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हरगोबिन्द खुराना (जन्म: [[9 जनवरी]] 1922; मृत्यु: [[9 नवंबर]] 2011) भारत में जन्में अमेरिकी जैव रसायनशास्त्री थे। इन्हें 1968 में शरीर विज्ञान या चिकित्सा के क्षेत्र में मार्शल डब्ल्यू. नीरेनबर्ग और रॉबर्ट डब्ल्यू. हॉली के साथ उस अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। इस अनुसंधान से पता लगाने में मदद मिली कि [[कोशिका]] के आनुवंशिक कूट(कोड) को ले जाने वाले न्यूक्लिक अम्ल (एसिड) न्यूक्लिओटाइड्स कैसे कोशिका के प्रोटीन संश्लेषण (सिंथेसिस) को नियंत्रित करते हैं।
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==जन्म और शिक्षा==  
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खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922, [[रायपुर]], भारत में हुआ था। इनका जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ था। उन्होंने [[लाहौर]] में पंजाब विश्वविद्यालय और सरकारी छात्रवृत्ति पर लिवरपूल यूनिवर्सिटी, [[इंग्लैंड]] में शिक्षा ग्रहण की।
खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922, [[रायपुर]], भारत में हुआ था। इनका जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ था। इन्होंने [[लाहौर]] में पंजाब विश्वविद्यालय और सरकारी छात्रवृत्ति पर लिवरपूल यूनिवर्सिटी, [[इंग्लैंड]] में शिक्षा ग्रहण की।
==अनुसंधान==     
==अनुसंधान==     
उन्होंने सर अलेक्ज़ेंडर टॉड के तहत केंब्रिज यूनिवर्सिटी (1951) में शिक्षावृत्ति के दौरान न्यूक्लिक एसिड पर अनुसंधान शुरू किया। वह स्विट्ज़रलैंड में स्विस फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा (1952-1959) एवं विंस्कौंसिल, अमेरिका में फ़ेलो और प्राध्यापक पदों पर रहें। 1971 में उन्होंने मैसेच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के संकाय में कार्यभार संभाला।  
इन्होंने सर अलेक्ज़ेंडर टॉड के तहत केंब्रिज यूनिवर्सिटी (1951) में शिक्षावृत्ति के दौरान न्यूक्लिक एसिड पर अनुसंधान शुरू किया। वह स्विट्ज़रलैंड में स्विस फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा (1952-1959) एवं विंस्कौंसिल, अमेरिका में फ़ेलो और प्राध्यापक पदों पर रहें। 1971 में उन्होंने मैसेच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के संकाय में कार्यभार संभाला।  
==योगदान==  
==योगदान==  
1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए. [[अणु]] के घुमावदार 'सोपान' पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है। डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं। खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है।
1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए. [[अणु]] के घुमावदार 'सोपान' पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है। डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो [[प्रोटीन]] के निर्माण के खंड हैं। खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लिओटाइड्स कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं।


उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लिओटाड्स कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं। खुराना ने 1970 में आनुवंशिकी में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। डॉक्टर खुराना इस समय जीव विज्ञान एवं रसायनशास्त्र के एल्फ़्रेड पी. स्लोन प्राध्यापक और लिवरपूल यूनिवर्सिटी में अवकाश प्राप्त वरिष्ठ व्याख्याता हैं। इस समय वह अन्य बातों के अलावा आँख की शलाका कोशिकाओं में प्रकाशग्राही, रोडोप्सिन के संरचना-फलन और प्रवर्द्धन एवं अनुकूलन में प्रोटीन-प्रोटीन अन्योन्याक्रिया के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
खुराना ने 1970 में आनुवंशिकी में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। डॉक्टर खुराना अंतिम समय में जीव विज्ञान एवं रसायनशास्त्र के एल्फ़्रेड पी. स्लोन प्राध्यापक और लिवरपूल यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे।
==निधन==  
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हरगोबिन्द खुराना का निधन 9 नवंबर 2011 को हुआ था।  
हरगोबिन्द खुराना का निधन 9 नवंबर, 2011 को हुआ था।  




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==संबंधित लेख==
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हरगोबिन्द खुराना (जन्म: 9 जनवरी 1922; मृत्यु: 9 नवंबर 2011) भारत में जन्मे अमेरिकी जैव रसायनशास्त्री थे। इन्हें 1968 में शरीर विज्ञान या चिकित्सा के क्षेत्र में मार्शल डब्ल्यू. नीरेनबर्ग और रॉबर्ट डब्ल्यू. हॉली के साथ उस अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। इस अनुसंधान से पता लगाने में मदद मिली कि कोशिका के आनुवंशिक कूट (कोड) को ले जाने वाले न्यूक्लिक अम्ल (एसिड) न्यूक्लिओटाइड्स कैसे कोशिका के प्रोटीन संश्लेषण (सिंथेसिस) को नियंत्रित करते हैं।

जन्म और शिक्षा

खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922, रायपुर, भारत में हुआ था। इनका जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ था। इन्होंने लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय और सरकारी छात्रवृत्ति पर लिवरपूल यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड में शिक्षा ग्रहण की।

अनुसंधान

इन्होंने सर अलेक्ज़ेंडर टॉड के तहत केंब्रिज यूनिवर्सिटी (1951) में शिक्षावृत्ति के दौरान न्यूक्लिक एसिड पर अनुसंधान शुरू किया। वह स्विट्ज़रलैंड में स्विस फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा (1952-1959) एवं विंस्कौंसिल, अमेरिका में फ़ेलो और प्राध्यापक पदों पर रहें। 1971 में उन्होंने मैसेच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के संकाय में कार्यभार संभाला।

योगदान

1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए. अणु के घुमावदार 'सोपान' पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है। डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं। खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लिओटाइड्स कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं।

खुराना ने 1970 में आनुवंशिकी में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। डॉक्टर खुराना अंतिम समय में जीव विज्ञान एवं रसायनशास्त्र के एल्फ़्रेड पी. स्लोन प्राध्यापक और लिवरपूल यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे।

निधन

हरगोबिन्द खुराना का निधन 9 नवंबर, 2011 को हुआ था।



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