"कबीर यहु तन जात है, सकै तो लेहु बहोरि -कबीर": अवतरणों में अंतर
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[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! यह तेरा मानव शरीर व्यर्थ में नष्ट हो रहा है। यह आकर्षक विषयों, सम्पत्ति के संग्रह आदि में विनष्ट हो रहा है। हो सके तो इसको इन क्षणिक सुखों और प्रलोभनों से बचा ले, क्योंकि सम्पत्ति-संग्रह से कोई लाभ न होगा। जिन्होंने लाखों-करोडों कमाया, वे भी इस संसार से | [[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! यह तेरा मानव शरीर व्यर्थ में नष्ट हो रहा है। यह आकर्षक विषयों, सम्पत्ति के संग्रह आदि में विनष्ट हो रहा है। हो सके तो इसको इन क्षणिक सुखों और प्रलोभनों से बचा ले, क्योंकि सम्पत्ति-संग्रह से कोई लाभ न होगा। जिन्होंने लाखों-करोडों कमाया, वे भी इस संसार से ख़ाली हाथ चले गये। | ||
14:43, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
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कबीर यहु तन जात है, सकै तो लेहु बहोरि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! यह तेरा मानव शरीर व्यर्थ में नष्ट हो रहा है। यह आकर्षक विषयों, सम्पत्ति के संग्रह आदि में विनष्ट हो रहा है। हो सके तो इसको इन क्षणिक सुखों और प्रलोभनों से बचा ले, क्योंकि सम्पत्ति-संग्रह से कोई लाभ न होगा। जिन्होंने लाखों-करोडों कमाया, वे भी इस संसार से ख़ाली हाथ चले गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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