"चांद की आदतें -राजेश जोशी": अवतरणों में अंतर

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चाँद से मेरी दोस्ती हरगिज़ न हुई होती
चाँद से मेरी दोस्ती हरगिज़ न हुई होती,
अगर रात जागने और सड़कों पर फ़ालतू भटकने की
अगर रात जागने और सड़कों पर फ़ालतू भटकने की,
लत न लग गई होती मुझे स्कूल के ही दिनों में
लत न लग गई होती मुझे स्कूल के ही दिनों में।


उसकी कई आदतें तो
उसकी कई आदतें तो,
तक़रीबन मुझसे मिलती-जुलती-सी हैं
तक़रीबन मुझसे मिलती-जुलती-सी हैं,
मसलन वह भी अपनी कक्षा का एक बैक-बेंचर छात्र है
मसलन वह भी अपनी कक्षा का एक बैक-बेंचर छात्र है,
अध्यापक का चेहरा ब्लैक बोर्ड की ओर घुमा नहीं
अध्यापक का चेहरा ब्लैक बोर्ड की ओर घुमा नहीं
कि दबे पाँव निकल भागे बाहर...
कि दबे पाँव निकल भागे बाहर...


और फिर वही मटरगश्ती सारी रात
और फिर वही मटरगश्ती सारी रात,
सारे आसमान में
सारे आसमान में।





10:39, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

चांद की आदतें -राजेश जोशी
राजेश जोशी
राजेश जोशी
कवि राजेश जोशी
जन्म 18 जुलाई, 1946
जन्म स्थान नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'समरगाथा- एक लम्बी कविता', एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, दो पंक्तियों के बीच, पतलून पहना आदमी धरती का कल्पतरु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
राजेश जोशी की रचनाएँ

चाँद से मेरी दोस्ती हरगिज़ न हुई होती,
अगर रात जागने और सड़कों पर फ़ालतू भटकने की,
लत न लग गई होती मुझे स्कूल के ही दिनों में।

उसकी कई आदतें तो,
तक़रीबन मुझसे मिलती-जुलती-सी हैं,
मसलन वह भी अपनी कक्षा का एक बैक-बेंचर छात्र है,
अध्यापक का चेहरा ब्लैक बोर्ड की ओर घुमा नहीं
कि दबे पाँव निकल भागे बाहर...

और फिर वही मटरगश्ती सारी रात,
सारे आसमान में।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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