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'''[[मौर्य काल]]''' (322-185 ईसा पूर्व) [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में अति महत्त्वपूर्व स्थान रखता है। ईसा पूर्व 326 में [[सिकन्दर]] की सेनाएँ [[पंजाब]] के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। [[मध्य प्रदेश]] और [[बिहार]] में [[नंद वंश]] का राजा [[धनानंद|धननंद]] शासन कर रहा था। [[सिकन्दर]] के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं। [[मगध]] के शासक के पास विशाल सेना अवश्य थी, किन्तु जनता का सहयोग उसे प्राप्त नहीं था। प्रजा उसके अत्याचारों से पीड़ित थी। असह्य कर-भार के कारण राज्य के लोग उससे असंतुष्ट थे। देश को इस समय एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो [[मगध साम्राज्य]] की रक्षा तथा वृद्धि कर सके। [[मौर्यकालीन विदेशी आक्रमण|विदेशी आक्रमण]] से उत्पन्न संकट को दूर करे और देश के विभिन्न भागों को एक शासन-सूत्र में बाँधकर चक्रवर्ती सम्राट के आदर्श को चरितार्थ करे। शीघ्र ही राजनीतिक मंच पर एक ऐसा व्यक्ति प्रकट भी हुआ। इस व्यक्ति का नाम था- '[[चंद्रगुप्त मौर्य]]'। चंद्रगुप्त की मृत्यु के | '''[[मौर्य काल]]''' (322-185 ईसा पूर्व) [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में अति महत्त्वपूर्व स्थान रखता है। ईसा पूर्व 326 में [[सिकन्दर]] की सेनाएँ [[पंजाब]] के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। [[मध्य प्रदेश]] और [[बिहार]] में [[नंद वंश]] का राजा [[धनानंद|धननंद]] शासन कर रहा था। [[सिकन्दर]] के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं। [[मगध]] के शासक के पास विशाल सेना अवश्य थी, किन्तु जनता का सहयोग उसे प्राप्त नहीं था। प्रजा उसके अत्याचारों से पीड़ित थी। असह्य कर-भार के कारण राज्य के लोग उससे असंतुष्ट थे। देश को इस समय एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो [[मगध साम्राज्य]] की रक्षा तथा वृद्धि कर सके। [[मौर्यकालीन विदेशी आक्रमण|विदेशी आक्रमण]] से उत्पन्न संकट को दूर करे और देश के विभिन्न भागों को एक शासन-सूत्र में बाँधकर चक्रवर्ती सम्राट के आदर्श को चरितार्थ करे। शीघ्र ही राजनीतिक मंच पर एक ऐसा व्यक्ति प्रकट भी हुआ। इस व्यक्ति का नाम था- '[[चंद्रगुप्त मौर्य]]'। चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र '[[बिन्दुसार]]' सम्राट बना। बिन्दुसार का पुत्र था '[[अशोक|अशोक महान]]' जिसका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। [[मौर्य काल|... और पढ़ें]] | ||
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'''[[रक्षाबन्धन]]''' [[श्रावण]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] को पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार है। सावन में मनाए जाने के कारण इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैं। रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) | '''[[रक्षाबन्धन]]''' [[श्रावण]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] को पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार है। सावन में मनाए जाने के कारण इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैं। रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात् किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। मध्यकालीन इतिहास में [[चित्तौड़]] की हिन्दू [[रानी कर्णावती]] ने [[दिल्ली]] के [[मुग़ल]] बादशाह [[हुमायूँ]] को अपना भाई मानकर उसके पास [[राखी]] भेजी थी। हुमायूँ ने उसकी राखी स्वीकार कर ली और उसके सम्मान की रक्षा के लिए [[गुजरात]] के बादशाह [[बहादुर शाह (गुजरात का सुल्तान)|बहादुरशाह]] से युद्ध किया। [[रक्षाबन्धन|... और पढ़ें]] | ||
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'''[[बसंत पंचमी]]''' प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है। इस दिन विद्या की [[सरस्वती|देवी सरस्वती]] की [[पूजा]] की जाती है। यह पूजा सम्पूर्ण [[भारत]] में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियाँ [[पीला रंग|पीले]] वस्त्र धारण करती हैं। बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। बसंत को 'ऋतुओं का राजा' | '''[[बसंत पंचमी]]''' प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है। इस दिन विद्या की [[सरस्वती|देवी सरस्वती]] की [[पूजा]] की जाती है। यह पूजा सम्पूर्ण [[भारत]] में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियाँ [[पीला रंग|पीले]] वस्त्र धारण करती हैं। बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। बसंत को 'ऋतुओं का राजा' अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। बसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। इस दिन विशेषकर मीठा चावल बनाया जाता है जिसमें बादाम, किशमिश, काजू आदि डालकर [[खीर]] आदि विशेष व्यंजन बनाये जाते हैं। [[बसंत पंचमी|... और पढ़ें]] | ||
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07:49, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
मुखपृष्ठ पर चयनित आलेखों की सूची
रसखान की भाषा सोलहवीं शताब्दी में ब्रजभाषा के साहित्यिक आसन पर प्रतिष्ठित हो चुकी थी। भक्त-कवि सूरदास इसे सार्वदेशिक काव्य भाषा बना चुके थे किन्तु उनकी शक्ति भाषा सौष्ठव की अपेक्षा भाव द्योतन में अधिक रमी। इसीलिए बाबू जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ब्रजभाषा का व्याकरण बनाते समय रसखान, बिहारी लाल और घनानन्द के काव्याध्ययन को सूरदास से अधिक महत्त्व देते हैं। रसखान को 'रस की ख़ान' कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रद्धालु हैं। रसखान की भाषा की विशेषता उसकी स्वाभाविकता है। उन्होंने ब्रजभाषा के साथ खिलवाड़ न कर उसके मधुर, सहज एवं स्वाभाविक रूप को अपनाया। साथ ही बोलचाल के शब्दों को साहित्यिक शब्दावली के निकट लाने का सफल प्रयास किया। ... और पढ़ें |
मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) भारत के इतिहास में अति महत्त्वपूर्व स्थान रखता है। ईसा पूर्व 326 में सिकन्दर की सेनाएँ पंजाब के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। मध्य प्रदेश और बिहार में नंद वंश का राजा धननंद शासन कर रहा था। सिकन्दर के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं। मगध के शासक के पास विशाल सेना अवश्य थी, किन्तु जनता का सहयोग उसे प्राप्त नहीं था। प्रजा उसके अत्याचारों से पीड़ित थी। असह्य कर-भार के कारण राज्य के लोग उससे असंतुष्ट थे। देश को इस समय एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो मगध साम्राज्य की रक्षा तथा वृद्धि कर सके। विदेशी आक्रमण से उत्पन्न संकट को दूर करे और देश के विभिन्न भागों को एक शासन-सूत्र में बाँधकर चक्रवर्ती सम्राट के आदर्श को चरितार्थ करे। शीघ्र ही राजनीतिक मंच पर एक ऐसा व्यक्ति प्रकट भी हुआ। इस व्यक्ति का नाम था- 'चंद्रगुप्त मौर्य'। चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र 'बिन्दुसार' सम्राट बना। बिन्दुसार का पुत्र था 'अशोक महान' जिसका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। ... और पढ़ें |
होली भारत का प्रमुख त्योहार है। पुराणों में वर्णित है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि स्नान करती थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। इस पर्व को 'नवान्नेष्टि यज्ञपर्व' भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इस दिन यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को 'होला' कहते है। इसी से इसका नाम 'होलिकोत्सव' पड़ा। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। ... और पढ़ें |
विमुद्रीकरण एक आर्थिक गतिविधि है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर नई मुद्रा को प्रचलित करती है। जब देश में काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। भारत की आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में जनवरी 1978 में ₹1000, ₹5000 और ₹10000 के नोट को पहली बार विमुद्रीकृत किया गया। 8 नवंबर, 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ₹500 और ₹1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की। भारत में मुद्रा संबंधी कार्य भारतीय रिज़र्व बैंक संभालती है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेती है। ... और पढ़ें |
