"दाग -राजेश जोशी": अवतरणों में अंतर
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मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई | मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के | ||
पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है | पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है | ||
जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद | जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद | ||
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सर उठा कर गा सकता हूँ | सर उठा कर गा सकता हूँ | ||
हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना | हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना | ||
कितने | कितने दाग़ हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान | ||
अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए गलत समझौते | अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए गलत समझौते | ||
ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की | ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की | ||
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और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए | और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए | ||
सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल | सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल दाग़ छिपाता हूँ | ||
और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ। | और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ। | ||
12:46, 9 अप्रैल 2012 का अवतरण
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मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के |
टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख
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