"फ़िरोज़ ख़ान": अवतरणों में अंतर

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==फ़िल्म निर्माण एवं निर्देशन==
==फ़िल्म निर्माण एवं निर्देशन==
फिल्मों से अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन की तरफ रुख किया। उन्होंने लीक से हट कर फिल्में बनाई। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी फिल्में धर्मात्मा, कुर्बानी, जांबाज और दयावान बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वर्ष 1975 में बनी धर्मात्मा पहली भारतीय फिल्म थी जिसकी शूटिंग [[अफगानिस्तान]] में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में फिरोज की पहली हिट फिल्म भी थी। यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्म गॉडफादर पर आधारित थी। 1998 में फिल्म प्रेम अगन से उन्होंने अपने बेटे को फिल्मों में लाने का काम किया पर उनके बेटे फरदीन खान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पो‌र्ट्स प्यार के लिए फिल्म 'जानशीं' बनाई पर फिल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके। फिरोज खान ने आखिरी बार फिल्म वेलकम में काम किया। फिल्म वेलकम में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नजर आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।<ref name="ISN"/> फिरोज खान को बालीवुड की ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता हैै जिन्होंने फिल्म निर्माण की अपनी विशेष शैैली बनाई थी। फिरोज खान की निर्मित फिल्मों पर नजर डालें तो उनकी फिल्में बड़े बजट की हुआ करती थीं। जिनमें बड़े-बड़े सितारे, आकर्षक औैर भव्य सेट, खूबसूरत लोकेशन, दिल को छू लेने वाला गीत, संगीत औैर उम्दा तकनीक देखने को मिलती थी। अभिनेता के रूप में भी फिरोज खान ने बालीवुड के नायक की परम्परागत छवि के विपरीत अपनी एक विशेष शैैली गढ़ी जो आकर्षक औैर तड़क-भड़क वाली छवि थी। उनकी अकड़कर चलने की अदा औैर काउब्वाय वाली इमेज दर्शकों के मन में आज भी बसी हुई हैै। फिल्म निर्माण औैर निर्देेशन के क्रम में फिरोज खान ने हिन्दी फिल्मों में कुछ नई बातों का आगाज किया। अपराध फिल्म में भारत की पहली फिल्म थी जिसमें जर्मनी में कार रेस दिखाई गई थी। धर्मात्मा की शूटिंग के लिए वह अफगानिस्तान के खूबसूरत लोकेशनों पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फिल्म का वहां फिल्मांकन नहीं किया गया था। अपने कैरियर की सबसे हिट फिल्म कुर्बानी से फीरोज खान ने पाकिस्तान की पॉॅप गायिका नाजिया हसन के संगीत कैरियर की शुरुआत कराई। वर्ष 2003 में फिरोज खान ने अपने पुत्र फरदीन खान को लांच करने के लिये जानशीं का निर्माण किया। बॉलीवुड में लेडी किलर के नाम से मशहूर फिरोज खान ने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 60 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ हैं आग, प्यासी शाम, सफर, मेला, खोटे सिक्के, गीता मेरा नाम, इंटरनेशनल क्रुक, काला सोना, शंकर शंभु, नागिन, चुनौती, कुर्बानी वेलकम आदि।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2853/7/70#.VCUId1cqIhB |title= फिल्म निर्माण की विशिष्ट शैली बनाई थी फिरोज खान ने|accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=देशबंधु|language=हिंदी }}</ref>
