"भगवान दादा": अवतरणों में अंतर
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'''भगवान दादा''' (जन्म:1 अगस्त 1913 [[मुम्बई]] - मृत्यु:4 फ़रवरी 2002 मुम्बई) भारतीय अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक थे। भगवान दादा अपनी प्रसिद्ध सामाजिक और हास्य फ़िल्म 'अलबेला' के लिए जाने जाते हैं। हिन्दी | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
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|पूरा नाम=भगवान आभाजी पालव | |||
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'''भगवान दादा''' (जन्म:1 अगस्त 1913 [[मुम्बई]] - मृत्यु:4 फ़रवरी 2002 मुम्बई) भारतीय अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक थे। भगवान दादा अपनी प्रसिद्ध सामाजिक और हास्य फ़िल्म 'अलबेला' के लिए जाने जाते हैं। हिन्दी फ़िल्मों में नृत्य की एक विशेष शैली की शुरूआत करने वाले भगवान दादा ऐसे 'अलबेला' सितारे थे, जिनसे महानायक [[अमिताभ बच्चन]] सहित आज की पीढ़ी तक के कई कलाकार प्रभावित और प्रेरित हुए। भगवान दादा का वास्तविक नाम 'भगवान आभाजी पालव' था। भगवान दादा का जीवन और फ़िल्मी करियर जबरदस्त उतार चढ़ाव से भरा रहा लेकिन यह कलाकार सिनेमा के इतिहास में अपनी खास जगह रखता है। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
भगवान दादा का जन्म एक मिल के श्रमिक के घर [[1 अगस्त]], [[1913]] को हुआ। बचपन से ही उन्हें | भगवान दादा का जन्म एक मिल के श्रमिक के घर [[1 अगस्त]], [[1913]] को हुआ। बचपन से ही उन्हें फ़िल्मों के प्रति आकर्षण था और पढ़ाई के प्रति उन्हें विशेष रुचि नहीं थी। इस कारण उन्हें पिता के कोप का शिकार भी होना पड़ा, लेकिन धुन के पक्के दादा ने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हार नहीं मानी और हिंदी सिनेमा के रोमांटिक नायक की पारंपरिक छवि को नया आयाम मिला। शुरू में उन्होंने अपने शरीर पर काफी ध्यान दिया और बदन कसरती बना लिया। इसका फायदा उन्हें आगे मिला। फ़िल्मों में प्रवेश के लिए उन्हें काफी मशक्कत करना पड़ी और अंतत: उन्हें 1930 में ब्रेक मिला, जब निर्माता सिराज अली हकीम ने अपनी मूक फ़िल्म 'बेवफा आशिक' में एक कॉमेडियन की भूमिका दी। इसके बाद उन्होंने कई मूक फ़िल्मों में अभिनय किया।<ref name="wdh">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0807/31/1080731035_1.htm |title=हास्य की बहार लेकर आए थे भगवान दादा |accessmonthday=1 अगस्त |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }} </ref> | ||
इस कारण उन्हें पिता के कोप का शिकार भी होना पड़ा, लेकिन धुन के पक्के दादा ने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हार नहीं मानी और हिंदी सिनेमा के रोमांटिक नायक की पारंपरिक छवि को नया आयाम मिला। शुरू में उन्होंने अपने शरीर पर काफी ध्यान दिया और बदन कसरती बना लिया। इसका फायदा उन्हें आगे मिला। | |||
==फ़िल्मी कॅरियर== | ==फ़िल्मी कॅरियर== | ||
भगवान दादा यानी भगवान आभाजी पालव की आंखों में बचपन से | भगवान दादा यानी भगवान आभाजी पालव की आंखों में बचपन से फ़िल्मों के रूपहले परदे का सम्मोहन था। उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत श्रमिक के रूप में की लेकिन फ़िल्मों के आकर्षण ने उन्हें उनके पसंदीदा स्थल तक पहुंचा दिया। भगवान मूक फ़िल्मों के दौर में ही सिनेमा की दुनिया में आ गए। उन्होंने शुरूआत में छोटी-छोटी भूमिकाएं की। बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू होने के साथ उनके करियर में नया मोड़ आया। भगवान दादा के लिए 1940 का दशक काफी अच्छा रहा। इस दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएं की। इन फ़िल्मों में 'बेवफा आशिक', 'दोस्ती', 'तुम्हारी कसम', 'शौकीन' आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही उन्हें फ़िल्मों के निर्माण निर्देशन में भी दिलचस्पी थी। उन्होंने जागृति मिक्स और भगवान आर्ट्स प्रोडक्शन के बैनर तले कई फ़िल्में बनाई जो समाज के एक वर्ग में विशेष रूप से लोकप्रिय हुई। इन फ़िल्मों में 'मतलबी', 'लालच', 'मतवाले', 'बदला' आदि प्रमुख हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनकी अधिकतर फ़िल्में कम बजट की तथा एक्शन फ़िल्में होती थी।<ref name="जागरण">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8237.html |title=अलबेले कलाकार थे भगवान दादा |accessmonthday=1 अगस्त |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इण्डिया |language=हिन्दी }}</ref> | ||
