"ज़िन्दगी़ चार कविताएँ -कन्हैयालाल नंदन": अवतरणों में अंतर
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रूप की जब उजास लगती है | रूप की जब उजास लगती है | ||
ज़िन्दगी | ज़िन्दगी | ||
आसपास लगती | आसपास लगती है। | ||
तुमसे मिलने की चाह | तुमसे मिलने की चाह | ||
कुछ ऐसे | कुछ ऐसे | ||
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कि जैसे | कि जैसे | ||
रौशनी की | रौशनी की | ||
एक अपनी धमक होती | एक अपनी धमक होती है। | ||
वो इस अंदाज़ से | वो इस अंदाज़ से | ||
मन की तहों में | मन की तहों में |
13:46, 25 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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