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अभिनेत्री शकीला का | [[हिन्दी सिनेमा]] की प्रसिद्ध अभिनेत्री [[शकीला]] की छोटी बहन नूर भी अभिनेत्री थीं। उनकी सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) साधारण गृहणी थीं। शकीला जी के पिता का जल्द ही निधन हो गया था, उनकी बुआ फ़िरोज़ा बेगम ने उनका तथा बहनों का पालन-पोषण किया था। | ||
==परिचय== | |||
अभिनेत्री शकीला का वास्तविक नाम 'बादशाहजहाँ' था। शकीला जी के अनुसार- "मेरे पूर्वज [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[ईरान]] के शाही खानदान से ताल्लुक रखते थे। मेरा जन्म 1 जनवरी, 1936 को मध्यपूर्व में हुआ था। राजगद्दी पर कब्ज़े के खानदानी झगड़ों में मेरे दादा-दादी और मां मारे गए थे। मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी थी और हम तीनों बच्चियों को साथ लेकर मेरे पिता और बुआ जान बचाकर [[मुम्बई]] भाग आए थे। उस वक़्त मैं क़रीब 4 साल की थी।" | |||
शकीला जी के | शकीला जी के मुताबिक़ उनके पिता भी बहुत जल्द गुज़र गए थे। उनकी बुआ फ़िरोज़ा बेगम का रिश्ता शहज़ाद नाम के जिस युवक से हुआ था, वह भी नवाब खानदान के थे। लेकिन [[विवाह|शादी]] होने से पहले ही [[लन्दन]] में [[क्रिकेट]] खेलते समय उनका निधन हो गया था। ऐसे में बुआ ने ज़िंदगी भर अविवाहित रहने का फ़ैसला कर लिया। तीनों अनाथ भतीजियों का पालन पोषण बुआ ने ही किया। इन तीनों की पढ़ाई-लिखाई भी घर पर ही हुई।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2016/03/dil-ko-laakh-sambhala-ji-shakila.html |title=शकीला |accessmonthday=23 जून|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> | ||
==फ़िल्मी शुरुआत== | |||
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शकीला जी के अनुसार- "बुआ को फिल्में देखने का बहुत शौक़ था। वह मुझे साथ लेकर फ़िल्म देखने जाती थीं। ऐसे में मेरा रूझान भी फ़िल्मों की ओर होने लगा। कारदार और महबूब के साथ हमारे पारिवारिक सम्बन्ध थे। [[ईद]] पर हमारा मिलना-जुलना और एक-दूसरे के घर आना-जाना होता ही था। कारदार ने ही मुझे फ़िल्म ‘दास्तान’ में एक 13-14 साल की लड़की का रोल करने को कहा था और इस तरह साल [[1950]] में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘दास्तान’ से मेरे अभिनय कॅरियर की शुरुआत हुई। इसी फिल्म में मुझे मेरे असली नाम 'बादशाहजहां' की जगह ये फ़िल्मी नाम 'शकीला' मिला था।" | शकीला जी के अनुसार- "बुआ को फिल्में देखने का बहुत शौक़ था। वह मुझे साथ लेकर फ़िल्म देखने जाती थीं। ऐसे में मेरा रूझान भी फ़िल्मों की ओर होने लगा। कारदार और महबूब के साथ हमारे पारिवारिक सम्बन्ध थे। [[ईद]] पर हमारा मिलना-जुलना और एक-दूसरे के घर आना-जाना होता ही था। कारदार ने ही मुझे फ़िल्म ‘दास्तान’ में एक 13-14 साल की लड़की का रोल करने को कहा था और इस तरह साल [[1950]] में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘दास्तान’ से मेरे अभिनय कॅरियर की शुरुआत हुई। इसी फिल्म में मुझे मेरे असली नाम 'बादशाहजहां' की जगह ये फ़िल्मी नाम 'शकीला' मिला था।" | ||
==विवाह== | |||
