"शत्रुघ्न सिन्हा": अवतरणों में अंतर
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अपनी ठसकदार बुलंद, कड़क आवाज और चाल-ढाल की मदमस्त शैली के कारण शत्रुघ्न जल्दी ही दर्शकों के चहेते बन गए। आए तो वे थे वे हीरो बनने, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें खलनायक बना दिया। खलनायकी के रूप में छाप छोड़ने के बाद वे हीरो भी बने। जॉनी उर्फ राजकुमार की तरह शत्रुघ्न की डॉयलाग डिलीवरी एकदम मुंहफट शैली की रही है। यही वजह रही कि उन्हें 'बड़बोला एक्टर' घोषित कर दिया गया। उनके मुँह से निकलने वाले शब्द बंदूक की गोली समान होते थे, इसलिए उन्हें 'शॉटगन' का टाइटल भी दे दिया गया। शत्रुघ्न की पहली हिंदी फ़िल्म डायरेक्टर मोहन सहगल निर्देशित 'साजन' (1968) के बाद अभिनेत्री [[मुमताज़ (अभिनेत्री)|मुमताज़]] की सिफारिश से उन्हें चंदर वोहरा की फ़िल्म 'खिलौना' (1970) मिली। इसके हीरो [[संजीव कुमार]] थे। बिहारी बाबू को बिहारी दल्ला का रोल दिया गया। शत्रुघ्न ने इसे इतनी खूबी से निभाया कि रातों रात वे निर्माताओं की पहली पसंद बन गए। उनके चेहरे के एक गाल पर कट का लम्बा निशान है। यह निशान उनकी खलनायकी का प्लस पाइंट बन गया। शत्रुघ्न ने अपने चेहरे के एक्सप्रेशन में इस 'कट' का जबरदस्त इस्तेमाल कर अभिनय को प्रभावी बनाया है।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/entertainment-film-articles/%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%98%E0%A5%8D%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A5%89%E0%A4%9F-%E0%A4%97%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80-1120714051_1.htm |title=शत्रुघ्न सिन्हा : बंदूक की गोली जैसी ‘शॉट-गन’ की बोली |accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी}} </ref> | अपनी ठसकदार बुलंद, कड़क आवाज और चाल-ढाल की मदमस्त शैली के कारण शत्रुघ्न जल्दी ही दर्शकों के चहेते बन गए। आए तो वे थे वे हीरो बनने, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें खलनायक बना दिया। खलनायकी के रूप में छाप छोड़ने के बाद वे हीरो भी बने। जॉनी उर्फ राजकुमार की तरह शत्रुघ्न की डॉयलाग डिलीवरी एकदम मुंहफट शैली की रही है। यही वजह रही कि उन्हें 'बड़बोला एक्टर' घोषित कर दिया गया। उनके मुँह से निकलने वाले शब्द बंदूक की गोली समान होते थे, इसलिए उन्हें 'शॉटगन' का टाइटल भी दे दिया गया। शत्रुघ्न की पहली हिंदी फ़िल्म डायरेक्टर मोहन सहगल निर्देशित 'साजन' (1968) के बाद अभिनेत्री [[मुमताज़ (अभिनेत्री)|मुमताज़]] की सिफारिश से उन्हें चंदर वोहरा की फ़िल्म 'खिलौना' (1970) मिली। इसके हीरो [[संजीव कुमार]] थे। बिहारी बाबू को बिहारी दल्ला का रोल दिया गया। शत्रुघ्न ने इसे इतनी खूबी से निभाया कि रातों रात वे निर्माताओं की पहली पसंद बन गए। उनके चेहरे के एक गाल पर कट का लम्बा निशान है। यह निशान उनकी खलनायकी का प्लस पाइंट बन गया। शत्रुघ्न ने अपने चेहरे के एक्सप्रेशन में इस 'कट' का जबरदस्त इस्तेमाल कर अभिनय को प्रभावी बनाया है।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/entertainment-film-articles/%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%98%E0%A5%8D%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A5%89%E0%A4%9F-%E0%A4%97%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80-1120714051_1.htm |title=शत्रुघ्न सिन्हा : बंदूक की गोली जैसी ‘शॉट-गन’ की बोली |accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी}} </ref> | ||
