"लंगुड़ी": अवतरणों में अंतर
(→इतिहास) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
लंगुड़ी गाँव [[उड़ीसा]] राज्य की राजधानी [[भुवनेश्वर]] से क़रीब 45 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्थान पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहाँ स्थित लगभग आधा दर्जन पहाड़ियों में पुरातात्त्विक महत्त्व के कई अवशेष मिले हैं। | लंगुड़ी गाँव [[उड़ीसा]] राज्य की राजधानी [[भुवनेश्वर]] से क़रीब 45 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्थान पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहाँ स्थित लगभग आधा दर्जन पहाड़ियों में पुरातात्त्विक महत्त्व के कई अवशेष मिले हैं। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
यह स्थल सन [[1996]] में [[बौद्ध]] [[स्तूप|स्तूपों]], मठों, पत्थर को काटकर बनाई गई गुफ़ाओं और हाल में [[सम्राट अशोक]] की पत्थर की दो नायाब मूर्तियों के मिलने से अतिमहत्त्वपूर्ण हो गया है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार इसे ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है और उम्मीद की जा रही है कि इनसे कुछ ऐतिहासिक रहस्यों का खुलासा हो सकता है। इस क्षेत्र में 1996 में सबसे पहले एक मठ की खोज की गयी | यह स्थल सन [[1996]] में [[बौद्ध]] [[स्तूप|स्तूपों]], मठों, पत्थर को काटकर बनाई गई गुफ़ाओं और हाल में [[सम्राट अशोक]] की पत्थर की दो नायाब मूर्तियों के मिलने से अतिमहत्त्वपूर्ण हो गया है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार इसे ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है और उम्मीद की जा रही है कि इनसे कुछ ऐतिहासिक रहस्यों का खुलासा हो सकता है। इस क्षेत्र में 1996 में सबसे पहले एक मठ की खोज की गयी थी। <ref>(खोजकर्ता-इतिहासकार करुणा सागर बेहरा)</ref> | ||
====<u>तीर्थ स्थल</u>==== | ====<u>तीर्थ स्थल</u>==== | ||
यह मठ पुष्पगिरि का वही बौद्ध तीर्थ स्थल साबित हुआ, जिसके बारे में प्रसिद्ध चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] ने अपने यात्रा वृत्तांत '''सी-यू-की''' में उल्लेख किया है। यह स्थल होयसलों की राजधानी भी रहा है। इस युग के मन्दिरों में सन 1193 ई. में निर्मित काशी विश्वेश्वर मन्दिर, नानेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं। | यह मठ पुष्पगिरि का वही बौद्ध तीर्थ स्थल साबित हुआ, जिसके बारे में प्रसिद्ध चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] ने अपने यात्रा वृत्तांत '''सी-यू-की''' में उल्लेख किया है। यह स्थल होयसलों की राजधानी भी रहा है। इस युग के मन्दिरों में सन 1193 ई. में निर्मित काशी विश्वेश्वर मन्दिर, नानेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं। | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
====<u>अवधारणाएँ </u>==== | ====<u>अवधारणाएँ </u>==== | ||
पुरातत्त्वविदों का मानना है कि लंगुड़ी में मिले अवशेष उड़ीसा के [[इतिहास]] में विशेषकर पहली और छठी सदी के रिक्त स्थानों को भर सकते हैं, जिनके बारे में अभी ज़्यादा जानकारी नहीं है। साथ ही वे प्राचीन साहित्य में वर्णित घटनाओं के भौतिक साक्ष्य भी साबित हो सकते हैं। इस स्थान की गहन खोज करने पर इतिहास की कई कड़ियों को जोड़ा जा सकता है। | पुरातत्त्वविदों का मानना है कि लंगुड़ी में मिले अवशेष उड़ीसा के [[इतिहास]] में विशेषकर पहली और छठी सदी के रिक्त स्थानों को भर सकते हैं, जिनके बारे में अभी ज़्यादा जानकारी नहीं है। साथ ही वे प्राचीन साहित्य में वर्णित घटनाओं के भौतिक साक्ष्य भी साबित हो सकते हैं। इस स्थान की गहन खोज करने पर इतिहास की कई कड़ियों को जोड़ा जा सकता है। | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 18: | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{उड़ीसा के ऐतिहासिक स्थान}} | |||
