"मिक्सोडीमा": अवतरणों में अंतर
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'''मिक्सोडीमा''' ([[अंग्रेजी]]: ''Myxedema'') शरीर गठन संबंधी रोग है। जो थाइरॉइड ग्रंथि की न्यून क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। थाइरॉइड रस की कमी के कारण विभिन्न आयु में विभिन्न लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अत: आयु के अनुसार मिक्सोडीमा के विभिन्न नाम भी हैं। भ्रूणावस्था या शिशुकाल में | '''मिक्सोडीमा''' ([[अंग्रेजी]]: ''Myxedema'') शरीर गठन संबंधी रोग है। जो थाइरॉइड ग्रंथि की न्यून क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। थाइरॉइड रस की कमी के कारण विभिन्न आयु में विभिन्न लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अत: आयु के अनुसार मिक्सोडीमा के विभिन्न नाम भी हैं। भ्रूणावस्था या शिशुकाल में होने वाला रोग जड़वामनता<ref>ckretinism</ref> यौतारंभ <ref>puberty</ref>काल में होने वाला रोग यौन मिक्सोडीमा तथा वयस्क अवस्था में होने वाला वयस्क मिक्सोडीमा कहलाता है। वैसे मिक्सोडीमा दो प्रकार का होता है: प्रथम प्रकार थाइरॉइड रस की कमी का कारण थाइरॉइड ग्रंथि का रोग होता है, जिससे यह ग्रंथि रस बनाने की अपनी सामान्य क्रिया नहीं कर पाती है तथा दूसरे प्रकार में शल्य क्रिया से जब थाइराइड ग्रंथि काट दी गई हो तब रस की कमी या रस की अनुपस्थिति हो जाती है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ इस रोग से अधिक पीड़ित रहती है। एक ही वंश के रोगियों में यह रोग बहुधा मिलता है तथा माता पिता द्वारा संचारित होता है। गलगंड <ref>goiter</ref>के स्थानिकमारी स्थान में माँ के शरीर में आयोडीन की कमी से शिशु की थाइरॉइड ग्रंथि का पूर्ण विकास न होने पर शिशु को यह रोग हो सकता है। | ||
शिशुकाल में मोटी त्वचा, मोटा स्वर, बड़ी जीभ, नेत्रों में आपस में अधिक दूरी, शिशु को बैठने, खड़े होने तथा बोलने में अपनी आयु से अधिक समय लगाना, बड़ा सिर, चिपटी नाक, मोटे मोटे ओंठ, खुला मुँह, बाहर लटकती जीभ, स्थूलता, देखने में मूर्ख लगना आदि, इसके लक्षण हैं। बुद्धि का विकास जड़ बुद्धिवाले या मंद बुद्धिवाले बालक के समान होता है। शरीर के बाल गिरना, शरीर के ताप की कमी, स्मरणशक्ति का लोप, आधा पागलपन तथा चयापचय <ref>metabolic</ref> गति की कमी इस रोग में पाई जाती है। चिकित्सा में थाइरॉइड ग्रंथि का निष्कर्ष <ref>extract</ref>दिया जाता है, जिससे रस की प्राकृतिक कमी पूरी हो जाय। | शिशुकाल में मोटी त्वचा, मोटा स्वर, बड़ी जीभ, नेत्रों में आपस में अधिक दूरी, शिशु को बैठने, खड़े होने तथा बोलने में अपनी आयु से अधिक समय लगाना, बड़ा सिर, चिपटी नाक, मोटे मोटे ओंठ, खुला मुँह, बाहर लटकती जीभ, स्थूलता, देखने में मूर्ख लगना आदि, इसके लक्षण हैं। बुद्धि का विकास जड़ बुद्धिवाले या मंद बुद्धिवाले बालक के समान होता है। शरीर के बाल गिरना, शरीर के ताप की कमी, स्मरणशक्ति का लोप, आधा पागलपन तथा चयापचय <ref>metabolic</ref> गति की कमी इस रोग में पाई जाती है। चिकित्सा में थाइरॉइड ग्रंथि का निष्कर्ष <ref>extract</ref>दिया जाता है, जिससे रस की प्राकृतिक कमी पूरी हो जाय। |
13:53, 6 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
मिक्सोडीमा (अंग्रेजी: Myxedema) शरीर गठन संबंधी रोग है। जो थाइरॉइड ग्रंथि की न्यून क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। थाइरॉइड रस की कमी के कारण विभिन्न आयु में विभिन्न लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अत: आयु के अनुसार मिक्सोडीमा के विभिन्न नाम भी हैं। भ्रूणावस्था या शिशुकाल में होने वाला रोग जड़वामनता[1] यौतारंभ [2]काल में होने वाला रोग यौन मिक्सोडीमा तथा वयस्क अवस्था में होने वाला वयस्क मिक्सोडीमा कहलाता है। वैसे मिक्सोडीमा दो प्रकार का होता है: प्रथम प्रकार थाइरॉइड रस की कमी का कारण थाइरॉइड ग्रंथि का रोग होता है, जिससे यह ग्रंथि रस बनाने की अपनी सामान्य क्रिया नहीं कर पाती है तथा दूसरे प्रकार में शल्य क्रिया से जब थाइराइड ग्रंथि काट दी गई हो तब रस की कमी या रस की अनुपस्थिति हो जाती है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ इस रोग से अधिक पीड़ित रहती है। एक ही वंश के रोगियों में यह रोग बहुधा मिलता है तथा माता पिता द्वारा संचारित होता है। गलगंड [3]के स्थानिकमारी स्थान में माँ के शरीर में आयोडीन की कमी से शिशु की थाइरॉइड ग्रंथि का पूर्ण विकास न होने पर शिशु को यह रोग हो सकता है।
शिशुकाल में मोटी त्वचा, मोटा स्वर, बड़ी जीभ, नेत्रों में आपस में अधिक दूरी, शिशु को बैठने, खड़े होने तथा बोलने में अपनी आयु से अधिक समय लगाना, बड़ा सिर, चिपटी नाक, मोटे मोटे ओंठ, खुला मुँह, बाहर लटकती जीभ, स्थूलता, देखने में मूर्ख लगना आदि, इसके लक्षण हैं। बुद्धि का विकास जड़ बुद्धिवाले या मंद बुद्धिवाले बालक के समान होता है। शरीर के बाल गिरना, शरीर के ताप की कमी, स्मरणशक्ति का लोप, आधा पागलपन तथा चयापचय [4] गति की कमी इस रोग में पाई जाती है। चिकित्सा में थाइरॉइड ग्रंथि का निष्कर्ष [5]दिया जाता है, जिससे रस की प्राकृतिक कमी पूरी हो जाय।
रोग रोकने के लिए, जिस प्रदेश में गलगंड रोग पाया जाता हो वहाँ की गर्भवती स्त्री को आयोडीन का सेवन कराना चाहिए। भारत के अनेक स्थानों में, जैसे बिहार के मोतिहारी जिले में गलगंड रोग प्रचुरता से देखा जाता है। अत: वहाँ नमक में आयोडीन यौगिक मिलाकर सरकार द्वारा बेचा जाता है।[6]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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