब सन [[1982]] में यह फ़िल्म आई तो फ़िल्म के सभी गीत सुपर हिट साबित हुए। | |||
====विवाह गीत==== | |||
यह भी एक दिलचस्प बात है कि रवि की धुनों में रंगे गीत ब्याह-शादियों में गाए जाने वाले परंपरागत फ़िल्म गीतों में सभी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़के दुल्हन ससुराल चली' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसे फ़िल्मी गीत शादियों के प्रिय गीत हैं। | |||
==बॉम्बे रवि== | |||
संगीतकार रवि को [[बी. आर. चोपड़ा]] के अलावा [[रामानंद सागर]], एस. डी. नारंग, देवेन्द्र गोयल, नाडियाडवाला, [[गुरुदत्त]] और ओ. पी. नैयर जैसे कई निर्माताओं ने तो लिया ही, दक्षिण के भी कई निर्माता उनके जबरदस्त प्रशंसक थे। जेमिनी फ़िल्म्स की तो अधिकांश [[हिन्दी]] फ़िल्मों में रवि ने संगीत दिया, जिसमें 'घूंघट', 'घराना', 'पैसा या प्यार', 'दो कलियां' और 'समाज को बदल डालो' सुपर हिट फ़िल्में थीं। अपने संगीत से दक्षिण भारतीय मलयाली फ़िल्मों में भी उन्होंने अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि वहां वे '''बॉम्बे रवि''' के नाम से घर-घर में मशहूर ही नहीं हो गए बल्कि दक्षिण के छह सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म संगीकारों में उन्हें गिना जाने लगा। संगीत निर्देशक के रूप में उन्होंने बुलंदी को छुआ और कई ऐसे यादगार गीत दिए, जिन्हें लोग समय की मर्यादा से आगे भी याद रखेंगे। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फ़िल्म 'निकाह' मानी जाती है, जिसके गीत 'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए' को संगीत प्रेमी काफ़ी पसंद करते हैं।<ref name="aa"/> | |||
==प्रसिद्ध गीत== | |||
संगीतकार रवि के द्वारा रची गयी कुछ धुनों के बोल हैं<ref>{{cite web |url=http://www.theindiapost.com/hindi-news/article/great-musician-sun-s-death/ |title=महान संगीतकार रवि का निधन|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=theindiapost.com |language= हिंदी}}</ref>- | |||
#नीले गगन के तले धरती का प्यार पले | |||
#रहा गर्दिशों में हरदम | |||
#बाज़ी किसी ने प्यार की जीती या हार दी | |||
#आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार | |||
#इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ | |||
#चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो | |||
#आज मेरे यार की शादी है | |||
#बाबुल की दुआएं लेती जा | |||
#औलाद वालों फूलो फलो | |||
#तेरी आँख का जो इशारा न होता | |||
#हम भी अगर बच्चे होते नाम हमारा होता बबलू-डबलू | |||
#चंदा मामा दूर के | |||
#आगे भी जाने न तू पीछे भी जाने न तू | |||
#बड़ी देर भाई नंदलाला तेरी राह तके ब्रज बाला | |||
#जय रघुनन्दन जय सिया राम | |||
#तोरा मन दर्पण कहलाये | |||
#दिल में किसी के प्यार का जलया हुआ दिया | |||
#वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे | |||
#‘सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे | |||
#जब चली ठंडी हवा | |||
#बाबुल की दुआएं लेती जा | |||
#तोरा मन दरपन कहलाए | |||
#ये परदा हटा दो | |||
#किसी पत्थर की मूरत से | |||
#आज मेरे यार की शादी है | |||
#बार बार देखो हजार बार देखो | |||
#देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से | |||
#दिल के अरमां आंसुओं में | |||
#हम जब सिमट के आपकी बांहों में आ गए | |||
#इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ | |||
#लो आ गई उनकी याद | |||
==पुरस्कर व सम्मान== | ==पुरस्कर व सम्मान== | ||
