"धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, | मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, | ||
बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक | बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक | ||
कफ़न रात का हर चमन पर पड़ा है, | |||
न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे | न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे | ||
उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! | उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! |
10:03, 17 मई 2013 का अवतरण
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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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