"तुम दीवाली बन कर -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! | मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! | ||
इस | इस क़दर बढ रही है बेबसी बहारों की | ||
फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है, | फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है, | ||
इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा | इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा |
14:27, 11 मई 2012 का अवतरण
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो, |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |