"शमशाद बेगम": अवतरणों में अंतर
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'''शमशाद बेगम''' (जन्म- [[14 अप्रैल]], [[1919]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[23 अप्रैल]], 2013, [[मुम्बई]]) भारतीय सिनेमा में [[हिन्दी]] फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फिल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बुझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। वर्ष [[2009]] में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को [[कला]] के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए '[[पद्मभूषण]]' से सम्मानित किया था। | '''शमशाद बेगम''' (जन्म- [[14 अप्रैल]], [[1919]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[23 अप्रैल]], 2013, [[मुम्बई]]) भारतीय सिनेमा में [[हिन्दी]] फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फिल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बुझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। वर्ष [[2009]] में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को [[कला]] के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए '[[पद्मभूषण]]' से सम्मानित किया था। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को [[पंजाब]] राज्य के [[अमृतसर]] में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही [[के. एल. सहगल]] की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह [[रुपया|रुपये]] पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफ़ोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था। | शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को [[पंजाब]] राज्य के [[अमृतसर]] में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही [[के. एल. सहगल]] की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी। शमशाद बेगम का [[विवाह]] गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था। वर्ष [[1955]] में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं। | ||
==गायन की शुरुआत== | |||
पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ [[लाहौर]] के [[पेशावर]] रेडियो के माध्यम से [[16 दिसम्बर]], [[1947]] को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज़ के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह [[रुपया|रुपये]] पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफ़ोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था। मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर ने उनकी आवाज़ को 'मंदिर की घंटी' बताया था। शमशाद बेगम ने उस समय के सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया। | |||
==होली का प्रसिद्ध गीत== | ==होली का प्रसिद्ध गीत== | ||
[[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक [[होली]] पर यूँ तो [[हिन्दी]] फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बयायूँनी ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार [[नौशाद]] ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया। फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री [[नर्गिस]] पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- "होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी"। इस गीत में गोपियाँ नटखट [[कृष्ण]] से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के [[हृदय]] पर छा गया था। | [[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक [[होली]] पर यूँ तो [[हिन्दी]] फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बयायूँनी ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार [[नौशाद]] ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया। फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री [[नर्गिस]] पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- "होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी"। इस गीत में गोपियाँ नटखट [[कृष्ण]] से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के [[हृदय]] पर छा गया था। | ||
==आवाज़ का जादू== | |||
अपनी सुरीली आवाज़ से [[हिन्दी]] फ़िल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज़ की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं। | |||
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07:14, 24 अप्रैल 2013 का अवतरण
शमशाद बेगम (जन्म- 14 अप्रैल, 1919, पंजाब; मृत्यु- 23 अप्रैल, 2013, मुम्बई) भारतीय सिनेमा में हिन्दी फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फिल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बुझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। वर्ष 2009 में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को कला के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।
जन्म
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को पंजाब राज्य के अमृतसर में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही के. एल. सहगल की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी। शमशाद बेगम का विवाह गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था। वर्ष 1955 में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं।
गायन की शुरुआत
पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ लाहौर के पेशावर रेडियो के माध्यम से 16 दिसम्बर, 1947 को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज़ के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह रुपये पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफ़ोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था। मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर ने उनकी आवाज़ को 'मंदिर की घंटी' बताया था। शमशाद बेगम ने उस समय के सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया।
होली का प्रसिद्ध गीत
भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक होली पर यूँ तो हिन्दी फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बयायूँनी ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार नौशाद ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया। फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री नर्गिस पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- "होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी"। इस गीत में गोपियाँ नटखट कृष्ण से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के हृदय पर छा गया था।
आवाज़ का जादू
अपनी सुरीली आवाज़ से हिन्दी फ़िल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज़ की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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