"कथनी-करणी का अंग -कबीर": अवतरणों में अंतर

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राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥
राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥


`कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ।
`कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाई।
बावन आखर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाइ॥
बावन आखर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाई॥


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ऐकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥


करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड।
करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड।
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधां रूंड॥
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधा रूंड॥
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05:33, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

कथनी-करणी का अंग -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल।
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥

पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥

मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग।
राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥

`कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाई।
बावन आखर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाई॥

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥

करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड।
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधा रूंड॥




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