संगीतकार रवि ने | संगीतकार रवि को जेमिनी पिक्चर्स की एस. एस. वासन निर्देशित फ़िल्म 'घराना' ([[1961]]) और वासू फ़िल्म्स की ए. भीमसिंह निर्देशित 'खानदान' ([[1965]]) के संगीत निर्देशन के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले। वर्ष [[1971]] में [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[पद्मश्री]] देकर सम्मानित किया। दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के संगीत के लिए भी वहां के राज्य पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा और भी कई पुरस्कार और सम्मान हासिल किए। उनके दो अंतिम उल्लेखनीय सम्मान मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला 'लता मंगेशकर पुरस्कार' और मालवा रंगमंच समिति द्वारा दिया जाने वाला 'कवि प्रदीप शिखर सम्मान' था। | ||
==मृत्यु== | |||
हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त संगीतकार रवि का लम्बी बीमारी के बाद 86 वर्ष की आयु में निधन [[7 मार्च]], [[2012]] को [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ। रवि एक मुकम्मल संगीतकर थे। उनमें [[कविता]] और शायरी की समझ थी। इसीलिए उनके गीत जीवंत बन सके। मेलोडी रचने में तो उनका कोई सानी नहीं था। उनके कम्पोज़ किए गानों में अनोखा ओज था। उनके संगीत निर्देशन में गायक या गायिका की आवाज़ हमेशा एक अनोखे उठान पर रहती थी। फ़िल्मों में उन्होंने [[संगीत]] ही नहीं दिया बल्कि गाने भी लिखे और कुछ गाने गाये भी। उन्होंने ये तीनों किरदार ज़बर्दस्त सफलता से निबाहे। मुम्बई के फ़िल्म उद्योग में उनका कोई गॉडफादर नहीं था। उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया, वह अपनी मेहनत और प्रतिभा के बलबूते पर किया। वे आमतौर पर पहले लिखे हुए गीतों पर धुनें बनाते थे। जीवन की हर परिस्थिति और हर अवसर के लिए रवि ने यादगार गीत कम्पोज़ किए। उनका संगीत लाखों की पसंद बना। | |||
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*[http://cinemageetsangeet.blogspot.in/2014/01/blog-post_21.html संगीतकार रवि के गाये फ़िल्मी गानें] | *[http://cinemageetsangeet.blogspot.in/2014/01/blog-post_21.html संगीतकार रवि के गाये फ़िल्मी गानें] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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05:30, 8 मार्च 2022 के समय का अवतरण
रवि (संगीतकार)
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पूरा नाम | रवि शंकर शर्मा |
जन्म | 3 मार्च, 1926 |
जन्म भूमि | दिल्ली |
मृत्यु | 7 मार्च, 2012 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | ‘चौदहवीं का चांद’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘गुमराह’, ‘ख़ानदान’, ‘व़क्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘हमराज’, ‘आँखेंं’, ‘नील कमल’, ‘एक फूल दो माली’, ‘निकाह’ आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, पद्मश्री (1971), 'लता मंगेशकर पुरस्कार', 'कवि प्रदीप शिखर सम्मान'। |
प्रसिद्धि | फ़िल्म संगीतकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रवि की किस्मत का सितारा वर्ष 1960 में प्रदर्शित गुरुदत्त की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया था। |
अद्यतन | 17:40, 19 मई 2017 (IST)
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रवि शंकर शर्मा (अंग्रेज़ी: Ravi Shankar Sharma, जन्म- 3 मार्च, 1926, दिल्ली; मृत्यु- 7 मार्च, 2012, मुम्बई) हिन्दी फ़िल्मों में प्रसिद्ध संगीतकार थे। बतौर संगीत निर्देशक उन्होंने 1955 में फिल्म ‘वचन’ से अपना सफर शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 50 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया। रवि को उन लोगों में माना जाता है, जिन्होंने महेन्द्र कपूर और आशा भोंसले को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि हिन्दी फिल्मों के कुल 500 सुपर हिट गीतों को लिया जाए तो उनमें अकेले रवि के 100 से ज्यादा सुपर हिट गीत हैं और बाकी 400 सुपर हिट गीतों में 15 से ज्यादा संगीतकारों के नाम आते हैं। यह भी एक दिलचस्प बात है कि रवि की धुनों में रंगे गीत ब्याह-शादियों में गाए जाने वाले परंपरागत फिल्मी गीतों में सभी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़के दुल्हन ससुराल चली' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसे फिल्मी गीत विवाह और बैंड बाजे वालों के भी प्रिय गीत हैं।
