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एक कलियुग 4,32,000 वर्ष का, द्वापर 8,64,000 वर्ष का, त्रेता युग 12,96,000 वर्ष का तथा सतयुग 17,28,000 वर्ष का होता है। इस गणना के अनुसार रामायण का समय न्यूनतम 8,70,000 वर्ष (वर्तमान कलियुग के 5,250 वर्ष + बीते द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष) सिद्ध होता है। बहुत से विद्वान इसका तात्पर्य ई.पू. 8,000 से लगाते हैं जो आधारहीन है। अन्य विद्वान इसे इससे भी पुराना मानते हैं।
एक कलियुग 4,32,000 वर्ष का, द्वापर 8,64,000 वर्ष का, त्रेता युग 12,96,000 वर्ष का तथा सतयुग 17,28,000 वर्ष का होता है। इस गणना के अनुसार रामायण का समय न्यूनतम 8,70,000 वर्ष (वर्तमान कलियुग के 5,250 वर्ष + बीते द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष) सिद्ध होता है। बहुत से विद्वान् इसका तात्पर्य ई.पू. 8,000 से लगाते हैं जो आधारहीन है। अन्य विद्वान् इसे इससे भी पुराना मानते हैं।
==वाल्मीकि द्वारा श्लोकबद्ध==
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14:56, 6 जुलाई 2017 का अवतरण

रामायण
वाल्मीकि रामायण
वाल्मीकि रामायण
विवरण 'रामायण' लगभग चौबीस हज़ार श्लोकों का एक अनुपम महाकाव्य है, जिसके माध्यम से रघु वंश के राजा राम की गाथा कही गयी है।
रचनाकार महर्षि वाल्मीकि
रचनाकाल त्रेता युग
भाषा संस्कृत
मुख्य पात्र राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, मेघनाद, विभीषण, कुम्भकर्ण और रावण
सात काण्ड बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड), उत्तराकाण्ड
संबंधित लेख रामचरितमानस, रामलीला, पउम चरिउ, रामायण सामान्य ज्ञान, भरत मिलाप
अन्य जानकारी रामायण के सात काण्डों में कथित सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण रामायण में 645 सर्ग मिलते हैं। सर्गानुसार श्लोकों की संख्या 23,440 आती है, जो 24,000 से 560 श्लोक कम है।

रामायण वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है, जिसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके 24,000 श्लोक हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं, जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे 'वाल्मीकि रामायण' या 'बाल्मीकि रामायण' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं, जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।

रचनाकाल

कुछ भारतीय द्वारा यह माना जाता है कि यह महाकाव्य 600 ई.पू. से पहले लिखा गया। उसके पीछे युक्ति यह है कि महाभारत जो इसके पश्चात आया, बौद्ध धर्म के बारे में मौन है; यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये। भाषा-शैली से भी यह पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये। रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवत: बाद में जोड़ा गया था। अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम भगवान विष्णु के अवतार थे। कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य सन्दर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती, पर यह धारणा विवादास्पद है। 600 ई.पू. से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं, जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है।

हिन्दू कालगणना के अनुसार रचनाकाल

रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है। भारतीय कालगणना के अनुसार समय को चार युगों में बाँटा गया है-

  1. सतयुग
  2. त्रेतायुग
  3. द्वापर युग
  4. कलियुग

एक कलियुग 4,32,000 वर्ष का, द्वापर 8,64,000 वर्ष का, त्रेता युग 12,96,000 वर्ष का तथा सतयुग 17,28,000 वर्ष का होता है। इस गणना के अनुसार रामायण का समय न्यूनतम 8,70,000 वर्ष (वर्तमान कलियुग के 5,250 वर्ष + बीते द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष) सिद्ध होता है। बहुत से विद्वान् इसका तात्पर्य ई.पू. 8,000 से लगाते हैं जो आधारहीन है। अन्य विद्वान् इसे इससे भी पुराना मानते हैं।

वाल्मीकि द्वारा श्लोकबद्ध

वाल्मीकि

सनातन धर्म के धार्मिक लेखक तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनायी थी। जहाँ पर भगवान शंकर पार्वती को भगवान श्रीराम की कथा सुना रहे थे, वहाँ कागा (कौवा) का एक घोसला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को नींद आ गई, पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुंडी के रूप में हुआ। काकभुशुंडी ने यह कथा गरुड़ को सुनाई। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा 'अध्यात्म रामायण' के नाम से प्रख्यात है। 'अध्यात्म रामायण' को ही विश्व का सर्वप्रथम रामायण माना जाता है। हृदय परिवर्तन हो जाने के कारण एक दस्यु से ऋषि बन जाने तथा ज्ञानप्राप्ति के बाद वाल्मीकि ने भगवान श्रीराम के इसी वृत्तांत को पुनः श्लोकबद्ध किया। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा श्लोकबद्ध भगवान श्रीराम की कथा को 'वाल्मीकि रामायण' के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है तथा वाल्मीकि रामायण को 'आदि रामायण' के नाम से भी जाना जाता है।

भारत में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद संस्कृत का ह्रास हो गया और भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये। ऐसी स्थिति को अत्यन्त विकट जानकर जनजागरण के लिये महाज्ञानी सन्त तुलसीदास ने एक बार फिर से श्रीराम की पवित्र कथा को देसी भाषा में लिपिबद्ध किया। सन्त तुलसीदास ने अपने द्वारा लिखित भगवान राम की कल्याणकारी कथा से परिपूर्ण इस ग्रंथ का नाम 'रामचरितमानस' रखा। सामान्य रूप से 'रामचरितमानस' को 'तुलसी रामायण' के नाम से जाना जाता है। कालान्तर में भगवान श्रीराम की कथा को अनेक विद्वानों ने अपने अपने बुद्धि, ज्ञान तथा मतानुसार अनेक बार लिखा है। इस तरह से अनेकों रामायणों की रचनाएँ हुई हैं।

काण्ड

धनुष भंग करते राम, द्वारा - राजा रवि वर्मा

रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।

  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड)
  7. उत्तराकाण्ड

सर्ग तथा श्लोक

इस प्रकार सात काण्डों में वाल्मीकि ने रामायण को निबद्ध किया है। उपर्युक्त काण्डों में कथित सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण रामायण में 645 सर्ग मिलते हैं। सर्गानुसार श्लोकों की संख्या 23,440 आती है जो 24,000 से 560 श्लोक कम है।

इन्हें भी देखें: रामचरितमानस, पउम चरिउ, रामायण जी की आरती एवं रामलीला


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

Valmiki Ramayan (संस्कृत)। । अभिगमन तिथि: 9 जुलाई, 2010।

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