"शंभुनाथ डे": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब") |
No edit summary |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
|मृत्यु=[[15 अप्रॅल]], [[1985]] | |मृत्यु=[[15 अप्रॅल]], [[1985]] | ||
|मृत्यु स्थान= | |मृत्यु स्थान= | ||
|अभिभावक=पिता- दशरथी डे, माता- छत्तेश्वरी | |अभिभावक=[[पिता]]- दशरथी डे, [[माता]]- छत्तेश्वरी | ||
|पति/पत्नी= | |पति/पत्नी= | ||
|संतान= | |संतान= | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
डॉ. शंभुनाथ डे की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में [[15 अप्रॅल]], [[1985]] में हुई। | डॉ. शंभुनाथ डे की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में [[15 अप्रॅल]], [[1985]] में हुई। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
05:46, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
शंभुनाथ डे
| |
पूरा नाम | शंभुनाथ डे |
जन्म | 1 फ़रवरी, 1915 |
जन्म भूमि | हुगली, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 15 अप्रॅल, 1985 |
अभिभावक | पिता- दशरथी डे, माता- छत्तेश्वरी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | पैथोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी |
विशेष योगदान | डॉ. शंभुनाथ डे ने हैजे के जीवाणु पर विशेष शोध कार्य किये और पता लगाया कि यह जीवाणु शरीर में एक ज़हर पैदा करता है, जिससे शरीर में जल की कमी हो जाती है और मरीज की मृत्यु हो जाती है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शंभुनाथ डे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने काम के लिए पहचान मिली। उन्हें 'नोबेल पुरस्कार' के लिए नामांकित भी किया गया। उनका नामांकन किसी और ने नहीं, बल्कि मशहूर वैज्ञानिक जोशुहा लेडरबर्ग ने किया था। |
शंभुनाथ डे (अंग्रेज़ी: Shambunath Day, जन्म- 1 फ़रवरी, 1915, हुगली, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 15 अप्रॅल, 1985) भारतीय वैज्ञानिक थे। रॉबर्ट कॉख द्वारा साल 1884 में हैजे के जीवाणु खोजने के 75 साल बाद बंगाल के इस वैज्ञानिक ने पता लगाया था कि जीवाणु द्वारा पैदा किया गया एक ज़हर शरीर में पानी की कमी और रक्त के गाढ़े होने का कारण बनता है, जिसके कारण आखिरकार हैजे के मरीज की जान चली जाती है।
परिचय
शंभुनाथ डे का जन्म सन 1915 में ग़रीबटी नामक गाँव, हुगली ज़िला, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता दशरथी डे तथा माता छत्तेश्वरी एक साधारण परिवार से थे। दशरथी डे अपने पिता के बड़े पुत्र थे, इसीलिए पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी स्वयं सम्भाली। उन्होंने एक दुकान पर सहायक के तौर पर काम किया और फिर बाद में अपना स्वयं का एक छोटा सा व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया। शंभुनाथ डे के चाचा परिवार में एकमात्र शिक्षित व्यक्ति थे। उन्होंने ही शंभुनाथ डे में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न की।[1]
शोध कार्य
सन 1940 के दौर में भारत में हैजे के कारण होने वाली मौतों की संख्या काफी ज्यादा हुआ करती थी। इनसे दु:खी होकर शंभुनाथ डे ने हैजे के ऊपर शोध करना शुरू किया था। हालांकि वह उस समय लंदन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज हॉस्पीटल मेडिकल स्कूल में आधिकारिक तौर पर दिल की बीमारी से संबंधित एक विषय पर शोध कर रहे थे। वह 1949 में भारत लौटकर आए और यहां काम करने लगे। शंभुनाथ डे ने हैजा होने के बाद किडनी पर होने वाले असर और उसमें आने वाले अंतर पर शोध करना शुरू किया।
खोज
शंभुनाथ डे कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के पेथोलॉजी विभाग के पूर्व निदेशक और शोधकर्ता थे। उन्होंने पता लगाया था कि हैजे के जीवाणु द्वारा पैदा किया गया एक ज़हर शरीर में पानी की कमी और रक्त के गाढ़े होने का कारण बनता है, जिसके कारण आखिरकार हैजे के मरीज की जान चली जाती है। उन्होंने कई दिक्कतों और मुसीबतों के बाद भी कोलकाता के बोस संस्थान में यह बेहद ज़रूरी और खास मानी जाने वाली खोज की थी। साधनों की कमी के बावजूद भी उन्होंने हैजे के जीवाणु द्वारा पैदा किए जाने वाले जानलेवा टॉक्सिन के बारे में पता लगाया था। इसके बाद दुनिया भर में अनगिनत हैजे के मरीजों की जान मुंह के रास्ते पानी देकर शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा बरकरार रख बचाई गई।[1]
मृत्यु
डॉ. शंभुनाथ डे की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में 15 अप्रॅल, 1985 में हुई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 हैजा का इलाज खोजा, अपने देश में मिली 'गुमनामी' (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2017।