फिल्मों से अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन की तरफ रुख किया। उन्होंने लीक से हट कर फिल्में बनाई। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी फिल्में धर्मात्मा, कुर्बानी, जांबाज और दयावान बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वर्ष 1975 में बनी धर्मात्मा पहली भारतीय फिल्म थी जिसकी शूटिंग [[अफगानिस्तान]] में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में फिरोज की पहली हिट फिल्म भी थी। यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्म गॉडफादर पर आधारित थी। 1998 में फिल्म प्रेम अगन से उन्होंने अपने बेटे को फिल्मों में लाने का काम किया पर उनके बेटे फरदीन खान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पो‌र्ट्स प्यार के लिए फिल्म 'जानशीं' बनाई पर फिल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके। फिरोज खान ने आखिरी बार फिल्म वेलकम में काम किया। फिल्म वेलकम में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नजर आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।<ref name="ISN"/> फिरोज खान को बालीवुड की ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता हैै जिन्होंने फिल्म निर्माण की अपनी विशेष शैैली बनाई थी। फिरोज खान की निर्मित फिल्मों पर नजर डालें तो उनकी फिल्में बड़े बजट की हुआ करती थीं। जिनमें बड़े-बड़े सितारे, आकर्षक औैर भव्य सेट, खूबसूरत लोकेशन, दिल को छू लेने वाला गीत, संगीत औैर उम्दा तकनीक देखने को मिलती थी। अभिनेता के रूप में भी फिरोज खान ने बालीवुड के नायक की परम्परागत छवि के विपरीत अपनी एक विशेष शैैली गढ़ी जो आकर्षक औैर तड़क-भड़क वाली छवि थी। उनकी अकड़कर चलने की अदा औैर काउब्वाय वाली इमेज दर्शकों के मन में आज भी बसी हुई हैै। फिल्म निर्माण औैर निर्देेशन के क्रम में फिरोज खान ने हिन्दी फिल्मों में कुछ नई बातों का आगाज किया। अपराध फिल्म में भारत की पहली फिल्म थी जिसमें जर्मनी में कार रेस दिखाई गई थी। धर्मात्मा की शूटिंग के लिए वह अफगानिस्तान के खूबसूरत लोकेशनों पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फिल्म का वहां फिल्मांकन नहीं किया गया था। अपने कैरियर की सबसे हिट फिल्म कुर्बानी से फीरोज खान ने पाकिस्तान की पॉॅप गायिका नाजिया हसन के संगीत कैरियर की शुरुआत कराई। वर्ष 2003 में फिरोज खान ने अपने पुत्र फरदीन खान को लांच करने के लिये जानशीं का निर्माण किया। बॉलीवुड में लेडी किलर के नाम से मशहूर फिरोज खान ने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 60 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ हैं आग, प्यासी शाम, सफर, मेला, खोटे सिक्के, गीता मेरा नाम, इंटरनेशनल क्रुक, काला सोना, शंकर शंभु, नागिन, चुनौती, कुर्बानी वेलकम आदि।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2853/7/70#.VCUId1cqIhB |title= फिल्म निर्माण की विशिष्ट शैली बनाई थी फिरोज खान ने|accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=देशबंधु|language=हिंदी }}</ref>
==फ़िल्मी सफ़र==
{|
|-valign="top"
|
{| class="bharattable-pink"
|+ फ़िरोज़ ख़ान की फ़िल्में (बतौर अभिनेता)
|-
! वर्ष
! फ़िल्म
! चरित्र
|-
| 2007
| वैलकम
| सिकन्दर
|-
| 2005
| एक खिलाड़ी एक हसीना
| जहाँगीर ख़ान
|-
| 2003
| जानशीन
|
|-
| 1992
| य़लगार
| राजेश अश्विनी कुमार
|-
| 1988
| दो वक्त की रोटी
| शंकर
|-
| 1988
| दयावान
|
|-
| 1986
| जाँबाज़
| इंस्पेक्टर राजेश सिंह
|-
| 1982
| कच्चे हीरे
|
|-
| 1981
| खून और पानी
|
|-
| 1980
| कुर्बानी
|
|-
| 1977
| जादू टोना
|
|-
| 1977
| दरिन्दा
|
|-
| 1976
| नागिन
| राज
|-
| 1976
| शराफत छोड़ दी मैंने
|
|-
| 1975
| काला सोना
| राकेश
|-
| 1975
| धर्मात्मा
|
|-
| 1975
| रानी और लालपरी
|
|-
| 1974
| अंजान राहें
| आनन्द
|-
| 1974
| इंटरनेशनल क्लॉक
| एस राजेश
|-
| 1974
| गीता मेरा नाम
| राजा
|-
| 1974
| खोटे सिक्के
|
|-
| 1972
| अपराध
|
|-
| 1971
| एक पहेली
| सुधीर
