"मैं तुम्हें अपना -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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<poem>अजनबी यह देश, अनजानी यहां की हर डगर है, | <poem> | ||
बात मेरी क्या- यहां हर एक | अजनबी यह देश, अनजानी यहां की हर डगर है, | ||
किस तरह मुझको बना ले सेज का सिंदूर कोई | बात मेरी क्या - यहां हर एक ख़ुद से बेख़बर है, | ||
किस तरह मुझको बना ले सेज का सिंदूर कोई, | |||
जबकि मुझको ही नहीं पहचानती मेरी नजर है, | जबकि मुझको ही नहीं पहचानती मेरी नजर है, | ||
आंख में इसे बसाकर मोहिनी मूरत तुम्हारी | आंख में इसे बसाकर मोहिनी मूरत तुम्हारी, | ||
मैं सदा को ही स्वयं को भूल जाना चाहता | मैं सदा को ही स्वयं को भूल जाना चाहता हूं। | ||
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ | मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ | ||
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बूंद बनने को समुन्दर का हिमालय गल रहा है, | बूंद बनने को समुन्दर का हिमालय गल रहा है, | ||
प्यार पाने को धरा का मेघ है व्याकुल गगन में, | प्यार पाने को धरा का मेघ है व्याकुल गगन में, | ||
चूमने को मृत्यु निशि-दिन श्वास-पंथी चल रहा है, | चूमने को मृत्यु निशि - दिन श्वास - पंथी चल रहा है, | ||
है न कोई भी अकेला राह पर गतिमय इसी से | है न कोई भी अकेला राह पर गतिमय इसी से, | ||
मैं तुम्हारी आग में तन मन जलाना चाहता हूं। | मैं तुम्हारी आग में तन मन जलाना चाहता हूं। | ||
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ | मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 51: | ||
भोर की मुस्कान के पीछे छिपी निशि की सिसकियां, | भोर की मुस्कान के पीछे छिपी निशि की सिसकियां, | ||
फूल है हंसकर छिपाए शूल को अपने जिगर में, | फूल है हंसकर छिपाए शूल को अपने जिगर में, | ||
इसलिए ही मैं तुम्हारी आंख के दो बूंद जल में | इसलिए ही मैं तुम्हारी आंख के दो बूंद जल में, | ||
यह अधूरी जिन्दगी अपनी डुबाना चाहता हूं। | यह अधूरी जिन्दगी अपनी डुबाना चाहता हूं। | ||
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ | मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 57: | ||
वे गए विष दे मुझे मैंने हृदय जिनको दिया था, | वे गए विष दे मुझे मैंने हृदय जिनको दिया था, | ||
शत्रु हैं वे प्यार खुद से भी अधिक जिनको किया था, | शत्रु हैं वे प्यार खुद से भी अधिक जिनको किया था, | ||
हंस रहे वे याद में जिनकी | हंस रहे वे याद में जिनकी हज़ारों गीत रोये, | ||
वे अपरिचित हैं, जिन्हें हर सांस ने अपना लिया था, | वे अपरिचित हैं, जिन्हें हर सांस ने अपना लिया था, | ||
इसलिए तुमको बनाकर आंसुओं की मुस्कराहट, | इसलिए तुमको बनाकर आंसुओं की मुस्कराहट, |
07:34, 3 नवम्बर 2011 का अवतरण
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अजनबी यह देश, अनजानी यहां की हर डगर है, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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