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(''''हल् चिह्न''' (्) को हल् चिह्‍न कहना चाहिए न कि हलंत। व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*[https://books.google.co.in/books?id=HpWJyJ_It4UC&pg=PA12&lpg=PA12&dq=%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%8D+%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A8&source=bl&ots=N8kVsWkF9m&sig=DphYEHQ7WAixaxa6SE7lBxC9xkE&hl=hi&sa=X&ved=0ahUKEwiaurfC4O3XAhUDLo8KHU5iCwIQ6AEIQzAG#v=onepage&q=%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%8D%20%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A8&f=false हल् चिह्न]
==संबंधित लेख==
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13:46, 3 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

हल् चिह्न (्) को हल् चिह्‍न कहना चाहिए न कि हलंत। व्यंजन के नीचे लगा हल् चिह्‍न उस व्यंजन के स्वर रहित होने की सूचना देता है, यानी वह व्यंजन विशुद्ध रूप से व्यंजन है। इस तरह से 'जगत्' हलंत शब्द कहा जाएगा क्योंकि यह शब्द व्यंजनांत है, स्वरांत नहीं।

संयुक्‍ताक्षर बनाने के नियम के अनुसार ड् छ् ट् ठ् ड् ढ् द् ह् में हल् चिह्‍न का ही प्रयोग होगा। जैसे :– चिह्‍न, बुड्ढा, विद्‍वान आदि में।

तत्‍सम शब्दों का प्रयोग वांछनीय हो तब हलंत रूपों का ही प्रयोग किया जाए; विशेष रूप से तब जब उनसे समस्त पद या व्युत्पन्न शब्द बनते हों। यथा प्राक् :– (प्रागैतिहासिक), वाक्-(वाग्देवी), सत्-(सत्साहित्य), भगवन्-(भगवद्‍भक्‍ति), साक्षात्-(साक्षात्कार), जगत्-(जगन्नाथ), तेजस्-(तेजस्वी), विद्‍युत्-(विद्‍युल्लता) आदि। तत्सम संबोधन में हे राजन्, हे भगवन् रूप ही स्वीकृत होंगे। हिंदी शैली में हे राजा, हे भगवान लिखे जाएँ। जिन शब्दों में हल् चिहन लुप्‍त हो चुका हो, उनमें उसे फिर से लगाने का प्रयत्‍न न किया जाए। जैसे- महान, विद्‍वान आदि; क्योंकि हिंदी में अब 'महान' से 'महानता' और 'विद्‍वानों' जैसे रूप प्रचलित हो चुके हैं।

व्याकरण ग्रंथों में व्यंजन संधि समझाते हुए केवल उतने ही शब्द दिए जाएँ, जो शब्द रचना को समझने के लिए आवश्‍यक हों (उत् + नयन = उन्नयन, उत् + लास = उल्लास) या अर्थ की दृष्टि से उपयोगी हों (जगदीश, जगन्माता, जगज्जननी)।

हिंदी में हृदयंगम (हृदयम् + गम), उद्‍धरण (उत्/उद् + हरण), संचित (सम् + चित्) आदि शब्दों का संधि-विच्छेद समझाने की आवश्‍यकता प्रतीत नहीं होती। इसी तरह 'साक्षात्कार', 'जगदीश', 'षट्कोश' जैसे शब्दों के अर्थ को समझाने की आवश्‍यकता हो तभी उनकी संधि का हवाला दिया जाए। हिंदी में इन्हें स्वतंत्र शब्दों के रूप में ग्रहण करना ही अच्छा होगा।[1] इन्हें भी देखें: हल् का महत्त्व, योजक चिह्न, लाघव चिह्न एवं लोप चिह्न


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Halanth हल् चिह्न (हिंदी) हिन्दी एक पहचान। अभिगमन तिथि: 3 दिसंबर, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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