परिचय
भारतीय हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त संगीतकार रवि का जन्म 3 मार्च सन 1926 को दिल्ली में हुआ था। उनका पूरा नाम रवि शंकर शर्मा था। रवि ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, हालांकि उनकी दिली तमन्ना पार्श्व गायक बनने की थी। इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करते हुए रवि ने हारमोनियम बजाना और गाना सीखा। इसके बाद सन 1950 में वह मुंबई आ गए। संगीतकार हेमंत कुमार ने सबसे पहले उन्हें 1952 में फ़िल्म 'आनंद मठ' में ‘वंदे मातरम्’ गीत के लिए संगीत देने का मौका दिया।[1]
फ़िल्मी सफर
रवि जब दिल्ली में रहते थे, तब उनको फिल्म संगीत का बहुत शौक था। वह मोहम्मद रफ़ी के गानों के शौकीन थे। अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए वह इलेक्ट्रिशियन बन गए थे। सन 1950 में वह दिल्ली से मुम्बई रवाना हो गए। मुम्बई में न उनके पास रहने का घर था और न ही हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बीताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदे मातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में- ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर निर्माता एस. डी. नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं। बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिल्ली से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा हिन्दी फिल्मों का मशहूर संगीत निर्देशक रवि बन गया।[2]
फिल्म 'नागिन' में रवि ने हेमंत कुमार के सहायक रूप में बहुत मेहनत की थी अौर फिल्म में बीन की धुन बनाई। फिल्म में बीन की धुन उन्होने गीत "मेरा दिल ये पुकारे आजा" से लेकर बनाई थी। इसी बीच रवि की मुलाक़ात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई जो उन दिनों अपनी फ़िल्म 'वचन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल ने रवि की प्रतिभा को पहचान उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर संगीतकार काम करने का मौक़ा दिया। अपनी पहली ही फ़िल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस फिल्म में उन्होने तीन काम किये, पहला संगीत तो दिया ही, साथ ही साथ दो गीत "चंदा मामा दूर के" अौर "एक पैसा दे दे बाबू" की शब्द रचना की। इसके अलावा आशा भोसले के साथ एक युगल गीत "यूँ ही चुपके चुपके बहाने बहाने" को स्वर भी दिया। वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म 'वचन' में पार्श्वगायिक आशा भोंसले की आवाज में रचा बसा गीत 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए भूर के...' उन दिनों काफ़ी सुपरहिट हुआ और आज भी बच्चों के बीच काफ़ी शिद्धत के साथ सुना जाता है।[3]
इसके बाद रवि ने देवेन्द्र गोयल की सारी फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं- 'नई राहें', 'नरसी भगत', 'चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ', 'एक फूल दो माली', 'दस लाख', इन सभी फिल्मों की सफलता के बाद रवि कुछ हद तक फिल्म संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। अपने वजूद को तलाशते रवि को फ़िल्म इंडस्ट्री में सही मुक़ाम पाने के लिए लगभग पांच वर्ष इंतज़ार करना पड़ा था। इस बीच उन्होंने 'अलबेली', 'प्रभु की माया', 'अयोध्यापति', 'देवर भाभी', 'एक साल', 'घर संसार', 'मेंहदी' जैसी कई दोयम दर्जे की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया, लेकिन इनमें से कोई फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई।
सफलता
