"आत्मबोध -कन्हैयालाल नंदन": अवतरणों में अंतर
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फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया | फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया | ||
और ,यह सब कुछ मैं ही था | और, यह सब कुछ मैं ही था | ||
यह मैं | यह मैं | ||
बहुत देर बाद जान पाया। | बहुत देर बाद जान पाया। |
11:58, 23 अगस्त 2011 का अवतरण
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यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ! |
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