"साँसों के मुसाफिर -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में, | धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में, | ||
जंजीरें कट गई, मगर आज़ाद नहीं इन्सान अभी | जंजीरें कट गई, मगर आज़ाद नहीं इन्सान अभी | ||
दुनिया भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में, | |||
सोई किरन जगाता चल, | सोई किरन जगाता चल, |
10:12, 8 जुलाई 2012 का अवतरण
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इसको भी अपनाता चल, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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