भारतीय संस्कृति भारत के विस्तृत इतिहास, साहित्य, विलक्षण भूगोल, विभिन्न धर्मों तथा उनकी परम्पराओं का सम्मिश्रण है। भारतीय संस्कृति को 'देव संस्कृति' कहकर भी सम्मानित किया गया है। भारत के निवासी और उनकी जीवन शैलियाँ, उनके नृत्य और संगीत शैलियाँ, कला और हस्तकला जैसे अन्य अनेक विधाएँ भारतीय संस्कृति और विरासत के विभिन्न वर्णों को प्रस्तुत करती हैं, जो देश की राष्ट्रीयता का सच्चा चित्र प्रस्तुत करते हैं। भारतीय संस्कृति विश्व की प्रधान संस्कृति है, यह कोई गर्वोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविकता है। हज़ारों वर्षों से भारत की सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं, रीति-रिवाज़ों आदि में विविधता बनी रही है जो कि आज भी विद्यमान है और यही अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की महान् विशेषता है। ... और पढ़ें |
स्वतंत्रता दिवस एक ऐसा दिन है जब हम अपने महान् राष्ट्रीय नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्यौछावर कर दिए। मई 1857 में दिल्ली के कुछ समाचार पत्रों में यह भविष्यवाणी छपी कि प्लासी के युद्ध के पश्चात् 23 जून 1757 ई. को भारत में जो अंग्रेज़ी राज्य स्थापित हुआ था वह 23 जून 1857 ई. तक समाप्त हो जाएगा। यह भविष्यवाणी सारे देश में फैल गई और लोगों में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जोश की लहर दौड़ गई। 14 अगस्त, 1947 को रात को 11 बजे संघटक सभा द्वारा भारत की स्वतंत्रता को मनाने की एक बैठक आरंभ हुई, जिसमें अधिकार प्रदान किए जा रहे थे। जैसे ही घड़ी में रात के 12 बजे भारत को आज़ादी मिल गई और भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को भारतीय प्रधानमंत्री प्रातः 7 बजे लाल क़िले पर झण्डा लहराते हैं और अपने देशवासियों को अपने देश की नीति पर भाषण देते हैं। ... और पढ़ें |
भारतीय क्रांति दिवस प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन 'अगस्त क्रांति दिवस' के रूप में भी जाना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बावज़ूद जब अंग्रेज़ भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में आज़ादी की अंतिम जंग का ऐलान कर दिया जिससे ब्रितानिया हुक़ूमत में दहशत फैल गई। 9 अगस्त, सन् 1942 में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, इसीलिए 9 अगस्त के दिन को इतिहास में अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। यह आंदोलन मुम्बई के जिस पार्क से शुरू हुआ उसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है। गाँधीजी ने अहिंसक रूप से आंदोलन चलाने का आह्वान किया था लेकिन अंग्रेज़ों को भगाने का देशवासियों में ऐसा जुनून पैदा हो गया कि कई स्थानों पर बम विस्फोट हुए, सरकारी इमारतों को जला दिया गया, बिजली काट दी गई तथा परिवहन और संचार सेवाओं को भी ध्वस्त कर दिया गया। ... और पढ़ें |
हिरोशिमा दिवस 6 अगस्त को कहा जाता है। अमेरिका ने 6 अगस्त, 1945 के दिन जापान के हिरोशिमा नगर पर ‘लिटिल बॉय’ नामक यूरेनियम बम गिराया था। इस बम के प्रभाव से 13 वर्ग कि.मी. में तबाही मच गयी थी। हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी में से एक लाख चालीस हज़ार लोग एक झटके में ही मारे गए। ये सब सैनिक नहीं थे। इनमें से अधिकांश साधारण नागरिक, बच्चे, बूढ़े तथा स्त्रियाँ थीं। इसके बाद भी अनेक वर्षों तक अनगिनत लोग विकिरण के प्रभाव से मरते रहे। इस अमानवीय विनाश के तीन दिन बाद ही 9 अगस्त को ‘फ़ैट मैन’ नामक प्लूटोनियम बम नागासाकी पर गिराया गया, जिसमें अनुमानित 74 हज़ार लोग विस्फोट व गर्मी के कारण मारे गए। इनमें भी अधिकांश निरीह नागरिक थे। ... और पढ़ें |
रंग [शुद्ध: रङ्ग] अथवा वर्ण का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। प्राचीनकाल से ही रंग कला में भारत का विशेष योगदान रहा है। मुग़ल काल में भारत में रंग कला को अत्यधिक महत्त्व मिला। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ़ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं। रंग, मानवी आँखों के वर्णक्रम से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं। रंग से विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश वस्तु, प्रकाश स्रोत इत्यादि के भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश विलयन, समावेशन, परावर्तन जुड़े होते हैं ... और पढ़ें |
