"आस-पास एक पृथ्वी चाहिए -अजेय": अवतरणों में अंतर

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टिमटिमा-टिमटिमा कर
टिमटिमा-टिमटिमा कर
वह पृथ्वी को नज़र  आना चाहता था
वह पृथ्वी को नज़र  आना चाहता था
ज्यादा से ज्यादा देर तक
ज़्यादा से ज़्यादा देर तक
उसकी नज़रों में बस जाना चाहता था
उसकी नज़रों में बस जाना चाहता था
उसकी सोच पर हावी हो जाना चाहता था।
उसकी सोच पर हावी हो जाना चाहता था।

07:40, 5 मार्च 2012 का अवतरण

आस-पास एक पृथ्वी चाहिए -अजेय
कवि अजेय
जन्म स्थान (सुमनम, केलंग, हिमाचल प्रदेश)
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अजेय् की रचनाएँ

टिमटिमा-टिमटिमा कर
वह पृथ्वी को नज़र आना चाहता था
ज़्यादा से ज़्यादा देर तक
उसकी नज़रों में बस जाना चाहता था
उसकी सोच पर हावी हो जाना चाहता था।

वह सूरज से ‘जलता’ था
कि क्यों सूरज की तरह वह पृथ्वी के पास नहीं है
जब कि देखा जाए तो
वह भी एक जलता हुआ सूरज ही है।

कि क्यों उसका जलना
महज टिमटिमाना है पृथ्वी के लिए
जबकि सूरज का जलना, चमकना।

और क्यों रहती है पृथ्वी बुझी-बुझी
जब ग्रहण लग जाता है सूरज को
मानो मातम मनाती हो।

वह पृथ्वी को यूँ हसरत से कतई नहीं देखता
पर क्या करता
कि स्वयं को ‘सूरज’ महसूसने के लिए
उसे भी अपने आस पास एक पृथ्वी चाहिए ............

पृथ्वी से बहुत दूर
एक सितारा
कुछ इस तरह टिमटिमाता रहता था।


केलंग,फरवरी 22, 2007


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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