|-
| 1970
| सफ़र
| शेखर कपूर
|-
| 1969
| प्यासी शाम
| अशोक
|-
| 1967
| रात और दिन
| दिलीप
|-
| 1966
| तस्वीर
|
|-
| 1965
| ऊँचे लोग
|
|-
| 1964
| सुहागन
| शंकर
|-
| 1963
| बहुरानी
|
|-
| 1962
| मैं शादी करने चला
|
|-
| 1960
| दीदी
|
|}
{| class="bharattable-pink" style="width:100%"
|+ (बतौर निर्देशक)
|-
! वर्ष
! फ़िल्म
|-
| 2003
| जानशीन
|-
| 1998
| प्रेम अगन
|-
| 1992
| यलगार
|-
| 1988
| दयावान
|-
| 1986
| जाँबाज़
|-
| 1980
| कुर्बानी
|-
| 1975
| धर्मात्मा
|-
| 1972
| अपराध
|}
|}
==भारत के क्लिंट ईस्टवुड==
==भारत के क्लिंट ईस्टवुड==
फिरोज खान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लाकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फिरोज खान को हिंदी फिल्मों का काउ ब्वाय कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फिरोज खान। फिरोज कभी सुपर स्टार नहीं रहे लेकिन उनकी स्टाइल के लोग दीवाने थे और उनकी फिल्मों का इंतज़ार करते थे। जब अपनी आखिरी फिल्म में जब वे लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर रहे थे तो दर्शकों को एहसास भी था कि उनकी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं। कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बाद भी उन्होंने 'वेलकम' फिल्म साइन की और अपना काम हंसते हुए किया। कहते हैं कि उन्होंने अभिनय की कोई फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी उन्हें यह पता था कि कैमरे के सामने कैसे खुद को लाना है। वे हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया। उस दौरान आई 'काला सोना', 'अपराध', और 'खोटे सिक्के' में उनका यह अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आया। कुछ यही स्टाइल बाद में 'यलगार' फिल्म में भी दिखी।<ref name=>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/news/multiplex/celebrity/indian-clint-eastwood-feroz-khan/ |title= फिरोज खान यानी भारत का क्लिंट ईस्टवुड |accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अमर उजाला|language=हिंदी }}</ref>
फिरोज खान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लाकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फिरोज खान को हिंदी फिल्मों का काउ ब्वाय कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फिरोज खान। फिरोज कभी सुपर स्टार नहीं रहे लेकिन उनकी स्टाइल के लोग दीवाने थे और उनकी फिल्मों का इंतज़ार करते थे। जब अपनी आखिरी फिल्म में जब वे लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर रहे थे तो दर्शकों को एहसास भी था कि उनकी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं। कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बाद भी उन्होंने 'वेलकम' फिल्म साइन की और अपना काम हंसते हुए किया। कहते हैं कि उन्होंने अभिनय की कोई फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी उन्हें यह पता था कि कैमरे के सामने कैसे खुद को लाना है। वे हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया। उस दौरान आई 'काला सोना', 'अपराध', और 'खोटे सिक्के' में उनका यह अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आया। कुछ यही स्टाइल बाद में 'यलगार' फिल्म में भी दिखी।<ref name=>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/news/multiplex/celebrity/indian-clint-eastwood-feroz-khan/ |title= फिरोज खान यानी भारत का क्लिंट ईस्टवुड |accessmonthday=26 सितम्बर |accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अमर उजाला|language=हिंदी }}</ref>