रवि की किस्मत का सितारा वर्ष 1960 में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक गुरुदत्त की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। संगीत निर्देशन में रवि ने सफलता की बुलंदी को छुआ। उन्होंने अपने कॅरियर में 50 से ज्यादा फिल्में कीं। इनमें से ज्यादातर म्यूजिकल हिट रहीं। उनकी फिल्मों में ‘घर संसार’, ‘मेहंदी’, ‘चिराग़ कहां रोशनी कहां’, ‘नई राहें’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘घूंघट’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘आज और कल’, ‘गुमराह’, ‘गृहस्थी’, ‘काजल’, ‘ख़ानदान’, ‘व़वक्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘सगाई’, ‘हमराज’, ‘आँखेंं’, ‘नील कमल’, ‘बड़ी दीदी’, ‘एक फूल दो माली’, ‘एक महल हो सपनों का’ के नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्म ‘निकाह’ (1982) थी। इसके सभी गाने सुपर हिट थे। रवि ने हिन्दी फिल्मों के अलावा करीब 14 मलयालम फिल्मों में भी संगीत दिया।[4]
फ़िल्म 'निकाह' का संगीत निर्देशन
रवि को अपनी जिन्दगी में कई बार अग्निपरीक्षाओं से गुजरना पड़ा, मगर वह हर बार अपनी परीक्षाओं में खरे उतरे। रवि के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर कई सुपर हिट धुनें बनाईं। सही मायने में आशा भोंसले को जिन गिने-चुने संगीतकारों ने तराशा, उनमें रवि प्रमुख थे। साथ ही महेन्द्र कपूर जैसे गायक की जिन्दगी तो रवि साहब की धुनों पर गीत गाकर ही बनी। बात सन 1981 की है, निर्माता-निर्देशक बी. आर. चोपड़ा उन दिनों 'निकाह' फ़िल्म बना रहे थे। राज बब्बर, दीपक पाराशर फ़िल्म के हीरो थे और पाकिस्तान से आई सलमा आगा फ़िल्म की हिरोइन थीं। फ़िल्म के संगीतकार के रूप में चोपड़ा साहब ने संगीतकार रवि को लेने का फैसला लिया, क्योंकि रवि पहले भी उनकी 'गुमराह', 'वक्त', 'हमराज', 'धुंध' जैसी कई फ़िल्मों में संगीत दे चुके थे। मगर उन्हें कुछ लोगों ने समझाया कि यह मुस्लिम पृष्ठभूमि की फ़िल्म है, इसमें नौशाद साहब या कोई और मुस्लिम संगीतकार को लो। रवि मुस्लिम बैकग्राउंड पर बढ़िया धुन नहीं बना पाएंगे। चोपड़ा साहब पहले तो कुछ सोच में पड़ गए, मगर फिर बोले, नहीं हम रवि को ही लेंगे। मुझे उन पर पूरा भरोसा है। 'निकाह' में रवि संगीतकार बन गए और जब सन 1982 में यह फ़िल्म आई तो फ़िल्म के सभी गीत सुपर हिट साबित हुए।
विवाह गीत
यह भी एक दिलचस्प बात है कि रवि की धुनों में रंगे गीत ब्याह-शादियों में गाए जाने वाले परंपरागत फ़िल्म गीतों में सभी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़के दुल्हन ससुराल चली' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसे फ़िल्मी गीत शादियों के प्रिय गीत हैं।
बॉम्बे रवि
संगीतकार रवि को बी. आर. चोपड़ा के अलावा रामानंद सागर, एस. डी. नारंग, देवेन्द्र गोयल, नाडियाडवाला, गुरुदत्त और ओ. पी. नैयर जैसे कई निर्माताओं ने तो लिया ही, दक्षिण के भी कई निर्माता उनके जबरदस्त प्रशंसक थे। जेमिनी फ़िल्म्स की तो अधिकांश हिन्दी फ़िल्मों में रवि ने संगीत दिया, जिसमें 'घूंघट', 'घराना', 'पैसा या प्यार', 'दो कलियां' और 'समाज को बदल डालो' सुपर हिट फ़िल्में थीं। अपने संगीत से दक्षिण भारतीय मलयाली फ़िल्मों में भी उन्होंने अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि वहां वे बॉम्बे रवि के नाम से घर-घर में मशहूर ही नहीं हो गए बल्कि दक्षिण के छह सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म संगीकारों में उन्हें गिना जाने लगा। संगीत निर्देशक के रूप में उन्होंने बुलंदी को छुआ और कई ऐसे यादगार गीत दिए, जिन्हें लोग समय की मर्यादा से आगे भी याद रखेंगे। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फ़िल्म 'निकाह' मानी जाती है, जिसके गीत 'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए' को संगीत प्रेमी काफ़ी पसंद करते हैं।[3]
प्रसिद्ध गीत
संगीतकार रवि के द्वारा रची गयी कुछ धुनों के बोल हैं[5]-
