"पटियाला रियासत": अवतरणों में अंतर
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==कृषि== | |||
पटियाला रियासत का बहुत सा हिस्सा एक दूसरे से विशेष दूरी पर होने से [[कृषि]] व्यवसाय प्रत्येक भाग में विभिन्न प्रकार से होता था| यहाँ की अधिकांश जमीन समतल है किन्तु [[वर्षा]] की कमी के कारण उपज सब जगह एक सी नहीं होती थी। यहाँ मुख्यतः [[गेहूँ]], [[ज्वार]], [[कपास]], [[चना]], [[मक्का|मकई]], सोंठ, [[चावल]], [[आलु]] और [[गन्ना|गन्ने]] की खेती की जाती थी। यहाँ जंगल का क्षेत्रफल भी काफी था, जिनमें इमारती लकड़ी बहुतायत से होती थी। घास के लिये भी काफी जमीन थी। कृषि तथा दुसरे कामों के लिये ठोर भी अच्छी तादाद में थी। यहाँ विभिन्न जिलों में घोड़े भी अच्छे मिलते थे।<ref name="pp">{{cite web |url=https://alvitrips.com/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-hist/ |title=पटियाला रियासत का इतिहास|accessmonthday=28 मार्च|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= alvitrips.com|language=हिंदी}}</ref> | |||
==चार विभाग== | |||
पटियाला नगर में लगभग 80000 रुपया लगाकर विक्टोरिया मेमोरियल पुर हाऊस स्थापित किया गया है। विक्टोरिया गर्लस स्कूल, लेडी डफरिन हॉस्पिटल और दाई तथा नर्सों की पाठशाला आदि भी महाराजा भूपेन्द्र सिंह ने बनवाये थे। शासन-सम्बन्धी कार्यो के लिये राज्य में चार विभाग मुख्य थे– | |||
#अर्थ विभाग | |||
#विदेश विभाग | |||
#न्याय विभाग | |||
#सेना विभाग | |||
इन सब विभागों के कार्यो की देखरेख स्वयं महाराजा भूपेन्द्र सिंह अपने निजि सचिव के जरिए करते थे। पटियाला राज्य करमगढ़, पिंजोर, अमरगढ़, अनहदगढ़, और महिन्द्रगढ नामक पांच भागों में विभाजित था, जिन्हें 'निजामत' कहते थे। प्रत्येक निजामत एक नाजिम के अधीन थी। | |||
==भूमिकर== | |||
सन् [[1862]] के पहले भूमिकर फसल का एक हिस्सा लिया जाता था। फिर यह नक॒द रुपयों में वसूल किया जाने लगा। सन् [[1901]] में यहाँ नई पद्धति के अनुसार बन्दोबस्त कायम किया गया था। भूमिकर के अतिरिक्त इरिगेशन वर्क, रेलवे, स्टाम्प तथा एक्साइज ड्यूटी आदि से भी राज्य को अच्छी आमदनी होती थी। प्रधान न्यायालय को 'सदर कोट' कहते थे, इसे दीवानी और फौजदारी मामलों के कुल अधिकार प्राप्त थे। सिर्फ प्राण-दंड के मामलों में इस कोर्ट को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मंजूरी प्राप्त करना होती थी। पटियाला रियासत में 'भादौड़ के सरदार' नामक बहुत से [[ज़मींदार]] थे। इन ज़मीदारों की वार्षिक आय लगभग 70000 रुपये थी। खामामन गाँवों के जागीरदारों को भी राज्य से प्रतिवर्ष 90000 रुपये दिये जाते थे। | |||
[[पटियाला]] नरेशों को अपना सिक्का जारी करने का अधिकार [[अहमदशाह दुर्रानी]] ने सन् [[1767]] में प्रदान किया था। यहाँ तांबे का सिक्का कभी नहीं जारी हुआ। एक बार महाराज नरेंद्र सिंह ने अठन्नी और चवन्नी चलाई थी। रुपये और अशर्फियाँ सन् [[1895]] तक राज्य की [[टकसाल]] में ढलती रहीं। अन्त तक सिक्कों पर वही पुरानी इबारात खुदी रहती थी कि "अहमदशाह की आज्ञानुसार जारी हुआ।" पटियाले का रुपया राजशाही रुपया कहलाता था। नानकशाही रूपये भी ढाले जाते थे। यह केवल दशहरे या [[दिवाली]] पर ही काम आते थे। इस रुपये पर यह शेर छपा रहता है– '''देग तेगो फतह नसरत बेदंग, याफ्त भज नानक गुरु गोविन्द्सिंह'''।<ref name="pp"/> | |||
[[23 मार्च]] सन् [[1938]] को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई। उनके बाद उनके पुत्र महाराजा यादवेन्द्र सिंह पटियाला रियासत की गद्दी पर विराजे, जो पटियाला रियासत के अंतिम शासक थे। | |||
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06:10, 28 मार्च 2024 का अवतरण