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। आज से लगभग 84 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों के निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। ...और पढ़ें |
दीपावली अथवा 'दिवाली' भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने श्रीराम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। ... और पढ़ें |
रामलीला उत्तरी भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित पर आधारित नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर खेला जाता है। दशहरा उत्सव में रामलीला भी महत्वपूर्ण है। रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण के जीवन का वृत्तांत का वर्णित किया जाता है। रामलीला नाटक का मंचन देश के विभिन्न क्षेत्रों में होता है। यह देश में अलग-अलग तरीक़े से मनाया जाता है। बंगाल और मध्य भारत के अलावा दशहरा पर्व देश के अन्य राज्यों में क्षेत्रीय विषमता के बावजूद एक समान उत्साह और शौक़ से मनाया जाता है। ... और पढ़ें |
श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन जी रहे हैं। ब्रह्म पुराण ने श्राद्ध की परिभाषा इस प्रकार की है- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके पिण्ड बनाते हैं, उसे 'सपिण्डीकरण' कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं। ... और पढ़ें |
'गाँधी युग' महात्मा गाँधी के अपने सत्य, अहिंसा एवं सत्याग्रह के साधनों से भारतीय राजनीतिक मंच पर 1919 ई. से 1948 ई. तक के कार्यकाल को माना जाता है। जे. एच. होम्स ने गाँधी जी के बारे में कहा कि- "गाँधी जी की गणना विगत युगों के महान् व्यक्तियों में की जा सकती है। वे अल्फ़्रेड, वाशिंगटन तथा लैफ़्टे की तरह एक महान् राष्ट्र निर्माता थे। उन्होंने बिलबर फ़ोर्स, गैरिसन और लिंकन की भांति भारत को दासता से मुक्त कराने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। वे सेंट फ़्राँसिस एवं टॉलस्टाय की अहिंसा के उपदेशक और बुद्ध, ईसा तथा जरथ्रुस्त की तरह आध्यात्मिक नेता थे।" गाँधी जी भारत के उन कुछ चमकते हुए सितारों में से एक थे, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय एकता के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। ... और पढ़ें |
चैतन्य महाप्रभु भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी। भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊँच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृन्दावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे। महाप्रभु चैतन्य के जीवन चरित के लिए वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' और कृष्णदास कविराज द्वारा 1590 में रचित 'चैतन्य चरितामृत' नामक ग्रन्थ प्रमुख हैं। चैतन्य महाप्रभु ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। ... और पढ़ें |
भारतीय संस्कृति भारत के विस्तृत इतिहास, साहित्य, विलक्षण भूगोल, विभिन्न धर्मों तथा उनकी परम्पराओं का सम्मिश्रण है। भारतीय संस्कृति को 'देव संस्कृति' कहकर भी सम्मानित किया गया है। भारत के निवासी और उनकी जीवन शैलियाँ, उनके नृत्य और संगीत शैलियाँ, कला और हस्तकला जैसे अन्य अनेक विधाएँ भारतीय संस्कृति और विरासत के विभिन्न वर्णों को प्रस्तुत करती हैं, जो देश की राष्ट्रीयता का सच्चा चित्र प्रस्तुत करते हैं। भारतीय संस्कृति विश्व की प्रधान संस्कृति है, यह कोई गर्वोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविकता है। हज़ारों वर्षों से भारत की सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं, रीति-रिवाज़ों आदि में विविधता बनी रही है जो कि आज भी विद्यमान है और यही अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की महान् विशेषता है। ... और पढ़ें |
