"एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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<poem>एक | <poem> | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर ! | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर! | |||
बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उसे | बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उसे | ||
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हो गया कूल नाराज जिस नाव से | हो गया कूल नाराज जिस नाव से | ||
पा गई प्यार वह एक | पा गई प्यार वह एक मंझधार का, | ||
बुझ गया जो दीया भोर में दीन-सा | बुझ गया जो दीया भोर में दीन-सा | ||
बन गया रात सम्राट अंधियार का, | बन गया रात सम्राट अंधियार का, | ||
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जो लुटा आज कल फिर बसा भी वही, | जो लुटा आज कल फिर बसा भी वही, | ||
एक मैं ही कि जिसके चरण से धरा | एक मैं ही कि जिसके चरण से धरा | ||
रोज तिल-तिल धसकती रही उम्र-भर ! | रोज तिल-तिल धसकती रही उम्र-भर! | ||
एक | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर ! | साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर! | ||
प्यार इतना किया जिंदगी में कि जड़- | प्यार इतना किया जिंदगी में कि जड़- | ||
मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया, | मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया, | ||
पंक्ति 55: | पंक्ति 56: | ||
भिक्षु के हाथ पर चंद्रमा धर दिया, | भिक्षु के हाथ पर चंद्रमा धर दिया, | ||
भक्ति-अनुरक्ति ऐसी मिली, सृष्टि की | भक्ति-अनुरक्ति ऐसी मिली, सृष्टि की | ||
शक्ल हर एक मेरी तरह हो गई, | शक्ल हर एक मेरी तरह हो गई, | ||
जिस जगह आँख मूँदी निशा आ गई, | जिस जगह आँख मूँदी निशा आ गई, | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 64: | ||
वह न जाने रतन कौन-सा खो गया? | वह न जाने रतन कौन-सा खो गया? | ||
खोजती-सी जिसे दूर मुझसे स्वयं | खोजती-सी जिसे दूर मुझसे स्वयं | ||
आयु मेरी खिसकती रही उम्र-भर | आयु मेरी खिसकती रही उम्र-भर! | ||
एक | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर ! | साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर! | ||
वेश भाए न जाने तुझे कौन-सा? | वेश भाए न जाने तुझे कौन-सा? | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 80: | ||
किस तरह खेल क्या खेलता तू मिले | किस तरह खेल क्या खेलता तू मिले | ||
खेल खेले इसी से सभी विश्व के | खेल खेले इसी से सभी विश्व के, | ||
कब न जाने करे याद तू इसलिए | कब न जाने करे याद तू इसलिए | ||
याद कोई कसकती रही उम्र-भर ! | याद कोई कसकती रही उम्र-भर! | ||
एक | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर! | साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर! | ||
रोज ही रात आई गई, रोज ही | रोज ही रात आई गई, रोज ही | ||
आँख झपकी मगर नींद आई नहीं | आँख झपकी मगर नींद आई नहीं, | ||
रोज ही हर सुबह, रोज ही हर कली | रोज ही हर सुबह, रोज ही हर कली | ||
खिल गई तो मगर मुस्कुराई नहीं, | खिल गई तो मगर मुस्कुराई नहीं, | ||
नित्य ही रास ब्रज में रचा चाँद ने | नित्य ही रास ब्रज में रचा चाँद ने | ||
पर न बाजी बाँसुरिया कभी श्याम की | पर न बाजी बाँसुरिया कभी श्याम की, | ||
इस तरह उर अयोध्या बसाई गई | इस तरह उर अयोध्या बसाई गई | ||
याद भूली न लेकिन किसी राम की | याद भूली न लेकिन किसी राम की, | ||
हर जगह जिंदगी में लगी कुछ कमी | हर जगह जिंदगी में लगी कुछ कमी | ||
हर हँसी आँसुओं में नहाई मिली | हर हँसी आँसुओं में नहाई मिली, | ||
हर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तक | हर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तक | ||
आग कोई दहकती रही उम्र-भर ! | आग कोई दहकती रही उम्र-भर! | ||
एक | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
सांस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !! | सांस मेरी सिसकती रही उम्र-भर!! | ||
खोजता ही फिरा पर अभी तक मुझे | खोजता ही फिरा पर अभी तक मुझे | ||
पंक्ति 109: | पंक्ति 110: | ||
'सत्य है वह मगर आजमाना नहीं', | 'सत्य है वह मगर आजमाना नहीं', | ||
धरम के पास पहुँचा, पता यह चला | |||
मंदिरों-मस्जिदों में अभी बंद है, | मंदिरों-मस्जिदों में अभी बंद है, | ||
जोगियों ने जताया है कि जप-योग है | जोगियों ने जताया है कि जप-योग है | ||
भोगियों से सुना भोग-आनंद है | भोगियों से सुना भोग-आनंद है, | ||
किंतु पूछा गया नाम जब प्रेम से | किंतु पूछा गया नाम जब प्रेम से | ||
धूल से वह लिपट फूटकर रो पड़ा, | धूल से वह लिपट फूटकर रो पड़ा, | ||
बस तभी से व्यथा देख संसार की | बस तभी से व्यथा देख संसार की | ||
आँख मेरी छलकती रही उम्र-भर ! | आँख मेरी छलकती रही उम्र-भर! | ||
एक | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !! | साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर!! | ||
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11:47, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण
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एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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