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[[चित्र:Salim-Ali.jpg|thumb|सालिम अली<br />Salim Ali]]
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पूरा नाम '''सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली''' (जन्म- [[12 नवम्बर]] [[1896]]; मृत्यु- [[27 जुलाई]], [[1987]]) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। सालिम अली को '''भारत के बर्डमैन''' के रूप में जाना जाता है, सलीम अली [[भारत]] के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। सन् [[1906]] में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षी शास्त्री के रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है।
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'''सालिम अली''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Salim Ali'', पूरा नाम: 'सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली', जन्म: [[12 नवम्बर]] [[1896]]; मृत्यु: [[27 जुलाई]], [[1987]]) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। सालिम अली को '''भारत के बर्डमैन''' के रूप में जाना जाता है। सलीम अली [[भारत]] के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। सन् [[1906]] में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षी शास्त्री के रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है। पक्षियों के सर्वेक्षण में 65 साल गुजार देने वाले इस शख्स को परिंदों का चलताफिरता विश्वकोष कहा जाता था। [[पद्म विभूषण]] से नवाजे इस परिंदों के मसीहा के प्रकृति संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
==जीवन परिचय==  
==जीवन परिचय==  
सालिम अली बचपन से ही प्रकृति से स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह से नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए बर्मा (वर्तमान [[म्यांमार]])भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षी शास्त्री में प्रशिक्षण लिया और [[मुंबई|बंबई]] के ''नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी'' के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। फिर [[जर्मनी]] जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे। जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज़्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बया पक्षी ने घौंसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बया पक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोज़ाना घंटों करते रहते।
सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली का जन्म 12 नवम्बर 1896 को बॉम्बे (अब [[मुम्बई]]), ब्रिटिश इंडिया में एक सुलैमानी बोहरा [[मुस्लिम]] [[परिवार]] में हुआ। ये अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। इनके जन्म के एक वर्ष बाद पिता मोइज़ुद्दीन का और तीन वर्ष बाद माता जीनत-अन-नीसा का देहांत हो गया। उनकी परवरिश मामा अमरुद्दीन और औलादहीन मामी हमीदा बेगम की देखरेख में खेतवाड़ी, मुंबई में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुई। इनका सारा बचपन चिड़ियों के बीच ही गुजरा। एक गौरैया के गरदन के पीले धब्बों की जिज्ञासा उन्हें मुंबई की नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डब्ल्यू. एस. मिलार्ड के पास ले गई। यह मुलाकात उनके जीवन का एक अहम् मोड़ साबित हुई। सालिम को पहली बार पक्षियों की इतनी सारी प्रजाति होने की जानकारी हुई। यही से उनका झुकाव परिंदों की ओर हुआ और उन्होंने इनके बारे में सबकुछ जानने की ठान ली। इसके लिए मिलार्ड ने उनकी बहुत मदद की। उन्होंने सालिम को सोसाइटी के पक्षियों के संग्रह से परिचित कराया। साथ ही पक्षियों से संबंधित कुछ पुस्तकों से भी अवगत कराया। एडवर्ड हैमिल्टन ऐटकेन की पुस्तक 'कॉमन बर्ड्स ऑफ़ बॉम्बे' ने सालिम को पक्षियों के संग्रह के लिए प्रेरित किया। सालिम के पास विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं थी। इसका सबसे बड़ा कारण था उन का गणित में कमजोर होना। हालांकि कॉलेज में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी लेकिन डिग्री नहीं ले पाए थे।<ref name="JP">{{cite web |url=http://jeevanparichay.blogspot.in/2013/04/blog-post_4.html |title= सालिम अली |accessmonthday=22 जुलाई |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जीवन परिचय |language=हिंदी }}</ref>
==प्रकृति प्रेमी==
सालिम अली बचपन से ही प्रकृति से स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह से नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए बर्मा (वर्तमान [[म्यांमार]]) भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षी शास्त्री में प्रशिक्षण लिया और [[मुंबई|बंबई]] के ''नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी'' के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। फिर [[जर्मनी]] जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे। जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल [[वर्षा]] ज़्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बया पक्षी ने घौंसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बया पक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोज़ाना घंटों करते रहते।
==बर्डमैन ऑफ़ इंडिया==