====शत्रुघ्न और अमिताभ बच्चन==== | ====शत्रुघ्न और अमिताभ बच्चन==== | ||
उस दौर के एंग्री यंग मैन [[अमिताभ बच्चन]] के साथ शत्रुघ्न की एक के बाद एक अनेक फ़िल्में रिलीज होने लगीं। 1979 में यश चोपड़ा के निर्देशन की महत्वाकांक्षी फ़िल्म काला पत्थर आई थी। इसके नायक अमिताभ थे। यह फ़िल्म 1975 में [[बिहार]] की कोयला खदान चसनाला में पानी भर जाने और सैकडों | उस दौर के एंग्री यंग मैन [[अमिताभ बच्चन]] के साथ शत्रुघ्न की एक के बाद एक अनेक फ़िल्में रिलीज होने लगीं। 1979 में यश चोपड़ा के निर्देशन की महत्वाकांक्षी फ़िल्म काला पत्थर आई थी। इसके नायक अमिताभ थे। यह फ़िल्म 1975 में [[बिहार]] की कोयला खदान चसनाला में पानी भर जाने और सैकडों मज़दूरों को बचाने की सत्य घटना पर आधारित थी। इस फ़िल्म में शत्रुघ्न ने मंगलसिंह नामक अपराधी का रोल किया था। इन दो महारथियों की टक्कर इस फ़िल्म में आमने-सामने की थी। काला पत्थर तो नहीं चली लेकिन अमिताभ-शत्रु की टक्कर को दर्शकों ने खूब पसंद किया। आगे चलकर अमिताभ-शत्रुघ्न फ़िल्म दोस्ताना (निर्देशक- राज खोसला), शान (निर्देशक- रमेश सिप्पी) तथा नसीब (निर्देशक- मनमोहन देसाई) जैसी फ़िल्मों में साथ-साथ आए।<ref name="WDH"/> | ||
====प्रसिद्ध फ़िल्में==== | ====प्रसिद्ध फ़िल्में==== | ||
लगभग चार दशकों में शत्रुघ्न सिन्हा ने कम से कम 200 हिन्दी फ़िल्मों में काम किया है। सिन्हा फ़िल्मों में अपने नकारात्मक चरित्र के लिए जाने गये। उनकी प्रसिद्ध फ़िल्मों में ‘रामपुर का लक्ष्मण’, ‘कालीचरण’ मिलेनियम स्टार [[अमिताभ बच्चन]] के साथ की फ़िल्मों में ‘दोस्ताना’, ‘काला पत्थर’, ‘शान’ और ‘नसीब’ इत्यादि हैं। फ़िल्म '[[क्रांति (1981 फ़िल्म)|क्रांति]]' (1981-[[मनोज कुमार]]), वक्त की दीवार (1981-रवि टंडन), नरम-गरम (1981-[[ऋषिकेश मुखर्जी]]), कयामत (1983-राज सिप्पी), चोर पुलिस (1983-अमजद खान), माटी माँगे ख़ून (1984-राज खोसला) और खुदगर्ज (1987- राकेश रोशन) का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। उन्होंने पंजाबी फ़िल्म ‘पुत्त जट्टां दे’ और ‘सत श्री अकाल’ में भी अभिनय किया है। अभिनय के अलावा उन्होंने ‘कशमकश’, ‘दोस्त’ और ‘दो नारी’ जैसी फ़िल्मों में गाने में भी हाथ आजमाया। हाल में रिलीज हुई रामगोपाल वर्मा की फ़िल्म ‘रक्तचरित्र’ में उन्होंने [[आंध्र प्रदेश]] के पूर्व मुख्यमंत्री [[एन. टी. रामाराव]] की भूमिका निभाई जिसके लिए उन्होंने पहली बार अपनी मूछें साफ़ करवाई। | लगभग चार दशकों में शत्रुघ्न सिन्हा ने कम से कम 200 हिन्दी फ़िल्मों में काम किया है। सिन्हा फ़िल्मों में अपने नकारात्मक चरित्र के लिए जाने गये। उनकी प्रसिद्ध फ़िल्मों में ‘रामपुर का लक्ष्मण’, ‘कालीचरण’ मिलेनियम स्टार [[अमिताभ बच्चन]] के साथ की फ़िल्मों में ‘दोस्ताना’, ‘काला पत्थर’, ‘शान’ और ‘नसीब’ इत्यादि हैं। फ़िल्म '[[क्रांति (1981 फ़िल्म)|क्रांति]]' (1981-[[मनोज कुमार]]), वक्त की दीवार (1981-रवि टंडन), नरम-गरम (1981-[[ऋषिकेश मुखर्जी]]), कयामत (1983-राज सिप्पी), चोर पुलिस (1983-अमजद खान), माटी माँगे ख़ून (1984-राज खोसला) और खुदगर्ज (1987- राकेश रोशन) का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। उन्होंने पंजाबी फ़िल्म ‘पुत्त जट्टां दे’ और ‘सत श्री अकाल’ में भी अभिनय किया है। अभिनय के अलावा उन्होंने ‘कशमकश’, ‘दोस्त’ और ‘दो नारी’ जैसी फ़िल्मों में गाने में भी हाथ आजमाया। हाल में रिलीज हुई रामगोपाल वर्मा की फ़िल्म ‘रक्तचरित्र’ में उन्होंने [[आंध्र प्रदेश]] के पूर्व मुख्यमंत्री [[एन. टी. रामाराव]] की भूमिका निभाई जिसके लिए उन्होंने पहली बार अपनी मूछें साफ़ करवाई। |