====फ़िल्म निर्माण और निर्देशन==== | ====फ़िल्म निर्माण और निर्देशन==== | ||
इस दौरान भगवान दादा ने अपनी लगन से | इस दौरान भगवान दादा ने अपनी लगन से फ़िल्म निर्माण से जुड़ी अन्य विधाओं का भी अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया। 1934 में प्रदर्शित 'हिम्मत-ए-मर्दां' उनकी पहली बोलती फ़िल्म थी। 1938 से 1949 के बीच उन्होंने कम बजट वाली कई स्टंट फ़िल्मों एवं एक्शन फ़िल्मों का निर्देशन किया। उन फ़िल्मों को समाज के कामकाजी वर्ग के बीच अच्छी लोकप्रियता मिली। उन फ़िल्मों में दोस्ती, जालान, क्रिमिनल, भेदी बंगला आदि प्रमुख हैं।<ref name="wdh"/> | ||
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भगवान दादा की | भगवान दादा की फ़िल्मों में गहरी समझ तथा प्रतिभा को देखते हुए [[राजकपूर]] ने उन्हें सामाजिक फ़िल्में बनाने की राय दी। भगवान ने उनकी सलाह को ध्यान में रखते हुए 'अलबेला' फ़िल्म बनाई। इसमें भगवान के अलावा गीता बाली की प्रमुख भूमिका थी। इस फ़िल्म के संगीतकार सी. रामचंद्र थे और उन्होंने ही इसमें चितलकर के नाम से पार्श्व गायन भी किया। अलबेला फ़िल्म अपने दौर में सुपर हिट रही और कई स्थानों पर इसने जुबली मनाई। इस फ़िल्म के गीत-संगीत का जादू सिने प्रेमियों के सर चढ़ कर बोला। इसका एक गीत 'शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के..' आज भी खूब पसंद किया जाता है। अलबेला के बाद भगवान दादा ने 'झमेला' और 'लाबेला' बनाई लेकिन दोनों ही फ़िल्में नाकाम रहीं और उनके बुरे दिन शुरू हो गए।<ref name="जागरण"/> | ||
====बुरा दौर==== | ====बुरा दौर==== | ||
कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का यह हाल था कि उन्हें आजीविका के लिए चरित्र भूमिकाएं और बाद में छोटी-मोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। बदलते समय के साथ उनके मायानगरी के अधिकतर सहयोगी उनसे दूर होने लगे। सी. रामचंद्र, ओम प्रकाश, राजिन्दर किशन जैसे कुछ ही मित्र थे जो उनके बुरे वक्त में उनसे मिलने जाया करते थे।<ref name="जागरण"/> | कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का यह हाल था कि उन्हें आजीविका के लिए चरित्र भूमिकाएं और बाद में छोटी-मोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। बदलते समय के साथ उनके मायानगरी के अधिकतर सहयोगी उनसे दूर होने लगे। सी. रामचंद्र, ओम प्रकाश, राजिन्दर किशन जैसे कुछ ही मित्र थे जो उनके बुरे वक्त में उनसे मिलने जाया करते थे।<ref name="जागरण"/> | ||
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हिन्दी सिनेमा में अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार [[4 फ़रवरी]] [[2002]] को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया। | हिन्दी सिनेमा में अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार [[4 फ़रवरी]] [[2002]] को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया। | ||
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13:23, 1 अगस्त 2012 का अवतरण
भगवान दादा
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पूरा नाम | भगवान आभाजी पालव |
प्रसिद्ध नाम | भगवान दादा |
जन्म | 1 अगस्त, 1913 |
जन्म भूमि | मुम्बई, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 4 फ़रवरी, 2002 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'अलबेला', 'मतलबी', 'लालच', 'मतवाले', 'बदला' आदि |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 18:53, 1 अगस्त 2012 (IST)
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भगवान दादा (जन्म:1 अगस्त 1913 मुम्बई - मृत्यु:4 फ़रवरी 2002 मुम्बई) भारतीय अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक थे। भगवान दादा अपनी प्रसिद्ध सामाजिक और हास्य फ़िल्म 'अलबेला' के लिए जाने जाते हैं। हिन्दी फ़िल्मों में नृत्य की एक विशेष शैली की शुरूआत करने वाले भगवान दादा ऐसे 'अलबेला' सितारे थे, जिनसे महानायक अमिताभ बच्चन सहित आज की पीढ़ी तक के कई कलाकार प्रभावित और प्रेरित हुए। भगवान दादा का वास्तविक नाम 'भगवान आभाजी पालव' था। भगवान दादा का जीवन और फ़िल्मी करियर जबरदस्त उतार चढ़ाव से भरा रहा लेकिन यह कलाकार सिनेमा के इतिहास में अपनी खास जगह रखता है।
जीवन परिचय