दुनिया में ऐसे कम ही लोग हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं और इंसानी जमात से अलग जीवों के बारे में सोचने वाले तो विरले ही हैं। ऐसा ही एक विरला व्यक्तित्व मशहूर प्रकृतिवादी सालिम अली का था, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी पक्षियों के लिए लगा दी। कहते हैं कि सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली परिंदों की जुबान समझते थे और इसी खूबी की वजह से उन्हें बर्डमैन ऑफ़ इंडिया कहा गया। उन्होंने पक्षियों के अध्ययन को आम जनमानस से जोड़ा और कई पक्षी विहारों की तामीर में सबसे आगे रहे। कोयम्बटूर स्थित सालिम अली पक्षी विज्ञान एवं प्रकृति विज्ञान केंद्र (एसएसीओएन) के निदेशक डॉक्टर पीए अजीज ने बताया सालिम अली एक दूरदर्शी व्यक्ति थे। उन्होंने पक्षी विज्ञान में बहुत बड़ा योगदान दिया। कहा जाता है कि वह पक्षियों की भाषा बखूबी समझते थे।<ref name="DBR">{{cite web |url=http://www.dakshinbharat.com/2011/11/12/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%9D%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%A5%E0%A5%87-2498/ |title= सालिम अली |accessmonthday=22 जुलाई |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दक्षिण भारत राष्ट्रमत |language=हिंदी }}</ref>
[[चित्र:The-Fall-of-a-Sparrow.jpg|thumb|left|'द फाल ऑफ़ ए स्पैरो']]
====पक्षियों के दोस्त====
पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के अध्ययन के लिए वे भारत के कई क्षेत्रों के जंगलों में घूमे। कुमाउं के तराई क्षेत्र से उन्होंने बया की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। सालिम अली ने पक्षियों को इतना नजदीकी से पहचाना कि वे पक्षियों के साथ वे उनकी भाषा में बात भी कर लेते थे। साइबेरियाई सारसों की एक-एक आदत को सालिम अली अच्छी तरह पहचानते थे। [[सारस|सारसों]] पर अध्ययन कर उन्होंने ही बताया था कि साइबेरियन सारस मांसाहारी नहीं होते, वे पानी के किनारे पर जमी काई खाते हैं। पक्षियों के साथ सालिम अली का व्यवहार दोस्ताना था, चिडि़यों को बिना कष्ट पहुंचाए पकड़ने के 100 से ज़्यादा तरीक़े उनके पास थे। बिना कष्ट पहुंचाए चिडि़यों को पकड़ने की प्रसिद्ध गोंग एंड फायर व डेक्कन विधि सालिम अली की ही खोज है जिन्हें आज भी पक्षी जगत में प्रयोग किया जाता है।<ref name="Prabha">{{cite web |url=https://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=121106-113156-320010 |title= पक्षियों के दोस्त थे सालिम अली |accessmonthday=22 जुलाई |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रभा साक्षी |language=हिंदी }}</ref>
==विशेष योगदान==
बर्लिन विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक इरविन स्ट्रेसमैन के तहत काम किया। वह वर्ष [[1930]] में [[भारत]] लौटे और फिर पक्षियों पर तेजी से काम शुरू किया। आजादी के बाद सालिम बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएसच) के प्रमुख लोगों में रहे। उन्होंने भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई।<ref name="DBR"/>
==लेखन कार्य==
==लेखन कार्य==
सन [[1930]] में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराये। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सन् [[1941]] में 'दि बुक ऑफ़ इंण्डियन बर्ड्स' और सन् [[1948]] में 'हैण्डबुक ऑफ़ बर्ड्स ऑफ़ इण्डिया एण्ड [[पाकिस्तान]]' इनके द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें हैं।
सन [[1930]] में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराये। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सालिम अली जगह जगह जाकर परिंदों के बारे में जानकारी एकत्र करते रहते थे। एकत्र जानकारियों के आधार पर तैयार हुई उन की पुस्तक 'बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स' ने [[1941]] में प्रकाशित होने के बाद रिकॉर्ड बिक्री की। यह पुस्तक परिंदों के बारे में जानकारियों का महासमुद्र थी। उन्होंने एक दूसरी पुस्तक 'हैण्डबुक ऑफ़ बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एण्ड पाकिस्तान' भी लिखी, जिसमें सभी प्रकार के पक्षियों, उनके गुणों-अवगुणों, प्रवासी आदतों आदि से संबंधित अनेक व्यापक जानकारियां दी गई थी। इसके अलावा उनकी लिखी पुस्तक 'द फाल ऑफ़ ए स्पैरो' भी महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की घटी घटनाओं का जिक्र किया है।<ref name="JP"/>
==सम्मान==
==सम्मान और पुरस्कार==
[[1976]] में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[पद्म विभूषण]] से सालिम अली को सम्मानित किया गया।
[[चित्र:Salim-Ali-Stamp.jpg|thumb|सालिम अली के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
प्रकृति विज्ञान और पक्षियों पर अध्ययन में महारत रखने वाले सालिम अली को देश-विदेश के प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] जैसे संस्थानों ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा। महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से [[1958]] में [[पद्म भूषण]] व [[1976]] में [[पद्म विभूषण]] जैसे देश के बड़े सम्मानों से सम्मानित किया गया।
==निधन==
[[27 जुलाई]] [[1987]] को 91 साल की उम्र में डॉ. सालिम अली का निधन हुआ। सालिम अली [[भारत]] में एक पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र की स्थापना करना चाहते थे। गौरतलब है कि इनके नाम पर बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा [[कोयम्बटूर]] के निकट अनाइकट्टी नामक स्थान पर सालिम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र स्थापित किया गया।<ref name="Prabha"/>