07:44, 26 सितम्बर 2014 का अवतरण

फ़िरोज़ ख़ान (अंग्रेज़ी: Feroz Khan, जन्म: 25 सितंबर, 1939 – मृत्यु: 27 अप्रैल, 2009) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक थे। फ़िरोज़ ख़ान अपनी ख़ास शैली, अलग अंदाज़ और किरदारों के लिए जाने जाते रहे। फिल्मों में कहीं वो एक सुंदर हीरो की भूमिका में हैं तो कहीं खूंखार विलेन के रोल में दोनों ही चरित्रों में फ़िरोज़ ख़ान जान डाल देते थे।

जीवन परिचय

फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को बेंगलूर में हुआ था। अफगानी पिता और ईरानी माँ के बेटे फिरोज बेंगलूर से हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे। उनके तीन भाई संजय खान (अभिनेता-निर्माता), अकबर खान और समीर खान हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है। फिरोज की भतीजी और संजय खान की बेटी सुजैन खान की शादी ऋतिक रोशन से हुई, जो फिल्मकार राकेश रोशन के पुत्र हैं। फिरोज खान ने सुंदरी के साथ जिंदगी का सफर 1965 में शुरू किया। दोनों 20 साल तक साथ रहे। 1985 में उनके बीच तलाक हो गया। फ़िरोज़ ख़ान के पुत्र फ़रदीन ख़ान भी अभिनेता हैं।

कॅरियर

बॉलीवुड में फिरोज ख़ान ने अपने कैरियर की शुरूआत 1960 में बनी फिल्म 'दीदी' से की। शुरुआती कुछ फिल्मों में अभिनेता का किरदार निभाने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए खलनायकों की भी भूमिका अदा की खास तौर पर गांव के गुंडों की। वर्ष 1962 में फिरोज ने अंग्रेज़ी भाषा की एक फिल्म 'टार्जन गोज टू इंडिया' में काम किया। इस फिल्म में नायिका सिमी ग्रेवाल थीं। 1965 में उनकी पहली हिट फिल्म 'ऊंचे लोग' आई जिसने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। अभिनय के लिहाज से फिरोज ख़ान के लिए 70 का दशक खास रहा। फिल्म 'आदमी और इंसान' (1970) में अभिनय के लिए फिरोज को फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का पुरस्कार मिला। 70 के दशक में उन्होंने आदमी और इंसान, मेला, धर्मात्मा जैसी बेहतरीन फिल्में दीं। इसी दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के रूप में अपना सफर शुरू किया। उनके इस सफर की शुरुआत फिल्म धर्मात्मा से हुई। वर्ष 1980 की फिल्म कुर्बानी से उन्होंने एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में सभी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कुर्बानी उनके कैरियर की सबसे सफल फिल्म रही। इसमें उनके साथ विनोद खन्ना भी प्रमुख भूमिका में थे। कुर्बानी ने हिंदी सिनेमा को एक नया रूप दिया। कुर्बानी ने ही हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को भी हॉट एंड बोल्ड होने का अवसर दिया। फिल्म में फिरोज और जीनत अमान की बिंदास जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया।[1]