पटियाला रियासत (अंग्रेज़ी: Patiyala state) पंजाब की सिक्ख रियासतों में सबसे बड़ी थी। यह तीन भागों में विभक्त थी। जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा दक्षिणी किनारे पर स्थित था, दूसरा शिमला के पास के पर्वतीय प्रदेश में, तीसरा राजधानी से 180 मील की दूरी पर था। इस तीसरे का नाम नारनौल परगना था। पटियाला राज्य का क्षेत्रफल 5492 वर्ग मील था। सन् 1911 की मर्दुमशुमारी के अनुसार पटियाला रियासत की जनसंख्या 1410659 थी। पटियाला रियासत में उर्दू और पंजाबी भाषा बोली जाती थी। पटियाला रियासत की कुल वार्षिक आमदनी 11700000 के करीब थी। इस रियासत की स्थापना 18 शताब्दी में हुई थी। पटियाला रियासत के संस्थापक राजा आला सिंह थे।
रियासत के राजा
- राजा आला सिंह
- राजा अमरसिंह
- महाराजा साहिब सिंह
- महाराजा करम सिंह
- महाराजा नरेंद्र सिंह
- महाराजा महेन्द्र सिंह
- महाराजा राजेन्द्र सिंह
- महाराजा भूपेन्द्र सिंह
- महाराजा यादवेन्द्र सिंह
कृषि
पटियाला रियासत का बहुत सा हिस्सा एक दूसरे से विशेष दूरी पर होने से कृषि व्यवसाय प्रत्येक भाग में विभिन्न प्रकार से होता था| यहाँ की अधिकांश जमीन समतल है किन्तु वर्षा की कमी के कारण उपज सब जगह एक सी नहीं होती थी। यहाँ मुख्यतः गेहूँ, ज्वार, कपास, चना, मकई, सोंठ, चावल, आलु और गन्ने की खेती की जाती थी। यहाँ जंगल का क्षेत्रफल भी काफी था, जिनमें इमारती लकड़ी बहुतायत से होती थी। घास के लिये भी काफी जमीन थी। कृषि तथा दुसरे कामों के लिये ठोर भी अच्छी तादाद में थी। यहाँ विभिन्न जिलों में घोड़े भी अच्छे मिलते थे।[1]
चार विभाग
पटियाला नगर में लगभग 80000 रुपया लगाकर विक्टोरिया मेमोरियल पुर हाऊस स्थापित किया गया है। विक्टोरिया गर्लस स्कूल, लेडी डफरिन हॉस्पिटल और दाई तथा नर्सों की पाठशाला आदि भी महाराजा भूपेन्द्र सिंह ने बनवाये थे। शासन-सम्बन्धी कार्यो के लिये राज्य में चार विभाग मुख्य थे–
- अर्थ विभाग
- विदेश विभाग
- न्याय विभाग
- सेना विभाग
इन सब विभागों के कार्यो की देखरेख स्वयं महाराजा भूपेन्द्र सिंह अपने निजि सचिव के जरिए करते थे। पटियाला राज्य करमगढ़, पिंजोर, अमरगढ़, अनहदगढ़, और महिन्द्रगढ नामक पांच भागों में विभाजित था, जिन्हें 'निजामत' कहते थे। प्रत्येक निजामत एक नाजिम के अधीन थी।
भूमिकर
सन् 1862 के पहले भूमिकर फसल का एक हिस्सा लिया जाता था। फिर यह नक॒द रुपयों में वसूल किया जाने लगा। सन् 1901 में यहाँ नई पद्धति के अनुसार बन्दोबस्त कायम किया गया था। भूमिकर के अतिरिक्त इरिगेशन वर्क, रेलवे, स्टाम्प तथा एक्साइज ड्यूटी आदि से भी राज्य को अच्छी आमदनी होती थी। प्रधान न्यायालय को 'सदर कोट' कहते थे, इसे दीवानी और फौजदारी मामलों के कुल अधिकार प्राप्त थे। सिर्फ प्राण-दंड के मामलों में इस कोर्ट को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मंजूरी प्राप्त करना होती थी। पटियाला रियासत में 'भादौड़ के सरदार' नामक बहुत से ज़मींदार थे। इन ज़मीदारों की वार्षिक आय लगभग 70000 रुपये थी। खामामन गाँवों के जागीरदारों को भी राज्य से प्रतिवर्ष 90000 रुपये दिये जाते थे।
पटियाला नरेशों को अपना सिक्का जारी करने का अधिकार अहमदशाह दुर्रानी ने सन् 1767 में प्रदान किया था। यहाँ तांबे का सिक्का कभी नहीं जारी हुआ। एक बार महाराज नरेंद्र सिंह ने अठन्नी और चवन्नी चलाई थी। रुपये और अशर्फियाँ सन् 1895 तक राज्य की टकसाल में ढलती रहीं। अन्त तक सिक्कों पर वही पुरानी इबारात खुदी रहती थी कि "अहमदशाह की आज्ञानुसार जारी हुआ।" पटियाले का रुपया राजशाही रुपया कहलाता था। नानकशाही रूपये भी ढाले जाते थे। यह केवल दशहरे या दिवाली पर ही काम आते थे। इस रुपये पर यह शेर छपा रहता है– देग तेगो फतह नसरत बेदंग, याफ्त भज नानक गुरु गोविन्द्सिंह।[1]
23 मार्च सन् 1938 को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई। उनके बाद उनके पुत्र महाराजा यादवेन्द्र सिंह पटियाला रियासत की गद्दी पर विराजे, जो पटियाला रियासत के अंतिम शासक थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 पटियाला रियासत का इतिहास (हिंदी) alvitrips.com। अभिगमन तिथि: 28 मार्च, 2024।
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