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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.scientificworld.in/2012/08/Bharat-Ke-Pakshi-Salim-Ali.html विश्व विख्यात पक्षी वैज्ञानिक सालीम अली की अतुलनीय पुस्तक!]
*[http://hindi.webdunia.com/news-national/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AE-%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-1120428007_1.htm सालिम अली अब कॉमिक्स में]
==संबंधित लेख==
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11:37, 22 जुलाई 2013 का अवतरण

सालिम अली
सालिम अली
सालिम अली
पूरा नाम सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली
अन्य नाम बर्डमैन ऑफ़ इंडिया
जन्म 12 नवम्बर 1896
जन्म भूमि बॉम्बे (अब मुम्बई)
मृत्यु 27 जुलाई, 1987
मृत्यु स्थान मुम्बई
पति/पत्नी तहमिना अली
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी
मुख्य रचनाएँ 'द बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स', 'हैण्डबुक ऑफ़ द बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एण्ड पाकिस्तान', 'द फाल ऑफ़ ए स्पैरो' आदि
खोज बिना कष्ट पहुंचाए चिडि़यों को पकड़ने की प्रसिद्ध गोंग एंड फायर व डेक्कन विधि सालिम अली की ही खोज है जिन्हें आज भी पक्षी जगत में प्रयोग किया जाता है।
शिक्षा स्नातक (जंतु विज्ञान)
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, पद्म विभूषण
विशेष योगदान भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गौरतलब है कि इनके नाम पर बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कोयम्बटूर के निकट अनाइकट्टी नामक स्थान पर सालिम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र स्थापित किया गया।

सालिम अली (अंग्रेज़ी:Salim Ali, पूरा नाम: 'सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली', जन्म: 12 नवम्बर 1896; मृत्यु: 27 जुलाई, 1987) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। सालिम अली को भारत के बर्डमैन के रूप में जाना जाता है। सलीम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। सन् 1906 में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षी शास्त्री के रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है। पक्षियों के सर्वेक्षण में 65 साल गुजार देने वाले इस शख्स को परिंदों का चलताफिरता विश्वकोष कहा जाता था। पद्म विभूषण से नवाजे इस परिंदों के मसीहा के प्रकृति संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

जीवन परिचय

सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली का जन्म 12 नवम्बर 1896 को बॉम्बे (अब मुम्बई), ब्रिटिश इंडिया में एक सुलैमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में हुआ। ये अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। इनके जन्म के एक वर्ष बाद पिता मोइज़ुद्दीन का और तीन वर्ष बाद माता जीनत-अन-नीसा का देहांत हो गया। उनकी परवरिश मामा अमरुद्दीन और औलादहीन मामी हमीदा बेगम की देखरेख में खेतवाड़ी, मुंबई में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुई। इनका सारा बचपन चिड़ियों के बीच ही गुजरा। एक गौरैया के गरदन के पीले धब्बों की जिज्ञासा उन्हें मुंबई की नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डब्ल्यू. एस. मिलार्ड के पास ले गई। यह मुलाकात उनके जीवन का एक अहम् मोड़ साबित हुई। सालिम को पहली बार पक्षियों की इतनी सारी प्रजाति होने की जानकारी हुई। यही से उनका झुकाव परिंदों की ओर हुआ और उन्होंने इनके बारे में सबकुछ जानने की ठान ली। इसके लिए मिलार्ड ने उनकी बहुत मदद की। उन्होंने सालिम को सोसाइटी के पक्षियों के संग्रह से परिचित कराया। साथ ही पक्षियों से संबंधित कुछ पुस्तकों से भी अवगत कराया। एडवर्ड हैमिल्टन ऐटकेन की पुस्तक 'कॉमन बर्ड्स ऑफ़ बॉम्बे' ने सालिम को पक्षियों के संग्रह के लिए प्रेरित किया। सालिम के पास विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं थी। इसका सबसे बड़ा कारण था उन का गणित में कमजोर होना। हालांकि कॉलेज में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी लेकिन डिग्री नहीं ले पाए थे।[1]

प्रकृति प्रेमी

सालिम अली बचपन से ही प्रकृति से स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह से नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए बर्मा (वर्तमान म्यांमार) भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षी शास्त्री में प्रशिक्षण लिया और बंबई के नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। फिर जर्मनी जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे। जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज़्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बया पक्षी ने घौंसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बया पक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोज़ाना घंटों करते रहते।