फ़िल्म निर्माण एवं निर्देशन

फिल्मों से अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन की तरफ रुख किया। उन्होंने लीक से हट कर फिल्में बनाई। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी फिल्में धर्मात्मा, कुर्बानी, जांबाज और दयावान बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वर्ष 1975 में बनी धर्मात्मा पहली भारतीय फिल्म थी जिसकी शूटिंग अफगानिस्तान में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में फिरोज की पहली हिट फिल्म भी थी। यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्म गॉडफादर पर आधारित थी। 1998 में फिल्म प्रेम अगन से उन्होंने अपने बेटे को फिल्मों में लाने का काम किया पर उनके बेटे फरदीन खान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पो‌र्ट्स प्यार के लिए फिल्म 'जानशीं' बनाई पर फिल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके। फिरोज खान ने आखिरी बार फिल्म वेलकम में काम किया। फिल्म वेलकम में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नजर आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।[1] फिरोज खान को बालीवुड की ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता हैै जिन्होंने फिल्म निर्माण की अपनी विशेष शैैली बनाई थी। फिरोज खान की निर्मित फिल्मों पर नजर डालें तो उनकी फिल्में बड़े बजट की हुआ करती थीं। जिनमें बड़े-बड़े सितारे, आकर्षक औैर भव्य सेट, खूबसूरत लोकेशन, दिल को छू लेने वाला गीत, संगीत औैर उम्दा तकनीक देखने को मिलती थी। अभिनेता के रूप में भी फिरोज खान ने बालीवुड के नायक की परम्परागत छवि के विपरीत अपनी एक विशेष शैैली गढ़ी जो आकर्षक औैर तड़क-भड़क वाली छवि थी। उनकी अकड़कर चलने की अदा औैर काउब्वाय वाली इमेज दर्शकों के मन में आज भी बसी हुई हैै। फिल्म निर्माण औैर निर्देेशन के क्रम में फिरोज खान ने हिन्दी फिल्मों में कुछ नई बातों का आगाज किया। अपराध फिल्म में भारत की पहली फिल्म थी जिसमें जर्मनी में कार रेस दिखाई गई थी। धर्मात्मा की शूटिंग के लिए वह अफगानिस्तान के खूबसूरत लोकेशनों पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फिल्म का वहां फिल्मांकन नहीं किया गया था। अपने कैरियर की सबसे हिट फिल्म कुर्बानी से फीरोज खान ने पाकिस्तान की पॉॅप गायिका नाजिया हसन के संगीत कैरियर की शुरुआत कराई। वर्ष 2003 में फिरोज खान ने अपने पुत्र फरदीन खान को लांच करने के लिये जानशीं का निर्माण किया। बॉलीवुड में लेडी किलर के नाम से मशहूर फिरोज खान ने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 60 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ हैं आग, प्यासी शाम, सफर, मेला, खोटे सिक्के, गीता मेरा नाम, इंटरनेशनल क्रुक, काला सोना, शंकर शंभु, नागिन, चुनौती, कुर्बानी वेलकम आदि।[2]

फ़िल्मी सफ़र

फ़िरोज़ ख़ान की फ़िल्में (बतौर अभिनेता)
वर्ष फ़िल्म चरित्र
2007 वैलकम सिकन्दर
2005 एक खिलाड़ी एक हसीना जहाँगीर ख़ान
2003 जानशीन
1992 य़लगार राजेश अश्विनी कुमार
1988 दो वक्त की रोटी शंकर
1988 दयावान
1986 जाँबाज़ इंस्पेक्टर राजेश सिंह
1982 कच्चे हीरे
1981 खून और पानी
1980 कुर्बानी
1977 जादू टोना
1977 दरिन्दा
1976 नागिन राज
1976 शराफत छोड़ दी मैंने
1975 काला सोना राकेश
1975 धर्मात्मा
1975 रानी और लालपरी
1974 अंजान राहें आनन्द
1974 इंटरनेशनल क्लॉक एस राजेश
1974 गीता मेरा नाम राजा
1974 खोटे सिक्के
1972 अपराध
1971 एक पहेली सुधीर
1970 सफ़र शेखर कपूर
1969 प्यासी शाम अशोक
1967 रात और दिन दिलीप
1966 तस्वीर
1965 ऊँचे लोग
1964 सुहागन शंकर
1963 बहुरानी
1962 मैं शादी करने चला
1960 दीदी
(बतौर निर्देशक)
वर्ष फ़िल्म
2003 जानशीन
1998 प्रेम अगन
1992 यलगार
1988 दयावान
1986 जाँबाज़
1980 कुर्बानी
1975 धर्मात्मा
1972 अपराध

भारत के क्लिंट ईस्टवुड

फिरोज खान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लाकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फिरोज खान को हिंदी फिल्मों का काउ ब्वाय कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फिरोज खान। फिरोज कभी सुपर स्टार नहीं रहे लेकिन उनकी स्टाइल के लोग दीवाने थे और उनकी फिल्मों का इंतज़ार करते थे। जब अपनी आखिरी फिल्म में जब वे लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर रहे थे तो दर्शकों को एहसास भी था कि उनकी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं। कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बाद भी उन्होंने 'वेलकम' फिल्म साइन की और अपना काम हंसते हुए किया। कहते हैं कि उन्होंने अभिनय की कोई फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी उन्हें यह पता था कि कैमरे के सामने कैसे खुद को लाना है। वे हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया। उस दौरान आई 'काला सोना', 'अपराध', और 'खोटे सिक्के' में उनका यह अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आया। कुछ यही स्टाइल बाद में 'यलगार' फिल्म में भी दिखी।[3]

बिंदास और बेखौफ मिजाज

ख़ुद को किसी दायरे में बांध कर नहीं रखने वाले ही एक दिन दुनिया को अपने सम्मोहन से बांध देते हैं। बॉलीवुड की दुनिया में जहां अभिनेता फिल्में खो देने के डर से अपनी छवि में बंधे रहते हैं वहां एक अभिनेता ऐसा भी था जिसने कभी खुद को किसी छवि में बंधने नहीं दिया। अभिनेता फिरोज खान ने बॉलीवुड में स्टाइलिश और बिंदास होने के जो पैमाने रखे उस तक आज भी कोई नहीं पहुंच पाया है। राजसी अंदाज में उन्होंने एक अर्से तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई प्रसंग और किस्से हैं, जिनमें फिरोज खान ने बेधड़क दिल की बात रखी। अपने इस बिंदास और बेखौफ मिजाज के कारण वे आलोचना के शिकार हुए और कई बेहतरीन फिल्में उनके हाथों से निकल गई। कहते हैं कि संगम के निर्माण के समय राज कपूर ने राजेंद्र कुमार के पहले उनके नाम पर विचार किया था। पुरानी और नयी पीढ़ी के अभिनेताओं के बीच फिरोज एक योजक की तरह रहे। उन्हें अपने मुखर, खुले, आक्रामक और एक हद तक अहंकारी स्वभाव के कारण बदनामी झेलनी पड़ी। इसके बावजूद उन्होंने छवि सुधारने की कोशिश नहीं की। अपने लापरवाह अंदाज में जीते रहे। फिरोज एक मंझे हुए अभिनेता के साथ ही अपनी स्पष्ट राय रखने के लिए जाने जाते थे। कुछ वर्ष पहले उन्होंने पाकिस्तान की स्थिति को लेकर बयान दिया तो वहां के शासकों की नजर में वह चुभ गए। यही वजह रही कि उन्हें पाकिस्तान का वीजा न देने का फैसला हुआ। इसके बावजूद वह अपनी बेबाक राय पर अडिग रहे। हालांकि फिरोज खान ने असल जिंदगी में काफी संघर्ष भी किया है।[1]

सम्मान एवं पुरस्कार

  • उन्हें वर्ष 1970 में फिल्म 'आदमी और इंसान' के लिए फिल्फेयर सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार दिया।
  • वर्ष 2000 में फिरोज को लाइफटाइम अचीवमेंट का फिल्फेयर पुरस्कार दिया गया।

निधन

अपने बेटे फरदीन के करियर को चमकाने की उन्होंने कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। कुछ फिल्मों में फिरोज ने चरित्र रोल भी निभाए, लेकिन 'शेर भले ही बूढ़ा हो जाए, वह घास नहीं खाता' अंदाज में फिरोज ने अपनी आन-बान-शान हमेशा कायम रखी। फिरोज खान कैंसर से पीड़ित थे और मुंबई में उनका लंबे समय तक इलाज चला। 27 अप्रैल, 2009 को उन्होंने बेंगलूर स्थित अपने फार्म हाउस में अंतिम सांस ली।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 स्टाइलिश और बिंदास अभिनेता थे फिरोज खान (हिंदी) insighttvnews। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2014।
  2. फिल्म निर्माण की विशिष्ट शैली बनाई थी फिरोज खान ने (हिंदी) देशबंधु। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2014।
  3. फिरोज खान यानी भारत का क्लिंट ईस्टवुड (हिंदी) अमर उजाला। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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