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पुरातत्वीय संग्रहालय, ग्वालियर
पुरातत्वीय संग्रहालय, ग्वालियर
पुरातत्वीय संग्रहालय, ग्वालियर
विवरण यह संग्रहालय ग्वालियर और इसके आसपास के क्षेत्रों से संग्रहित पुरावस्‍तुओं के विशाल और विविध संग्रह से भरा-पूरा है।
राज्य मध्य प्रदेश
नगर ग्वालियर
स्थापना 1984
गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी संग्रहालय में मौजूद प्रतिमाओं को शैव, वैष्णव, जैन और विविध समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। वे पहली शताब्‍दी ई.पू. से 17वीं शताब्‍दी ईसवी में, जिससे वे संबंधित हैं, भारत में मूर्तिकला और शैली के विकास को दर्शाती है।
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पुरातत्वीय संग्रहालय, ग्वालियर मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले में स्थित है। ग्वालियर का नाम एक सन्‍त 'ग्‍वालिप' के नाम पर पड़ा है। इसके बारे में माना जाता है कि इन्होंने क़िले में किए जा रहे शिकार के दौरान राजा सूरज सेन का कोढ़ ठीक किया था। यह स्‍थान गोपगिरी अथवा गोपाद्रि के नाम से जाना जाता था और बाद में अपभ्रंश होकर यह ग्‍वालियावर या ग्वालियर बन गया। किले के पूर्वी ओर गणेश द्वार और लक्ष्मण द्वार के बीच सन्‍त ग्‍वालिप को समर्पित एक मठ भी देखा जा सकता है।

विशेषताएँ

  • ग्वालियर में ब्रिटिश शासनकाल के अस्‍पताल और जेल की इमारत में 1984 में स्‍थल संग्रहालय स्‍थापित किया गया। ग्वालियर के क़िले के हाथी स्‍तंभ द्वार के सामने स्‍थित इस संग्रहालय में एक विशाल आयताकार कक्ष, इससे जुड़ा एक कक्ष और दो बरामदें, जिनमें से एक आगे तथा दूसरा पीछे के भाग में है, तथा विभिन्‍न प्रकार की प्रदर्शनीय वस्‍तुएं मौजूद हैं।
  • यह संग्रहालय ग्वालियर और इसके आसपास के क्षेत्रों से संग्रहित पुरावस्‍तुओं के विशाल और विविध संग्रह से भरा-पूरा है। इनमें से ग्वालियर ज़िले में स्‍थित अमरोल मोरेना जिले में नरेसर, बटेस्‍वर, पदावलि, मितावली, सिहीनिया, भिंड जिले में खीरत और अतेर, शिवपुरी जिले में तेराही, रनौद और सुरवाया प्रमुख स्‍थान हैं।
  • संग्रहालय में मौजूद प्रतिमाओं को शैव, वैष्णव, जैन और विविध समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। वे पहली शताब्‍दी ई.पू. से 17वीं शताब्‍दी ईसवी में, जिससे वे संबंधित हैं, भारत में मूर्तिकला और शैली के विकास को दर्शाती है।
  • मितावलि से प्राप्‍त मूर्तियां संग्रहालय का सबसे प्राचीन संग्रह है। वे शुंग और कुषाण काल से संबंधित हैं। ये भारी भरकम परिधानों और आभूषणों से सज्‍जित मानव आकार वाली तथा विशालकाय प्रतिमाएं हैं। बलराम, कार्तिकेय और लकुलिस की प्रतिमाएं इस अवधि की उल्‍लेखनीय प्रतिमाएं हैं।
  • नरेश्‍वर, बटेस्‍वर, खीरत, अतेर, रनौद, सुरवाया और पदावलि से प्राप्‍त मूर्ति संग्रह प्रतिहार काल (8वीं शताब्‍दी ई. से 10वीं शताब्‍दी ई.) से सम्‍बंधित है। इस अवधि की मूर्तियों में गुप्त काल की समृद्ध कला परम्‍पराएं और सुघट्यता विद्यमान है। वे पतली, छरहरी, सौन्‍दर्यपूर्ण और दैविक प्रतीत होती हैं। इनमें से नटराज, एकमुखा शिवलिंग, महापशुपतिनाथ शिव, सप्‍तमात्रिका, आदिनाथ, पार्श्‍वनाथ इत्‍यादि कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो संग्रहालय की प्रदर्शन-मंजूषा को समृद्ध बनाते हैं।
  • 11वीं शताब्‍दी ई. की सुहानिया से प्राप्‍त मूर्तियां बाद में किए गए उन प्रयासों को सूचित करती है जिसमें गुप्त काल की विशिष्‍ट कला परम्‍पराओं के तत्‍वों को परिरक्षित रखा गया। वे मौलिक, ऊर्जावान और लावण्‍यमयी लगती है।
  • इस अवधि की उल्‍लेखनीय मूर्तियों में अष्‍टादिकपालों, सुरसुन्‍दरियों, नर्तकियों, विद्याधरों और मिथुन मूर्तियाँ इत्‍यादि शामिल हैं।
  • इसके अलावा, अतेर से प्राप्‍त मूर्तियाँ 17वीं शताब्‍दी ई. के स्‍थानीय भदौरिया राजाओं द्वारा संरक्षित हिन्‍दू मुगल कलाओं के सम्‍मिलन को दर्शाती हैं। [1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संग्रहालय-ग्वालियर (हिन्दी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 9 जनवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख