"गुरुदेव का अंग -कबीर": अवतरणों में अंतर
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राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु | राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं। | ||
क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन | क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं॥1॥ | ||
सतगुरु लई कमांण करि, बाहण लागा | सतगुरु लई कमांण करि, बाहण लागा तीर। | ||
एक जु बाह्या प्रीति सूं, भीतरि रह्या | एक जु बाह्या प्रीति सूं, भीतरि रह्या शरीर॥2॥ | ||
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया | सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार। | ||
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत- | लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत-दिखावणहार॥3॥ | ||
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाड़ी कै | बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाड़ी कै बार। | ||
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी | जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥4॥ | ||
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,काके लागूं | गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं। | ||
बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया | बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय॥5॥ | ||
ना गुर मिल्या न सिष भया, लालच खेल्या | ना गुर मिल्या न सिष भया, लालच खेल्या डाव। | ||
दुन्यूं बूड़े धार मैं, चढ़ि पाथर की | दुन्यूं बूड़े धार मैं, चढ़ि पाथर की नाव॥6॥ | ||
पीछैं लागा जाइ था, लोक बेद के | पीछैं लागा जाइ था, लोक बेद के साथि। | ||
आगैं थैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया | आगैं थैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि॥7॥ | ||
`कबीर' सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी | `कबीर' सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीष। | ||
स्वांग जती का पहरि करि, घरि घरि माँगे | स्वांग जती का पहरि करि, घरि घरि माँगे भीष॥8॥ | ||
सतगुरु हम सूं रीझि करि, एक कह्या | सतगुरु हम सूं रीझि करि, एक कह्या परसंग। | ||
बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया सब | बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया सब अंग॥9॥ | ||
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की | यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। | ||
सीस दिये जो गुर मिलै, तो भी सस्ता | सीस दिये जो गुर मिलै, तो भी सस्ता जान॥10॥ | ||
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09:27, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं। |
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