"किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार? -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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मुक्ति औ अमरत्व पर अधिकार होगा, | मुक्ति औ अमरत्व पर अधिकार होगा, | ||
किन्तु मैं तो देव! अब उस लोक में हूं, | किन्तु मैं तो देव! अब उस लोक में हूं, | ||
है जहां करती अमरता मृत्यु का | है जहां करती अमरता मृत्यु का शृंगार। | ||
क्या करूं आकर तुम्हारे द्वार ? | क्या करूं आकर तुम्हारे द्वार ? | ||
13:19, 25 जून 2013 का अवतरण
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जब तुम्हारी ही हृदय में याद हर दम, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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