"चन्द्रानन्द वृत्ति": अवतरणों में अंतर

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*चन्द्रानन्द द्वारा रचित वैशेषिक सूत्र व्याख्या चन्द्रानन्दवृत्ति के रूप में प्रचलित हुई।  
*चन्द्रानन्द द्वारा रचित वैशेषिक सूत्र व्याख्या चन्द्रानन्दवृत्ति के रूप में प्रचलित हुई।  
*चन्द्रानन्द ने वैशेषिक सूत्र का जो पाठ अपनाया है, वह शंकरमिश्र स्वीकृत मिथिला विद्यापीठ के पाठ से तथा [[वाराणसी]] एवं कलकत्ता आदि से प्रकाशित सूत्र पाठों से बहुत भिन्न हैं।  
*चन्द्रानन्द ने वैशेषिक सूत्र का जो पाठ अपनाया है, वह शंकरमिश्र स्वीकृत मिथिला विद्यापीठ के पाठ से तथा [[वाराणसी]] एवं कलकत्ता आदि से प्रकाशित सूत्र पाठों से बहुत भिन्न हैं।  
*चन्द्रानन्द व्याख्या में वैशेषिक सूत्र के अन्तिम तीन अध्यायों में आह्निकों का विधान नहीं है।  
*चन्द्रानन्द व्याख्या में वैशेषिक सूत्र के अन्तिम तीन अध्यायों में आह्निकों का विधान नहीं है।  
*चन्द्रानन्द का समय 700 ई. बताया जाता है।  
*चन्द्रानन्द का समय 700 ई. बताया जाता है।  
*इस वृत्ति में वार्त्तिककार उद्योतकर का नामत: उल्लेख किया गया है।<balloon title=" द्र. चन्द्रानन्दवृत्ति, ग. ओ. सी. नं. 136, बड़ौदा" style=color:blue>*</balloon>
*इस वृत्ति में वार्त्तिककार उद्योतकर का नामत: उल्लेख किया गया है।<ref> द्र. चन्द्रानन्दवृत्ति, ग. ओ. सी. नं. 136, बड़ौदा</ref>
 
==टीका टिप्पणी==
<references/>
==अन्य लिंक==
==अन्य लिंक==



08:20, 1 जून 2010 का अवतरण

  • चन्द्रानन्द द्वारा रचित वैशेषिक सूत्र व्याख्या चन्द्रानन्दवृत्ति के रूप में प्रचलित हुई।
  • चन्द्रानन्द ने वैशेषिक सूत्र का जो पाठ अपनाया है, वह शंकरमिश्र स्वीकृत मिथिला विद्यापीठ के पाठ से तथा वाराणसी एवं कलकत्ता आदि से प्रकाशित सूत्र पाठों से बहुत भिन्न हैं।
  • चन्द्रानन्द व्याख्या में वैशेषिक सूत्र के अन्तिम तीन अध्यायों में आह्निकों का विधान नहीं है।
  • चन्द्रानन्द का समय 700 ई. बताया जाता है।
  • इस वृत्ति में वार्त्तिककार उद्योतकर का नामत: उल्लेख किया गया है।[1]

टीका टिप्पणी

  1. द्र. चन्द्रानन्दवृत्ति, ग. ओ. सी. नं. 136, बड़ौदा

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