स्वस्तिक हिन्दू धर्म का पवित्र, पूजनीय चिह्न और प्राचीन धर्म प्रतीक है। पुरातन वैदिक सनातन संस्कृति का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। स्वस्तिक आर्यत्व का चिह्न माना जाता है। वैदिक साहित्य में स्वस्तिक की चर्चा नहीं हैं। यह शब्द ई. सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों के ग्रंथों में मिलता है, जबकि धार्मिक कला में इसका प्रयोग शुभ माना जाता है। ... और पढ़ें |
चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है और संसार के अधिकांश लोग इसे पसन्द करते हैं। कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट 'शैन नुंग' के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में, कुछ सूखी पत्तियाँ आकर गिरीं, जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू होता है चाय का सफ़र। ये बात ईसा से 2737 साल पहले की है। सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया। ... और पढ़ें |
बुद्ध संसार प्रसिद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। बुद्ध का मूल नाम 'सिद्धार्थ' था। खारवेल के अभिलेख, अशोक के सिंहासनारोहण की तिथि, कैण्टन के अभिलेख आदि के आधार पर महात्मा बुद्ध की जन्म तिथि 563 ई.पू. स्वीकार की गयी है। इनका जन्म शाक्यवंश के राजा शुद्धोदन की रानी महामाया के गर्भ से वैशाख पूर्णिमा के दिन शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक ग्राम में हुआ था। बोधगया में बोधवृक्ष (पीपल) के नीचे 'सिद्धार्थ' ज्ञान प्राप्त कर 'गौतम बुद्ध' कहलाए थे। आज बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। ... और पढ़ें |
नवरात्र हिन्दू धर्म ग्रंथ-पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। वर्ष में चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। ... और पढ़ें |
श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन जी रहे हैं। ब्रह्म पुराण ने श्राद्ध की परिभाषा इस प्रकार की है- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', वह श्राद्ध कहलाता है। ... और पढ़ें |
योजना आयोग भारत सरकार की प्रमुख स्वतंत्र संस्थाओं में से एक है। इसका मुख्य कार्य 'पंचवर्षीय योजनाएँ' बनाना है। इस आयोग की स्थापना 15 मार्च, 1950 में हुई थी। योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं। इसके बाद योजना आयोग का उपाध्यक्ष संस्था के कामकाज को मुख्य रूप से देखता है। वित्तमंत्री और रक्षामंत्री योजना आयोग के पदेन सदस्य होते हैं। योजना आयोग किसी प्रकार से भारत की संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। ... और पढ़ें |
कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। कृष्ण जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मध्यरात्रि में अपने मामा कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया था। इस अवसर पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्मभूमि के अलावा द्वारकाधीश, बांके बिहारी जी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता है। ... और पढ़ें |
रक्षाबन्धन श्रावण मास की पूर्णिमा को पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार है। सावन में मनाए जाने के कारण इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैं। रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात् किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। मध्यकालीन इतिहास में चित्तौड़ की हिन्दू रानी कर्णावती ने दिल्ली के मुग़ल बादशाह हुमायूँ को अपना भाई मानकर उसके पास राखी भेजी थी। हुमायूँ ने उसकी राखी स्वीकार कर ली और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह बहादुरशाह से युद्ध किया। ... और पढ़ें |
जैसलमेर अनुपम वस्तुशिल्प, मधुर लोक संगीत, विपुल सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत को अपने में संजोये हुए 'स्वर्ण नगरी' के रूप में विख्यात है। पीले भूरे पत्थरों से निर्मित भवनों के लिए विख्यात जैसलमेर की स्थापना 1156 ई. में राजपूतों के सरदार रावल जैसल ने की थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहाँ भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए 770 वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण घटना है। सल्तनत काल के इतिहास से गुजरता हुआ यह राज्य मुग़ल साम्राज्य में भी लगभग 300 वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इसने अपने वंश, गौरव और महत्त्व को यथावत रखा। ... और पढ़ें |
