"ओ हर सुबह जगाने वाले -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर

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<poem>ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले
<poem>
दुःख रचना था इतना जग में, तो फिर मुझे नयन मत देता
ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले,
दुःख रचना था इतना जग में, तो फिर मुझे नयन मत देता।


जिस दरवाज़े गया ,मिले बैठे अभाव, कुछ बने भिखारी
जिस दरवाज़े गया, मिले बैठे अभाव, कुछ बने भिखारी,
पतझर के घर, गिरवी थी ,मन जो भी मोह गई फुलावारी
पतझर के घर, गिरवी थी, मन जो भी मोह गई फुलवारी।
कोई था बदहाल धूप में, कोई था गमगीन छाँवों में
कोई था बदहाल धूप में, कोई था गमगीन छाँवों में,
महलों से कुटियों तक थी सुख की दुःख से रिश्तेदारी
महलों से कुटियों तक थी सुख की दुःख से रिश्तेदारी।
ओ हर खेल खिलाने वाले , ओ हर रस रचाने वाले
ओ हर खेल खिलाने वाले , ओ हर रस रचाने वाले
घुने खिलौने थे जो तेरे, गुड़ियों को बचपन मत देता
घुने खिलौने थे जो तेरे, गुड़ियों को बचपन मत देता।


गीले सब रुमाल अश्रु की पनहारिन हर एक डगर थी
गीले सब रुमाल अश्रु की पनहारिन हर एक डगर थी,
शबनम की बूंदों तक पर निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी
शबनम की बूंदों तक पर निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी।
निरवंशी थे स्वपन दर्द से मुक्त न था कोई भी आँचल
निरवंशी थे स्वप्न दर्द से मुक्त न था कोई भी आँचल,
कुछ के चोट लगी थी बाहर कुछ के चोट लगी भीतर थी
कुछ के चोट लगी थी बाहर कुछ के चोट लगी भीतर थी।
ओ बरसात बुलाने वाले ओ बादल बरसाने वाले
ओ बरसात बुलाने वाले, ओ बादल बरसाने वाले,
आंसू इतने प्यारे थे तो मौसम को सावन मत देता
आंसू इतने प्यारे थे तो मौसम को सावन मत देता।


भूख़ फलती थी यूँ गलियों में , ज्यों फले यौवन कनेर का
भूख़ फलती थी यूँ गलियों में , ज्यों फले यौवन कनेर का,
बीच ज़िन्दगी और मौत के फासला था बस एक मुंडेर का
बीच ज़िन्दगी और मौत के फासला था बस एक मुंडेर का।
मजबूरी इस कदर की बहारों में गाने वाली बुलबुल को
मजबूरी इस कदर कि बहारों में गाने वाली बुलबुल को,
दो दानो के लिए करना पड़ता था कीर्तन कुल्लेर का
दो दानो के लिए करना पड़ता था कीर्तन कुल्लेर का।
ओ हर पलना झुलाने वाले ओ हर पलंग बिछाने वाले
ओ हर पलना झुलाने वाले, ओ हर पलंग बिछाने वाले,
सोना इतना मुश्किल था, तो सुख के लाख सपन मत देता
सोना इतना मुश्किल था, तो सुख के लाख सपन मत देता।


यूँ चलती थी हाट की बिकते फूल , दाम पाते थे माली
यूँ चलती थी हाट कि बिकते फूल , दाम पाते थे माली,
दीपों से ज्यादा अमीर थी , उंगली दीप बुझाने वाली
दीपों से ज्यादा अमीर थी , उंगली दीप बुझाने वाली।
और यहीं तक नहीं , आड़ लेके सोने के सिहांसन की
और यहीं तक नहीं, आड़ लेके सोने के सिहांसन की,
पूनम को बदचलन बताती थी अमावास की रजनी काली
पूनम को बदचलन बताती थी अमावस की रजनी काली।
ओ हर बाग़ लगाने वाले ओ हर नीड़ लगाने वाले
ओ हर बाग़ लगाने वाले, ओ हर नीड़ लगाने वाले,
इतना था अन्याय जो जग में तो फिर मुझे विनम्र वचन मत देता
इतना था अन्याय जो जग में तो फिर मुझे विनम्र वचन मत देता।