- नीले गगन के तले धरती का प्यार पले
- रहा गर्दिशों में हरदम
- बाज़ी किसी ने प्यार की जीती या हार दी
- आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार
- इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
- चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो
- आज मेरे यार की शादी है
- बाबुल की दुआएं लेती जा
- औलाद वालों फूलो फलो
- तेरी आँख का जो इशारा न होता
- हम भी अगर बच्चे होते नाम हमारा होता बबलू-डबलू
- चंदा मामा दूर के
- आगे भी जाने न तू पीछे भी जाने न तू
- बड़ी देर भाई नंदलाला तेरी राह तके ब्रज बाला
- जय रघुनन्दन जय सिया राम
- तोरा मन दर्पण कहलाये
- दिल में किसी के प्यार का जलया हुआ दिया
- वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे
- ‘सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे
- जब चली ठंडी हवा
- बाबुल की दुआएं लेती जा
- तोरा मन दरपन कहलाए
- ये परदा हटा दो
- किसी पत्थर की मूरत से
- आज मेरे यार की शादी है
- बार बार देखो हजार बार देखो
- देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से
- दिल के अरमां आंसुओं में
- हम जब सिमट के आपकी बांहों में आ गए
- इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
- लो आ गई उनकी याद
पुरस्कर व सम्मान
संगीतकार रवि को जेमिनी पिक्चर्स की एस. एस. वासन निर्देशित फ़िल्म 'घराना' (1961) और वासू फ़िल्म्स की ए. भीमसिंह निर्देशित 'खानदान' (1965) के संगीत निर्देशन के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले। वर्ष 1971 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री देकर सम्मानित किया। दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के संगीत के लिए भी वहां के राज्य पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा और भी कई पुरस्कार और सम्मान हासिल किए। उनके दो अंतिम उल्लेखनीय सम्मान मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला 'लता मंगेशकर पुरस्कार' और मालवा रंगमंच समिति द्वारा दिया जाने वाला 'कवि प्रदीप शिखर सम्मान' था।
मृत्यु
हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त संगीतकार रवि का लम्बी बीमारी के बाद 86 वर्ष की आयु में निधन 7 मार्च, 2012 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ। रवि एक मुकम्मल संगीतकर थे। उनमें कविता और शायरी की समझ थी। इसीलिए उनके गीत जीवंत बन सके। मेलोडी रचने में तो उनका कोई सानी नहीं था। उनके कम्पोज़ किए गानों में अनोखा ओज था। उनके संगीत निर्देशन में गायक या गायिका की आवाज़ हमेशा एक अनोखे उठान पर रहती थी। फ़िल्मों में उन्होंने संगीत ही नहीं दिया बल्कि गाने भी लिखे और कुछ गाने गाये भी। उन्होंने ये तीनों किरदार ज़बर्दस्त सफलता से निबाहे। मुम्बई के फ़िल्म उद्योग में उनका कोई गॉडफादर नहीं था। उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया, वह अपनी मेहनत और प्रतिभा के बलबूते पर किया। वे आमतौर पर पहले लिखे हुए गीतों पर धुनें बनाते थे। जीवन की हर परिस्थिति और हर अवसर के लिए रवि ने यादगार गीत कम्पोज़ किए। उनका संगीत लाखों की पसंद बना।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संगीतकार रवि ने होली से पहले दुनिया को कहा अलविदा (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
- ↑ सुपर हिट धुनों के संगीतकार थे रवि (हिंदी) dainiktribuneonline.com। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
- ↑ 3.0 3.1 संगीतकार रविशंकर शर्मा यानि रवि (हिंदी) sameer-goswami.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
- ↑ ‘लाई है हजारों रंग होली...’ के संगीतकार रवि नहीं रहे! (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
- ↑ महान संगीतकार रवि का निधन (हिंदी) theindiapost.com। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।