शकीला जी के अनुसार- "साल [[1966]] में मेरी [[विवाह|शादी]] हुई। मेरे शौहर [[अफ़ग़ानिस्तान]] के रहने वाले थे और [[भारत]] में अफ़ग़ानिस्तान के ‘कांसुलेट जनरल’ थे। शादी के बाद मैं शौहर के साथ [[जर्मनी]] चली गयी। क़रीब 25 साल मैंने जर्मनी और [[अमेरिका]] में बिताए। बीचबीच में मैं भारत आती-जाती रहती थी जहां मेरा घर था, मेरी बहनें रहती थीं। फिर निजी वजहों से एक रोज़ मैं हमेशा के लिए भारत वापस लौट आयी।" | शकीला जी के अनुसार- "साल [[1966]] में मेरी [[विवाह|शादी]] हुई। मेरे शौहर [[अफ़ग़ानिस्तान]] के रहने वाले थे और [[भारत]] में अफ़ग़ानिस्तान के ‘कांसुलेट जनरल’ थे। शादी के बाद मैं शौहर के साथ [[जर्मनी]] चली गयी। क़रीब 25 साल मैंने जर्मनी और [[अमेरिका]] में बिताए। बीचबीच में मैं भारत आती-जाती रहती थी, जहां मेरा घर था, मेरी बहनें रहती थीं। फिर निजी वजहों से एक रोज़ मैं हमेशा के लिए भारत वापस लौट आयी।" | ||
तीनों बहनों में शकीला जी से छोटी नूर भी अभिनेत्री थीं। ‘अनमोल घड़ी’ ([[1946]]) और ‘दर्द’ ([[1947]]) जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के बाद वह ‘[[दो बीघा ज़मीन]]’, ‘अलिफ़ लैला’ (दोनों [[1953]]), ‘नौकरी’ और ‘आरपार’ (दोनों [[1954]]) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। [[1955]] में हास्य कलाकार [[जॉनी वॉकर]] से शादी करने के बाद उन्होंने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था। शकीला जी की सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) एक गृहिणी हैं। नूर और नसरीन भी मुम्बई में ही रहती हैं। शकीला जी को फिल्मों से अलग हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन बीते दौर की अभिनेत्रियों [[जबीन जलील|जबीन]], [[श्यामा]], [[अज़रा]], [[वहीदा रहमान]] और (स्वर्गीय) [[नंदा]] से उनकी दोस्ती हमेशा बनी रही। | तीनों बहनों में शकीला जी से छोटी नूर भी अभिनेत्री थीं। ‘अनमोल घड़ी’ ([[1946]]) और ‘दर्द’ ([[1947]]) जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के बाद वह ‘[[दो बीघा ज़मीन]]’, ‘अलिफ़ लैला’ (दोनों [[1953]]), ‘नौकरी’ और ‘आरपार’ (दोनों [[1954]]) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। [[1955]] में हास्य कलाकार [[जॉनी वॉकर]] से शादी करने के बाद उन्होंने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था। शकीला जी की सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) एक गृहिणी हैं। नूर और नसरीन भी मुम्बई में ही रहती हैं। शकीला जी को फिल्मों से अलग हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन बीते दौर की अभिनेत्रियों [[जबीन जलील|जबीन]], [[श्यामा]], [[अज़रा]], [[वहीदा रहमान]] और (स्वर्गीय) [[नंदा]] से उनकी दोस्ती हमेशा बनी रही। | ||
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शकीला का परिचय
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पूरा नाम | बादशाहजहाँ |
प्रसिद्ध नाम | शकीला |
जन्म | 1 जनवरी, 1936 |
मृत्यु | 20 सितम्बर, 2017 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'चाईना टाउन', 'आरपार', 'सीआईडी', 'दो बीघा ज़मीन', 'अलिफ़ लैला', 'झांसी की रानी', 'हातिमताई', 'अब्दुल्ला' तथा 'काली टोपी लाल रूमाल' आदि। |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शकीला जी को असली पहचान 1954 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक गुरु दत्त थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार ओ.पी. नैयर को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। |
बाहरी कड़ियाँ | 15:21, 23 जून 2017 (IST)
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हिन्दी सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री शकीला की छोटी बहन नूर भी अभिनेत्री थीं। उनकी सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) साधारण गृहणी थीं। शकीला जी के पिता का जल्द ही निधन हो गया था, उनकी बुआ फ़िरोज़ा बेगम ने उनका तथा बहनों का पालन-पोषण किया था।
परिचय
अभिनेत्री शकीला का वास्तविक नाम 'बादशाहजहाँ' था। शकीला जी के अनुसार- "मेरे पूर्वज अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के शाही खानदान से ताल्लुक रखते थे। मेरा जन्म 1 जनवरी, 1936 को मध्यपूर्व में हुआ था। राजगद्दी पर कब्ज़े के खानदानी झगड़ों में मेरे दादा-दादी और मां मारे गए थे। मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी थी और हम तीनों बच्चियों को साथ लेकर मेरे पिता और बुआ जान बचाकर मुम्बई भाग आए थे। उस वक़्त मैं क़रीब 4 साल की थी।"
शकीला जी के मुताबिक़ उनके पिता भी बहुत जल्द गुज़र गए थे। उनकी बुआ फ़िरोज़ा बेगम का रिश्ता शहज़ाद नाम के जिस युवक से हुआ था, वह भी नवाब खानदान के थे। लेकिन शादी होने से पहले ही लन्दन में क्रिकेट खेलते समय उनका निधन हो गया था। ऐसे में बुआ ने ज़िंदगी भर अविवाहित रहने का फ़ैसला कर लिया। तीनों अनाथ भतीजियों का पालन पोषण बुआ ने ही किया। इन तीनों की पढ़ाई-लिखाई भी घर पर ही हुई।[1]
फ़िल्मी शुरुआत
शकीला जी के अनुसार- "बुआ को फिल्में देखने का बहुत शौक़ था। वह मुझे साथ लेकर फ़िल्म देखने जाती थीं। ऐसे में मेरा रूझान भी फ़िल्मों की ओर होने लगा। कारदार और महबूब के साथ हमारे पारिवारिक सम्बन्ध थे। ईद पर हमारा मिलना-जुलना और एक-दूसरे के घर आना-जाना होता ही था। कारदार ने ही मुझे फ़िल्म ‘दास्तान’ में एक 13-14 साल की लड़की का रोल करने को कहा था और इस तरह साल 1950 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘दास्तान’ से मेरे अभिनय कॅरियर की शुरुआत हुई। इसी फिल्म में मुझे मेरे असली नाम 'बादशाहजहां' की जगह ये फ़िल्मी नाम 'शकीला' मिला था।"
विवाह
शकीला जी के अनुसार- "साल 1966 में मेरी शादी हुई। मेरे शौहर अफ़ग़ानिस्तान के रहने वाले थे और भारत में अफ़ग़ानिस्तान के ‘कांसुलेट जनरल’ थे। शादी के बाद मैं शौहर के साथ जर्मनी चली गयी। क़रीब 25 साल मैंने जर्मनी और अमेरिका में बिताए। बीचबीच में मैं भारत आती-जाती रहती थी, जहां मेरा घर था, मेरी बहनें रहती थीं। फिर निजी वजहों से एक रोज़ मैं हमेशा के लिए भारत वापस लौट आयी।"
तीनों बहनों में शकीला जी से छोटी नूर भी अभिनेत्री थीं। ‘अनमोल घड़ी’ (1946) और ‘दर्द’ (1947) जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के बाद वह ‘दो बीघा ज़मीन’, ‘अलिफ़ लैला’ (दोनों 1953), ‘नौकरी’ और ‘आरपार’ (दोनों 1954) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। 1955 में हास्य कलाकार जॉनी वॉकर से शादी करने के बाद उन्होंने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था। शकीला जी की सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) एक गृहिणी हैं। नूर और नसरीन भी मुम्बई में ही रहती हैं। शकीला जी को फिल्मों से अलग हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन बीते दौर की अभिनेत्रियों जबीन, श्यामा, अज़रा, वहीदा रहमान और (स्वर्गीय) नंदा से उनकी दोस्ती हमेशा बनी रही।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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