क्या अजीब प्यास की अपनी उमर पी रहा था हर प्याला
क्या अजीब प्यास की अपनी उमर पी रहा था हर प्याला,
जीने की कोशिश में मरता जाता था हर जीने वाला
जीने की कोशिश में मरता जाता था हर जीने वाला।
कहने को सब थे सम्बन्धी , लेकिन आंधी के थे पते
कहने को सब थे सम्बन्धी , लेकिन आंधी के थे पत्ते,
जब तक परिचित हो आपस में , मुरझा जाती थी हर माला
जब तक परिचित हों आपस में, मुरझा जाती थी हर माला।
ओ हर चित्र बनने वाले, ओ हर रास रचाने वाले
ओ हर चित्र बनने वाले, ओ हर रास रचाने वाले,
झूठे थी जो तस्वीरें तो यौवन को दर्पण मत देता
झूठे थीं जो तस्वीरें तो यौवन को दर्पण मत देता।


ओ हर सुबह जगाने वाले ओ हर शाम सुलाने वाले
ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले,
दुःख रचना था इतना जग में तो फिर मुझे नयन मत देता
दुःख रचना था इतना जग में तो फिर मुझे नयन मत देता।





05:20, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण

ओ हर सुबह जगाने वाले -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले,
दुःख रचना था इतना जग में, तो फिर मुझे नयन मत देता।

जिस दरवाज़े गया, मिले बैठे अभाव, कुछ बने भिखारी,
पतझर के घर, गिरवी थी, मन जो भी मोह गई फुलवारी।
कोई था बदहाल धूप में, कोई था गमगीन छाँवों में,
महलों से कुटियों तक थी सुख की दुःख से रिश्तेदारी।
ओ हर खेल खिलाने वाले , ओ हर रस रचाने वाले
घुने खिलौने थे जो तेरे, गुड़ियों को बचपन मत देता।

गीले सब रुमाल अश्रु की पनहारिन हर एक डगर थी,
शबनम की बूंदों तक पर निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी।
निरवंशी थे स्वप्न दर्द से मुक्त न था कोई भी आँचल,
कुछ के चोट लगी थी बाहर कुछ के चोट लगी भीतर थी।
ओ बरसात बुलाने वाले, ओ बादल बरसाने वाले,
आंसू इतने प्यारे थे तो मौसम को सावन मत देता।

भूख़ फलती थी यूँ गलियों में , ज्यों फले यौवन कनेर का,
बीच ज़िन्दगी और मौत के फासला था बस एक मुंडेर का।
मजबूरी इस कदर कि बहारों में गाने वाली बुलबुल को,
दो दानो के लिए करना पड़ता था कीर्तन कुल्लेर का।
ओ हर पलना झुलाने वाले, ओ हर पलंग बिछाने वाले,
सोना इतना मुश्किल था, तो सुख के लाख सपन मत देता।

यूँ चलती थी हाट कि बिकते फूल , दाम पाते थे माली,
दीपों से ज्यादा अमीर थी , उंगली दीप बुझाने वाली।
और यहीं तक नहीं, आड़ लेके सोने के सिहांसन की,
पूनम को बदचलन बताती थी अमावस की रजनी काली।
ओ हर बाग़ लगाने वाले, ओ हर नीड़ लगाने वाले,
इतना था अन्याय जो जग में तो फिर मुझे विनम्र वचन मत देता।

क्या अजीब प्यास की अपनी उमर पी रहा था हर प्याला,
जीने की कोशिश में मरता जाता था हर जीने वाला।
कहने को सब थे सम्बन्धी , लेकिन आंधी के थे पत्ते,
जब तक परिचित हों आपस में, मुरझा जाती थी हर माला।
ओ हर चित्र बनने वाले, ओ हर रास रचाने वाले,
झूठे थीं जो तस्वीरें तो यौवन को दर्पण मत देता।

ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले,
दुःख रचना था इतना जग में तो फिर मुझे नयन मत देता।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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