14:59, 6 अप्रैल 2015 का अवतरण
शत्रुघ्न सिन्हा
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पूरा नाम | शत्रुघ्न सिन्हा |
अन्य नाम | बिहारी बाबू, शॉटगन |
जन्म | 9 दिसंबर, 1945 |
जन्म भूमि | पटना, बिहार |
पति/पत्नी | पूनम सिन्हा |
संतान | पुत्री- सोनाक्षी सिन्हा
पुत्र- लव सिन्हा और कुश सिन्हा |
कर्म भूमि | मुम्बई, पटना |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता, राजनीतिज्ञ |
मुख्य फ़िल्में | ‘रामपुर का लक्ष्मण’, ‘कालीचरण’, ‘काला पत्थर’, ‘दोस्ताना’ आदि |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | फ़िल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शत्रुघ्न सिन्हा बॉलीवुड से निकलने वाले पहले नेता हैं जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री बनाये गये। |
अद्यतन | 19:27, 22 सितम्बर 2012 (IST)
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शत्रुघ्न सिन्हा (अंग्रेज़ी: Shatrughan Sinha, जन्म- 9 दिसंबर, 1945) एक प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता और राजनीतिज्ञ हैं। हिंदी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को लोग बिहारी बाबू के नाम से जानते हैं।
जीवन परिचय
शत्रुघ्न सिन्हा का जन्म बिहार की राजधानी पटना में 9 दिसम्बर, 1945 में हुआ था। पिता भुवनेश्वरी प्रसाद सिन्हा तथा माता श्यामा देवी थीं। शत्रु के पिता पेशे से चिकित्सक थे, इस वजह से उनकी इच्छा थी कि बेटा शत्रु भी डॉक्टर बने। लेकिन शॉटगन को ये मंजूर नहीं था। अपने चार भाईयों में सबसे छोटे शत्रुघ्न सिन्हा को घर में सभी लोग छोटका बबुआ कहा करते थे। शत्रुघ्न भारतीय फ़िल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे से स्नातक हैं।
फ़िल्मी सफर
शत्रुघ्न सिन्हा की इच्छा बचपन से ही फ़िल्मों में काम करने की थी। अपने पिता की इच्छा को दरकिनार कर वे फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे में प्रवेश लिया। वहाँ से ट्रेनिंग लेने के बाद वे फ़िल्मों में कोशिश करने लगे। लेकिन कटे होंठ के कारण किस्मत साथ नहीं दे रही थी। ऐसे में वे प्लास्टिक सर्जरी कराने की सोचने लगे। तभी देवानंद ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था। उन्होंने वर्ष 1969 में फ़िल्म ‘साजन’ के साथ अपने कैरियर की शुरूआत की थी। पचास-साठ के दशक में के.एन. सिंह, साठ-सत्तर के दशक में प्राण, अमजद खान और अमरीश पुरी। और इन्हीं के समानांतर फ़िल्म एण्ड टीवी संस्थान से अभिनय में प्रशिक्षित बिहारी बाबू उर्फ शॉटगन उर्फ शत्रुघ्न सिन्हा की एंट्री हिन्दी सिनेमा में होती है। यह वह दौर था जब बहुलसितारा (मल्टी स्टारर) फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धन बरसा रही थीं।
बिहारी बाबू उर्फ शॉटगन
अपनी ठसकदार बुलंद, कड़क आवाज और चाल-ढाल की मदमस्त शैली के कारण शत्रुघ्न जल्दी ही दर्शकों के चहेते बन गए। आए तो वे थे वे हीरो बनने, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें खलनायक बना दिया। खलनायकी के रूप में छाप छोड़ने के बाद वे हीरो भी बने। जॉनी उर्फ राजकुमार की तरह शत्रुघ्न की डॉयलाग डिलीवरी एकदम मुंहफट शैली की रही है। यही वजह रही कि उन्हें 'बड़बोला एक्टर' घोषित कर दिया गया। उनके मुँह से निकलने वाले शब्द बंदूक की गोली समान होते थे, इसलिए उन्हें 'शॉटगन' का टाइटल भी दे दिया गया। शत्रुघ्न की पहली हिंदी फ़िल्म डायरेक्टर मोहन सहगल निर्देशित 'साजन' (1968) के बाद अभिनेत्री मुमताज़ की सिफारिश से उन्हें चंदर वोहरा की फ़िल्म 'खिलौना' (1970) मिली। इसके हीरो संजीव कुमार थे। बिहारी बाबू को बिहारी दल्ला का रोल दिया गया। शत्रुघ्न ने इसे इतनी खूबी से निभाया कि रातों रात वे निर्माताओं की पहली पसंद बन गए। उनके चेहरे के एक गाल पर कट का लम्बा निशान है। यह निशान उनकी खलनायकी का प्लस पाइंट बन गया। शत्रुघ्न ने अपने चेहरे के एक्सप्रेशन में इस 'कट' का जबरदस्त इस्तेमाल कर अभिनय को प्रभावी बनाया है।[1]
शत्रुघ्न और अमिताभ बच्चन
उस दौर के एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन के साथ शत्रुघ्न की एक के बाद एक अनेक फ़िल्में रिलीज होने लगीं। 1979 में यश चोपड़ा के निर्देशन की महत्वाकांक्षी फ़िल्म काला पत्थर आई थी। इसके नायक अमिताभ थे। यह फ़िल्म 1975 में बिहार की कोयला खदान चसनाला में पानी भर जाने और सैकडों मज़दूरों को बचाने की सत्य घटना पर आधारित थी। इस फ़िल्म में शत्रुघ्न ने मंगलसिंह नामक अपराधी का रोल किया था। इन दो महारथियों की टक्कर इस फ़िल्म में आमने-सामने की थी। काला पत्थर तो नहीं चली लेकिन अमिताभ-शत्रु की टक्कर को दर्शकों ने खूब पसंद किया। आगे चलकर अमिताभ-शत्रुघ्न फ़िल्म दोस्ताना (निर्देशक- राज खोसला), शान (निर्देशक- रमेश सिप्पी) तथा नसीब (निर्देशक- मनमोहन देसाई) जैसी फ़िल्मों में साथ-साथ आए।[1]
प्रसिद्ध फ़िल्में
लगभग चार दशकों में शत्रुघ्न सिन्हा ने कम से कम 200 हिन्दी फ़िल्मों में काम किया है। सिन्हा फ़िल्मों में अपने नकारात्मक चरित्र के लिए जाने गये। उनकी प्रसिद्ध फ़िल्मों में ‘रामपुर का लक्ष्मण’, ‘कालीचरण’ मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन के साथ की फ़िल्मों में ‘दोस्ताना’, ‘काला पत्थर’, ‘शान’ और ‘नसीब’ इत्यादि हैं। फ़िल्म 'क्रांति' (1981-मनोज कुमार), वक्त की दीवार (1981-रवि टंडन), नरम-गरम (1981-ऋषिकेश मुखर्जी), कयामत (1983-राज सिप्पी), चोर पुलिस (1983-अमजद खान), माटी माँगे ख़ून (1984-राज खोसला) और खुदगर्ज (1987- राकेश रोशन) का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। उन्होंने पंजाबी फ़िल्म ‘पुत्त जट्टां दे’ और ‘सत श्री अकाल’ में भी अभिनय किया है। अभिनय के अलावा उन्होंने ‘कशमकश’, ‘दोस्त’ और ‘दो नारी’ जैसी फ़िल्मों में गाने में भी हाथ आजमाया। हाल में रिलीज हुई रामगोपाल वर्मा की फ़िल्म ‘रक्तचरित्र’ में उन्होंने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. टी. रामाराव की भूमिका निभाई जिसके लिए उन्होंने पहली बार अपनी मूछें साफ़ करवाई।
राजनीति में
शत्रुघ्न सिन्हा बॉलीवुड से निकलने वाले पहले नेता हैं जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री बनाये गये। मौजूदा समय में वह बिहार के पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सदस्य हैं। शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी सिन्हा ने वर्ष 2010 की सबसे सफल फ़िल्म ‘दबंग’ में प्रसिद्ध अभिनेता सलमान खान के साथ काम करके अपना फ़िल्मी करियर शुरू किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 शत्रुघ्न सिन्हा : बंदूक की गोली जैसी ‘शॉट-गन’ की बोली (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2012।
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