होली भारत का प्रमुख त्योहार है। पुराणों में वर्णित है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि स्नान करती थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। इस पर्व को 'नवान्नेष्टि यज्ञपर्व' भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इस दिन यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को 'होला' कहते है। इसी से इसका नाम 'होलिकोत्सव' पड़ा। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। ... और पढ़ें |
बसंत पंचमी प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा सम्पूर्ण भारत में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। बसंत को 'ऋतुओं का राजा' अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। बसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। इस दिन विशेषकर मीठा चावल बनाया जाता है जिसमें बादाम, किशमिश, काजू आदि डालकर खीर आदि विशेष व्यंजन बनाये जाते हैं। ... और पढ़ें |
गणतंत्र दिवस भारत में 26 जनवरी को मनाया जाता है और यह भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के बाद सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया। सबसे पहली बार 21 तोपों की सलामी के साथ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहराकर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की थी। यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती। ... और पढ़ें |
सैय्यद इब्राहीम 'रसखान' का हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। रसखान को 'रस की खान(क़ान)' कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं का बहुत सूक्ष्म वर्णन किया है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है। रसखान की कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं- 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका'। 'सुजान रसखान' में 139 सवैये और कवित्त है। 'प्रेमवाटिका' में 52 दोहे हैं, जिनमें प्रेम का बड़ा अनूठा निरूपण किया गया है। ... और पढ़ें |
आलम आरा भारत की पहली बोलती फ़िल्म है जिसका निर्देशन 'अर्देशिर ईरानी' ने किया था। आलम आरा का प्रदर्शन 14 मार्च 1931 को हुआ था। फ़िल्म के नायक की भूमिका मास्टर विट्ठल और नायिका की भूमिका ज़ुबैदा ने निभाई थी। फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूर की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। राजकुमार और बंजारिन की प्रेम कहानी पर आधारित यह फ़िल्म एक पारसी नाटक से प्रेरित थी। इसकी लंबाई 2 घंटे 4 मिनट की थी। भारत में कहीं भी अब इस फ़िल्म का कोई प्रिंट नहीं बचा है। आलम आरा का अकेला प्रिंट 2003 में पुणे के नेशनल फ़िल्म आर्काइव में लगी आग में भस्म हो गया। ... और पढ़ें |
दीपावली अथवा 'दिवाली' भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने श्रीराम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। ... और पढ़ें |
विजय दशमी अथवा 'दशहरा' भारत का राष्ट्रीय त्योहार है। यह आश्विन शुक्ल दशमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने सीता का हरण करने वाले रावण का वध किया था। विजय दशमी के अवसर पर पूरे भारत में जगह–जगह आयोजित रामलीला में रावण दहन का प्रदर्शन होता है। इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। विजय दशमी सभी जातियों के लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण दिन है, किंतु राजाओं, सामंतों एवं क्षत्रियों के लिए यह विशेष रूप से शुभ दिन है। ... और पढ़ें |
श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन जी रहे हैं। ब्रह्म पुराण ने श्राद्ध की परिभाषा यों दी है, 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', वह श्राद्ध कहलाता है। ... और पढ़ें |
हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय एवं मध्य भारतीय आर्य भाषा है। हिंदी शब्द की व्युपत्ति भारत के उत्तर–पश्चिम में प्रवाहमान सिन्धु नदी से सम्बन्धित है। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रज भाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमाँऊनी, मागधी और मारवाड़ी शामिल हैं। हिंदी की आदि जननी संस्कृत है। संस्कृत पालि, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश तक पहुँचती है। 'केन्द्रीय हिंदी निदेशालय' ने लिपि के मानकीकरण पर अधिक ध्यान दिया और 'देवनागरी लिपि' तथा 'हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' का प्रकाशन किया। .... और पढ़ें |
स्वतंत्रता दिवस भारतवासियों के लिए एक ऐसा दिन है जब हम अपने महान् राष्ट्रीय नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने विदेशी नियंत्रण से भारत को आज़ाद कराने के लिए अनेक बलिदान दिए और अपने जीवन न्यौछावर कर दिए। 15 अगस्त 1947 को भारत के निवासियों ने लाखों कुर्बानियां देकर ब्रिटिश शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त की थी। यह राष्ट्रीय पर्व भारत के गौरव का प्रतीक है। इसी महान् दिन की याद में भारत के प्रधानमंत्री प्रत्येक वर्ष लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराकर देश को सम्बोधित करते हैं। ... और पढ़ें |
कालिदास संस्कृत भाषा के सबसे महान् कवि और नाटककार थे। कलिदास अपनी अलंकार युक्त सुंदर सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएं बेमिसाल। संगीत उनके साहित्य का प्रमुख अंग है और रस का सृजन करने में उनकी कोई उपमा नहीं। कालिदास शिव के भक्त थे। कालिदास नाम का शाब्दिक अर्थ है, 'काली का सेवक'। कालिदास दिखने में बहुत सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में एक थे। लेकिन कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे। कालिदास की शादी विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी से हुई। ... और पढ़ें |
मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण मध्य में स्थित एक प्रसिद्ध रियासत थी। सैकड़ों सालों तक यहाँ राजपूतों का शासन रहा। गहलौत तथा सिसोदिया वंश के राजाओं ने 1200 साल तक मेवाड़ पर राज किया था। 17वीं और 18वीं शताब्दी में मेवाड़ की चित्रकला भारतीय लघु चित्रकला की महत्त्वपूर्ण शैलियों में से एक है। मेवाड़ की जातिगत सामाजिक व्यवस्था परम्परागत रूप से ऊँच-नीच, पद-प्रतिष्ठा तथा वंशोत्पन्न जातियों के आधार पर संगठित थी। मेवाड़ी समाज में स्त्रियों को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। इसके साथ ही निर्णय आदि के कई महत्त्वपूर्ण अधिकार भी उन्हें प्राप्त थे। ... और पढ़ें |
ब्रज शब्द का प्रयोग वेदों, रामायण और महाभारत के काल में गोष्ठ- 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थानों के लिये किया जाने लगा। भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार चौरासी कोस का माना जाने लगा था। आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं उसकी दिशाऐं, उत्तर में पलवल, हरियाणा, दक्षिण में ग्वालियर, मध्य प्रदेश, पश्चिम में भरतपुर, राजस्थान और पूर्व में एटा उत्तर प्रदेश को छूती हैं। ... और पढ़ें |
होली भारत का प्रमुख त्योहार है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं होता। संस्कृत शब्द होलक्का से होली शब्द का जन्म हुआ है। वैदिक युग में 'होलक्का' को ऐसा अन्न माना जाता था, जो देवों का मुख्य रूप से खाद्य-पदार्थ था। बसंत की आनन्दाभिव्यक्ति रंगीन जल एवं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है। कुछ प्रदेशों में यह रंग युक्त वातावरण 'होलिका के दिन' ही होता है, किन्तु दक्षिण भारत में यह पाँचवें दिन (रंग पंचमी) तक मनाई जाती है। ... और पढ़ें |
कुम्भ मेला हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष में इस पर्व का आयोजन होता है। प्रयाग (इलाहाबाद) में संगम के तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है। इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है। ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है। ... और पढ़ें |
