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'''कुर्किहार''' [[गया ज़िला]], [[बिहार]] में स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। [[बोधगया]] के निकट स्थित इस स्थान से कांसे की अनेक सुंदर [[बौद्ध]] ओर [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] मूर्तियाँ प्राप्त हुईं हैं।
'''कुर्किहार''' [[गया ज़िला]], [[बिहार]] में स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। [[बोधगया]] के निकट स्थित इस स्थान से कांसे की अनेक सुंदर [[बौद्ध]] ओर [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] मूर्तियाँ प्राप्त हुईं हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=208|url=}}</ref>


*इस स्थान से प्राप्त मूर्तियाँ [[पाल साम्राज्य|पाल]] और [[सेन वंश|सेन]] काल की हैं। कुछ पर [[संवत]] भी अंकित हैं।
*इस स्थान से प्राप्त मूर्तियाँ [[पाल साम्राज्य|पाल]] और [[सेन वंश|सेन]] काल की हैं। कुछ पर [[संवत]] भी अंकित हैं।

13:58, 14 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

कुर्किहार गया ज़िला, बिहार में स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। बोधगया के निकट स्थित इस स्थान से कांसे की अनेक सुंदर बौद्ध ओर हिन्दू मूर्तियाँ प्राप्त हुईं हैं।[1]

  • इस स्थान से प्राप्त मूर्तियाँ पाल और सेन काल की हैं। कुछ पर संवत भी अंकित हैं।
  • ये मूर्तियाँ ताम्र, सीसा, टिन और लोहे की मिश्रित धातु से बनाईं गईं हैं। इनके निर्माण में धातु विज्ञान के उच्चकोटि का ज्ञान प्रदर्शित है।
  • कुर्किहार से प्राप्त मूर्तियों में बलराम और लोकनाथ की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये मूर्तियाँ पटना संग्रहालय में सुरक्षित कर दी गईं हैं।
  • कुछ विद्धानों के मत में कुर्किहार की कांस्य की मूर्तियों की सहायता से वृहत्तर भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार का अध्ययन किया जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 208 |

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