"एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है -अजेय": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है | |||
धुर हिमालय में यह एक भीषण जनवरी है | |||
आधी रात से आगे का कोई वक़्त है | |||
आधा घुसा हुआ बैठा हूँ | |||
चादर और कम्बल और् रज़ाई में | |||
सर पर कनटोप और दस्ताने हाथ में | |||
एक नंगा कंप्यूटर हैंग हो गया है | |||
जब कि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है . | |||
तमाम कविताएं पहुँच रहीं हैं मुझ तक हवा में | तमाम कविताएं पहुँच रहीं हैं मुझ तक हवा में | ||
कविता कोरवा की पहाड़ियों से | कविता कोरवा की पहाड़ियों से | ||
कविता चम्बल की घाटियों से | कविता चम्बल की घाटियों से | ||
भीम बैठका की गुफा से कविता स्वात और दज़ला से कविता | भीम बैठका की गुफा से कविता | ||
स्वात और दज़ला से कविता | |||
कविता कर्गिल और पुलवामा से | कविता कर्गिल और पुलवामा से | ||
मरयुल , जङ-थङ , अमदो और खम से | मरयुल , जङ-थङ , अमदो और खम से | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 48: | ||
जहाँ मैं जा नहीं पाया | जहाँ मैं जा नहीं पाया | ||
जबकि मेरे अपने ही देश थे वे. | जबकि मेरे अपने ही देश थे वे. | ||
कविताओं के उस पार एशिया की धूसर पीठ है कविताओं के इस पार एक हरा भरा गोण्ड्वाना है कविताओं के टीथिस मे ज़बर्दस्त खलबली है कविताओं की थार पर खेजड़ी की पत्तियाँ हैं कविताओं की फाट पर ब्यूँस की टहनियाँ हैं कविताओं के खड्ड में बल्ह के लबाणे हैं कविताओं की धूल में दुमका की खदाने हैं | |||
कविता का कलरव भरतपुर के घना में कविता का अवसाद पातालकोट की खोह में कविता का इश्क़ चिनाब के पत्तनों में | कविताओं के उस पार एशिया की धूसर पीठ है | ||
कविताओं के इस पार एक हरा भरा गोण्ड्वाना है | |||
कविताओं के टीथिस मे ज़बर्दस्त खलबली है | |||
कविताओं की थार पर खेजड़ी की पत्तियाँ हैं | |||
कविताओं की फाट पर ब्यूँस की टहनियाँ हैं | |||
कविताओं के खड्ड में बल्ह के लबाणे हैं | |||
कविताओं की धूल में दुमका की खदाने हैं | |||
कविता का कलरव भरतपुर के घना में | |||
कविता का अवसाद पातालकोट की खोह में | |||
कविता का इश्क़ चिनाब के पत्तनों में | |||
कविता की भूख विदर्भ के गाँवों में | कविता की भूख विदर्भ के गाँवों में | ||
कविता की तराई में जारी है लड़ाई पानी पानी चिल्ला रही है वैशाली | |||
विचलित रहती है कुशीनारा रात भर सूख गया है हज़ारों इच्छिरावतियों का जल जब कि कविता है सरसराती आम्रपालि | कविता की तराई में जारी है लड़ाई | ||
पानी पानी चिल्ला रही है वैशाली | |||
विचलित रहती है कुशीनारा रात भर | |||
सूख गया है हज़ारों इच्छिरावतियों का जल | |||
जब कि कविता है सरसराती आम्रपालि | |||
मेरा चेहरा डूब जाना चाहता है उस की संदल- माँसल गोद में | मेरा चेहरा डूब जाना चाहता है उस की संदल- माँसल गोद में | ||
कि हार कर स्खलित हो चुके हैं | कि हार कर स्खलित हो चुके हैं | ||
मेरी आत्मा की प्रथम पंक्ति पर तैनात सभी लिच्छवि योद्धा जब कि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है. | मेरी आत्मा की प्रथम पंक्ति पर तैनात सभी लिच्छवि योद्धा | ||
जब कि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है. | |||