{{उड़ीसा के पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category:उड़ीसा राज्य]] | [[Category:उड़ीसा राज्य]] | ||
[[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:इतिहास कोश]][[Category:उड़ीसा के धार्मिक स्थल]] | ||
[[Category:उड़ीसा के ऐतिहासिक स्थान]] | |||
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:58, 7 मार्च 2011 का अवतरण
लंगुड़ी गाँव उड़ीसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से क़रीब 45 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्थान पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहाँ स्थित लगभग आधा दर्जन पहाड़ियों में पुरातात्त्विक महत्त्व के कई अवशेष मिले हैं।
इतिहास
यह स्थल सन 1996 में बौद्ध स्तूपों, मठों, पत्थर को काटकर बनाई गई गुफ़ाओं और हाल में सम्राट अशोक की पत्थर की दो नायाब मूर्तियों के मिलने से अतिमहत्त्वपूर्ण हो गया है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार इसे ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है और उम्मीद की जा रही है कि इनसे कुछ ऐतिहासिक रहस्यों का खुलासा हो सकता है। इस क्षेत्र में 1996 में सबसे पहले एक मठ की खोज की गयी थी। [1]
तीर्थ स्थल
यह मठ पुष्पगिरि का वही बौद्ध तीर्थ स्थल साबित हुआ, जिसके बारे में प्रसिद्ध चीनी यात्री युवानच्वांग ने अपने यात्रा वृत्तांत सी-यू-की में उल्लेख किया है। यह स्थल होयसलों की राजधानी भी रहा है। इस युग के मन्दिरों में सन 1193 ई. में निर्मित काशी विश्वेश्वर मन्दिर, नानेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं।
प्राचीन अवशेष
यहाँ अशोक की जो दो अंग रहित प्रतिमाएँ मिली हैं- उनमें पहली प्रतिमा पत्थर के पटल पर उकेरी गई है। इसके अलावा लंगुड़ी और आस पास की पहाड़ियों में चार स्तूप और पत्थर काट कर बनाई गई 28 गुफ़ाएँ मिली हैं। युवानच्वांग ने ओडोरा (आधुनिक उड़ीसा) में बनाए उन दस स्तूपों के बारे में भी लिखा है, जहाँ बुद्ध ने प्रवचन दिया था। हालांकि इतिहासकारों को अभी तक बुद्ध के उड़ीसा जाने के सबूत नहीं मिले हैं। लेकिन पास की पहाड़ियों, दुबरी और कायमा में स्तूपों से, जिन्हें अभी खोदा नहीं गया है, उनका विश्वास पुख्ता हो गया है कि साहित्य में वर्णित अशोक के बनाए दस स्तूप लंगुड़ी और कायमा के बीच जिस प्राचीन शहर के अवशेष हैं, दरअसल वह राजधानी नगरी दंतपुरा थी, जहाँ से बुद्ध के पवित्र दाँतो को श्रीलंका के कैंडी में पहुँचाया गया था।
अवधारणाएँ
पुरातत्त्वविदों का मानना है कि लंगुड़ी में मिले अवशेष उड़ीसा के इतिहास में विशेषकर पहली और छठी सदी के रिक्त स्थानों को भर सकते हैं, जिनके बारे में अभी ज़्यादा जानकारी नहीं है। साथ ही वे प्राचीन साहित्य में वर्णित घटनाओं के भौतिक साक्ष्य भी साबित हो सकते हैं। इस स्थान की गहन खोज करने पर इतिहास की कई कड़ियों को जोड़ा जा सकता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (खोजकर्ता-इतिहासकार करुणा सागर बेहरा)