मैसूर शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके प्राचीनतम शासक कदम्ब वंश के थे, जिनका उल्लेख प्रख्यात भूगोलवेत्ता टॉलमी ने किया है। कदम्बों को चेरों, पल्लवों और चालुक्यों से युद्ध करना पड़ा था। 12वीं शताब्दी में जाकर मैसूर का शासन कदम्बों के हाथों से होयसलों के हाथों में आया, जिन्होंने द्वारसमुद्र अथवा आधुनिक हलेबिड को अपनी राजधानी बनाया था। 18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों और मैसूर के शासकों के बीच चार सैन्य मुठभेड़ हुई थीं। अंग्रेज़ों और हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान के बीच समय-समय पर युद्ध हुए जो मैसूर युद्ध नाम से जाने जाते हैं। ... और पढ़ें |
अमीर ख़ुसरो और ग़ालिब की रचनाओं को गुनगुनाती हुई दिल्ली नादिरशाह की लूट की चीख़ों से सहम भी जाती है। चाँदनी चौक-जामा मस्जिद की सकरी गलियों से गुज़रकर चौड़े राजपथ पर 26 जनवरी की परेड को निहारती हुई दिल्ली 30 जनवरी को उन तीन गोलियों की आवाज़ को नहीं भुला पाती जो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सीने में धँस गयी थी। दिल्ली ने दौलताबाद जाने के तुग़लकी फ़रमानों को भी सुना और लाल क़िले से प्रधानमंत्री के अभिभाषणों पर तालियाँ भी बजायी। कभी रघुराय ने दिल्ली की रायसीना पहाड़ी को अपने कैमरे में क़ैद कर लिया तो कभी हुसैन के रंगों ने दिल्ली को रंग दिया। दिल्ली कभी कुतुबमीनार की मंज़िलों को चढ़ाने में पसीना बहाती रही तो कभी हुमायूँ के मक़बरे में पत्थरों को तराशती रही। नौ बार लूटे जाने से भी दिल्ली के श्रृंगार में कोई कमी नहीं आयी। ... और पढ़ें |
अशोक महान् ने कहा है:- |
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चीनी यात्री हुएनसांग के लेखानुसार यहाँ पर अशोक के बनवाये हुये कुछ स्तूप 7वीं शताब्दी में विद्यमान थे। परन्तु आज हमें इनके विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं है। लोक-कला की दृष्टि से देखा जाय तो मथुरा और उसके आसपास के भाग में इसके मौर्यकालीन नमूने विद्यमान हैं। लोक-कला की ये मूर्तियां यक्षों की हैं। यक्षपूजा तत्कालीन लोकधर्म का एक अभिन्न अंग थी। संस्कृत, पाली और प्राकृत साहित्य यक्षपूजा के उल्लेखों से भरा पड़ा है । पुराणों के अनुसार यक्षों का कार्य पापियों को विघ्न करना, उन्हें दुर्गति देना और साथ ही साथ अपने क्षेत्र का संरक्षण करना था।[1] मथुरा से इस प्रकार के यक्ष और यक्षणियों की छह प्रतिमाएं मिल चुकी हैं । .... और पढ़ें |
छांदोग्य उपनिषद[2], जिसमें देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर आंगिरस का शिष्य कहा है। परवर्ती साहित्य में श्रीकृष्ण को देव या विष्णु रूप में प्रदर्शित करने का भाव मिलता है।[3] महाभारत तथा हरिवंश, विष्णु, ब्रह्म, वायु, भागवत, पद्म, देवी भागवत अग्नि तथा ब्रह्मवर्त पुराणों में उन्हें प्राय: भगवान के रूप में ही दिखाया गया है। इन ग्रंथो में यद्यपि कृष्ण के आलौकिक तत्त्व की प्रधानता है तो भी उनके मानव या ऐतिहासिक रूप के भी दर्शन यत्र-तत्र मिलते हैं। पुराणों में कृष्ण-संबंधी विभिन्न वर्णनों के आधार पर कुछ पाश्चात्य विद्वानों को यह कल्पना करने का अवसर मिला कि कृष्ण ऐतिहासिक पुरुष नहीं थे। इस कल्पना की पुष्टि में अनेक दलीलें दी गई हैं, जो ठीक नहीं सिद्ध होती। यदि महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त, ब्राह्मण-ग्रंथों तथा उपनिषदों के उल्लेख देखे जायें तो कृष्ण के ऐतिहासिक तत्त्व का पता चल जायगा। बौद्ध-ग्रंथ घट जातक तथा जैन-ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र से भी श्रीकृष्ण का ऐतिहासिक होना सिद्ध है। यह मत भी भ्रामक है कि ब्रज के कृष्ण, द्वारका के कृष्ण तथा महाभारत के कृष्ण एक न होकर अलग-अलग व्यक्ति थे।[4] |
संदर्भ
- ↑ वामनपुराण, 34.44; 35.38
- ↑ (3,17,6)
- ↑ तैत्तिरीय आरण्यक, 10, 1, 6; पाणिनि-अष्टाध्यायी, 4, 3, 98 आदि
- ↑ श्रीकृष्ण की ऐतिहासिकता तथा तत्संबंधी अन्य समस्याओं के लिए देखिए- राय चौधरी-अर्ली हिस्ट्री आफ वैष्णव सेक्ट, पृ0 39, 52; आर0जी0 भंडारकार-ग्रंथमाला, जिल्द 2, पृ0 58-291; विंटरनीज-हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द 1, पृ0 456; मैकडॉनल तथा कीथ-वैदिक इंडेक्स, जि0 1, पृ0 184; ग्रियर्सन-एनसाइक्लोपीडिया आफ रिलीजंस (`भक्ति' पर निबंध); भगवानदास-कृष्ण; तदपत्रिकर-दि कृष्ण प्रायलम; पार्जीटर-ऎश्यंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रेडीशन आदि।