सहसा ही | सहसा ही | ||
एक ढहता हुआ बुद्ध हूँ मैं अधलेटा हिमालय के आर पार फैल गया एक भगवा चीवर | एक ढहता हुआ बुद्ध हूँ मैं , अधलेटा | ||
हिमालय के आर पार फैल गया एक भगवा चीवर | |||
आधा कंबल में आधा कंबल के बाहर | आधा कंबल में आधा कंबल के बाहर | ||
सो रही है मेरी देह कंचनजंघा से हिन्दुकुश तक | सो रही है मेरी देह कंचनजंघा से हिन्दुकुश तक | ||
पामीर का तकिया बनाया है मेरा एक हाथ गंगा की खादर में कुछ टटोल रहा है दूसरे से नेपाल के घाव सहला रहा हूँ और मेरा छोटा सा दिल ज़ोर से धड़कता है | पामीर का तकिया बनाया है | ||
मेरा एक हाथ गंगा की खादर में कुछ टटोल रहा है | |||
दूसरे से नेपाल के घाव सहला रहा हूँ | |||
और मेरा छोटा सा दिल ज़ोर से धड़कता है | |||
हिमालय के बीचों बीच. | हिमालय के बीचों बीच. | ||
सिल्क रूट पर मेराथन दौड़ रहीं हैं कविताएं | |||
सिल्क रूट पर मेराथन दौड़ रहीं हैं कविताएं | |||
गोबी में पोलो खेल रहा है गेसर खान | |||
क़ज़्ज़ाकों और हूणों की कविता में लूट लिए गए हैं | क़ज़्ज़ाकों और हूणों की कविता में लूट लिए गए हैं | ||
ज़िन्दादिल खुश मिजाज़ जिप्सी | ज़िन्दादिल खुश मिजाज़ जिप्सी | ||
पंक्ति 90: | पंक्ति 115: | ||
कविता के पठारों से गायब है शङरीला | कविता के पठारों से गायब है शङरीला | ||
कविता के कोहरे से झाँक रहा शंभाला | कविता के कोहरे से झाँक रहा शंभाला | ||
कविता के रहस्य को मिल गया शांति का नोबेल पुरस्कार जब कि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है. | कविता के रहस्य को मिल गया शांति का नोबेल पुरस्कार | ||
जब कि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है. | |||
अरे , नहीं मालूम था मुझे | अरे , नहीं मालूम था मुझे | ||
पंक्ति 99: | पंक्ति 125: | ||
और मेनचेस्टर के कारखानों से चलनी शुरू हुई थी | और मेनचेस्टर के कारखानों से चलनी शुरू हुई थी | ||
आज पॆंटागन और ट्विन –टॉवर्ज़ से होते हुए | आज पॆंटागन और ट्विन –टॉवर्ज़ से होते हुए | ||
बीजिंग के तह्खानों में जमा हो गई है कि हवा जो अपने सूरज को अस्त नही देखना चाहती | बीजिंग के तह्खानों में जमा हो गई है | ||
कि हवा जो अपने सूरज को अस्त नही देखना चाहती | |||
आज मेरे गाँव की छोटी छोटी खिड़कियो को हड़का रही है | आज मेरे गाँव की छोटी छोटी खिड़कियो को हड़का रही है | ||
पंक्ति 121: | पंक्ति 148: | ||
कविता की नींद में भूगर्भ की तपिश | कविता की नींद में भूगर्भ की तपिश | ||
कविता के व्यामोह में मलाणा की क्रीम | कविता के व्यामोह में मलाणा की क्रीम | ||
कविता के कुण्ड में देशी माश की पोटलियाँ कविता की पठाल पे कोदरे की मोटी नमकीन रोटियाँ | कविता के कुण्ड में देशी माश की पोटलियाँ | ||
कविता की पठाल पे कोदरे की मोटी नमकीन रोटियाँ | |||
कविता की गंध में , | कविता की गंध में , | ||
आह ! | आह ! | ||
कैसा यह अपनापा | कैसा यह अपनापा | ||
कविता का तीर्थ यह कितना गुनगुना .... | कविता का तीर्थ यह कितना गुनगुना .... | ||
जबकि धुर हिमालय में | जबकि धुर हिमालय में | ||
यह एक ठण्डा और बेरहम सरकारी क्वार्टर है | यह एक ठण्डा और बेरहम सरकारी क्वार्टर है |
08:24, 10 जनवरी 2012 का अवतरण
| ||||||||||||||
|
|