शिशुपालगढ़
शिशुपालगढ़ एक ऐतिहासिक स्थान, जो उड़ीसा में भुवनेश्वर नगर से लगभग डेढ़ मील की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह कलिंग की प्राचीन राजधानी था। भुवनेश्वर के निकट इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष स्थित हैं। यहाँ 1949 ई. में विस्तृत उत्खनन किया गया था।
इतिहास
उड़ीसा के भुवनेश्वर के निकट स्थित इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष पाये जाते हैं। यहाँ विस्तृत उत्खनन कार्य वर्ष 1949 में प्रारम्भ किया गया था। इस नगर का संबंध प्रसिद्ध हिन्दू महाकाव्य 'महाभारत' के शिशुपाल से नहीं जान पड़ता, क्योंकि इसका अस्तित्व काल तीसरी शती ई. पू. से चौथी शती ई. तक है।
उत्खनन
शिशुपालगढ़ से दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर कमल पुष्प। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहाँ से उपलब्ध सामग्री का सबसे बड़ा भाग मृद्भाण्ड हैं। इन मृद्भाण्डों में उत्तरीय कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड, कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तथा रूलेटेड मृद्भाण्ड उल्लेखनीय हैं।
अशोक का शिलालेख
शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर धौली नामक स्थान है, जो मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख[1] के लिए प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम 'तोसलि' कहा गया है। उस समय इस स्थान के आस-पास एक विशाल नगर स्थित रहा होगा, जैसा कि खंडहरों तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। ह. कृ. महताब के मत में केसरी वंशीय नरेश शिशुपाल केसरी के नाम पर ही इसका 'शिशुपालगढ़' का नामकरण हुआ होगा।[2]
खारवेल का अभिलेख
शिशुपालगढ़ से छह मील दूर 'खंडगिरि' तथा 'उदयगिरि की पहाडि़याँ' हैं, जहाँ दो प्रसिद्ध गुफ़ाओं में ई. सन के पूर्व के अभिलेख प्राप्त हुए हैं। 'हाथीगुम्फ़ा' नामक एक गुफ़ा में कलिंगराज खारवेल का और बैकुंठपुर गुफ़ा में उसकी रानी का अभिलेख अंकित है। ये गुफ़ाएँ तीसरी शती ई. पू. में आजीवक साधुओं के रहने के लिए अशोक ने बनवाई थीं, जैसा कि उसके अभिलेख से जान पड़ता है। खारवेल के लेख में इस स्थान का नाम कलिंग नगर दिया हुआ है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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