"खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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<poem>खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, | <poem> | ||
खिडकी खुली है | खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, | ||
खिडकी खुली है ग़ालिबन उनके मकान की। | |||
हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो, | हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो, | ||
आ जायेगी | आ जायेगी ज़मीन पे छत आसमान की। | ||
बुझ जाये सरे आम ही जैसे कोई चिराग, | बुझ जाये सरे आम ही जैसे कोई चिराग, | ||
कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान | कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की। | ||
ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी, | ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी, | ||
हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान | हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान की। | ||
ज़ुल्फों के पेंचो - ख़म में उसे मत तलाशिये, | |||
ये शायरी | ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की। | ||
'नीरज' से बढ़कर और धनी है कौन, | 'नीरज' से बढ़कर और धनी है कौन, | ||
उसके हृदय में पीर है सारे जहान | उसके हृदय में पीर है सारे जहान की। | ||
06:42, 3 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
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खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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