भगवान दादा का जन्म एक मिल के श्रमिक के घर 1 अगस्त, 1913 को हुआ। बचपन से ही उन्हें फ़िल्मों के प्रति आकर्षण था और पढ़ाई के प्रति उन्हें विशेष रुचि नहीं थी। इस कारण उन्हें पिता के कोप का शिकार भी होना पड़ा, लेकिन धुन के पक्के दादा ने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हार नहीं मानी और हिंदी सिनेमा के रोमांटिक नायक की पारंपरिक छवि को नया आयाम मिला। शुरू में उन्होंने अपने शरीर पर काफी ध्यान दिया और बदन कसरती बना लिया। इसका फायदा उन्हें आगे मिला। फ़िल्मों में प्रवेश के लिए उन्हें काफी मशक्कत करना पड़ी और अंतत: उन्हें 1930 में ब्रेक मिला, जब निर्माता सिराज अली हकीम ने अपनी मूक फ़िल्म 'बेवफा आशिक' में एक कॉमेडियन की भूमिका दी। इसके बाद उन्होंने कई मूक फ़िल्मों में अभिनय किया।[1]
फ़िल्मी कॅरियर
भगवान दादा यानी भगवान आभाजी पालव की आंखों में बचपन से फ़िल्मों के रूपहले परदे का सम्मोहन था। उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत श्रमिक के रूप में की लेकिन फ़िल्मों के आकर्षण ने उन्हें उनके पसंदीदा स्थल तक पहुंचा दिया। भगवान मूक फ़िल्मों के दौर में ही सिनेमा की दुनिया में आ गए। उन्होंने शुरूआत में छोटी-छोटी भूमिकाएं की। बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू होने के साथ उनके करियर में नया मोड़ आया। भगवान दादा के लिए 1940 का दशक काफी अच्छा रहा। इस दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएं की। इन फ़िल्मों में 'बेवफा आशिक', 'दोस्ती', 'तुम्हारी कसम', 'शौकीन' आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही उन्हें फ़िल्मों के निर्माण निर्देशन में भी दिलचस्पी थी। उन्होंने जागृति मिक्स और भगवान आर्ट्स प्रोडक्शन के बैनर तले कई फ़िल्में बनाई जो समाज के एक वर्ग में विशेष रूप से लोकप्रिय हुई। इन फ़िल्मों में 'मतलबी', 'लालच', 'मतवाले', 'बदला' आदि प्रमुख हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनकी अधिकतर फ़िल्में कम बजट की तथा एक्शन फ़िल्में होती थी।[2]
फ़िल्म निर्माण और निर्देशन
इस दौरान भगवान दादा ने अपनी लगन से फ़िल्म निर्माण से जुड़ी अन्य विधाओं का भी अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया। 1934 में प्रदर्शित 'हिम्मत-ए-मर्दां' उनकी पहली बोलती फ़िल्म थी। 1938 से 1949 के बीच उन्होंने कम बजट वाली कई स्टंट फ़िल्मों एवं एक्शन फ़िल्मों का निर्देशन किया। उन फ़िल्मों को समाज के कामकाजी वर्ग के बीच अच्छी लोकप्रियता मिली। उन फ़िल्मों में दोस्ती, जालान, क्रिमिनल, भेदी बंगला आदि प्रमुख हैं।[1]
फ़िल्म अलबेला
भगवान दादा की फ़िल्मों में गहरी समझ तथा प्रतिभा को देखते हुए राजकपूर ने उन्हें सामाजिक फ़िल्में बनाने की राय दी। भगवान ने उनकी सलाह को ध्यान में रखते हुए 'अलबेला' फ़िल्म बनाई। इसमें भगवान के अलावा गीता बाली की प्रमुख भूमिका थी। इस फ़िल्म के संगीतकार सी. रामचंद्र थे और उन्होंने ही इसमें चितलकर के नाम से पार्श्व गायन भी किया। अलबेला फ़िल्म अपने दौर में सुपर हिट रही और कई स्थानों पर इसने जुबली मनाई। इस फ़िल्म के गीत-संगीत का जादू सिने प्रेमियों के सर चढ़ कर बोला। इसका एक गीत 'शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के..' आज भी खूब पसंद किया जाता है। अलबेला के बाद भगवान दादा ने 'झमेला' और 'लाबेला' बनाई लेकिन दोनों ही फ़िल्में नाकाम रहीं और उनके बुरे दिन शुरू हो गए।[2]
बुरा दौर
कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का यह हाल था कि उन्हें आजीविका के लिए चरित्र भूमिकाएं और बाद में छोटी-मोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। बदलते समय के साथ उनके मायानगरी के अधिकतर सहयोगी उनसे दूर होने लगे। सी. रामचंद्र, ओम प्रकाश, राजिन्दर किशन जैसे कुछ ही मित्र थे जो उनके बुरे वक्त में उनसे मिलने जाया करते थे।[2]
निधन
हिन्दी सिनेमा में अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार 4 फ़रवरी 2002 को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 हास्य की बहार लेकर आए थे भगवान दादा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 1 अगस्त, 2012।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 अलबेले कलाकार थे भगवान दादा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इण्डिया। अभिगमन तिथि: 1 अगस्त, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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