बर्डमैन ऑफ़ इंडिया

दुनिया में ऐसे कम ही लोग हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं और इंसानी जमात से अलग जीवों के बारे में सोचने वाले तो विरले ही हैं। ऐसा ही एक विरला व्यक्तित्व मशहूर प्रकृतिवादी सालिम अली का था, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी पक्षियों के लिए लगा दी। कहते हैं कि सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली परिंदों की जुबान समझते थे और इसी खूबी की वजह से उन्हें बर्डमैन ऑफ़ इंडिया कहा गया। उन्होंने पक्षियों के अध्ययन को आम जनमानस से जोड़ा और कई पक्षी विहारों की तामीर में सबसे आगे रहे। कोयम्बटूर स्थित सालिम अली पक्षी विज्ञान एवं प्रकृति विज्ञान केंद्र (एसएसीओएन) के निदेशक डॉक्टर पीए अजीज ने बताया सालिम अली एक दूरदर्शी व्यक्ति थे। उन्होंने पक्षी विज्ञान में बहुत बड़ा योगदान दिया। कहा जाता है कि वह पक्षियों की भाषा बखूबी समझते थे।[2]

'द फाल ऑफ़ ए स्पैरो'

पक्षियों के दोस्त

पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के अध्ययन के लिए वे भारत के कई क्षेत्रों के जंगलों में घूमे। कुमाउं के तराई क्षेत्र से उन्होंने बया की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। सालिम अली ने पक्षियों को इतना नजदीकी से पहचाना कि वे पक्षियों के साथ वे उनकी भाषा में बात भी कर लेते थे। साइबेरियाई सारसों की एक-एक आदत को सालिम अली अच्छी तरह पहचानते थे। सारसों पर अध्ययन कर उन्होंने ही बताया था कि साइबेरियन सारस मांसाहारी नहीं होते, वे पानी के किनारे पर जमी काई खाते हैं। पक्षियों के साथ सालिम अली का व्यवहार दोस्ताना था, चिडि़यों को बिना कष्ट पहुंचाए पकड़ने के 100 से ज़्यादा तरीक़े उनके पास थे। बिना कष्ट पहुंचाए चिडि़यों को पकड़ने की प्रसिद्ध गोंग एंड फायर व डेक्कन विधि सालिम अली की ही खोज है जिन्हें आज भी पक्षी जगत में प्रयोग किया जाता है।[3]

विशेष योगदान

बर्लिन विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक इरविन स्ट्रेसमैन के तहत काम किया। वह वर्ष 1930 में भारत लौटे और फिर पक्षियों पर तेजी से काम शुरू किया। आजादी के बाद सालिम बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएसच) के प्रमुख लोगों में रहे। उन्होंने भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई।[2]

लेखन कार्य

सन 1930 में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराये। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सालिम अली जगह जगह जाकर परिंदों के बारे में जानकारी एकत्र करते रहते थे। एकत्र जानकारियों के आधार पर तैयार हुई उन की पुस्तक 'द बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स' ने 1941 में प्रकाशित होने के बाद रिकॉर्ड बिक्री की। यह पुस्तक परिंदों के बारे में जानकारियों का महासमुद्र थी। उन्होंने एक दूसरी पुस्तक 'हैण्डबुक ऑफ़ द बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एण्ड पाकिस्तान' भी लिखी, जिसमें सभी प्रकार के पक्षियों, उनके गुणों-अवगुणों, प्रवासी आदतों आदि से संबंधित अनेक व्यापक जानकारियां दी गई थी। इसके अलावा उनकी लिखी पुस्तक 'द फाल ऑफ़ ए स्पैरो' भी महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की घटी घटनाओं का जिक्र किया है।[1]

सम्मान और पुरस्कार

सालिम अली के सम्मान में जारी डाक टिकट

प्रकृति विज्ञान और पक्षियों पर अध्ययन में महारत रखने वाले सालिम अली को देश-विदेश के प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा। महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से 1958 में पद्म भूषण1976 में पद्म विभूषण जैसे देश के बड़े सम्मानों से सम्मानित किया गया।

निधन

27 जुलाई 1987 को 91 साल की उम्र में डॉ. सालिम अली का निधन हुआ। सालिम अली भारत में एक पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र की स्थापना करना चाहते थे। गौरतलब है कि इनके नाम पर बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कोयम्बटूर के निकट अनाइकट्टी नामक स्थान पर सालिम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र स्थापित किया गया।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सालिम अली (हिंदी) जीवन परिचय। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2013।
  2. 2.0 2.1 सालिम अली (हिंदी) दक्षिण भारत राष्ट्रमत। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2013।
  3. 3.0 3.1 पक्षियों के दोस्त थे सालिम अली (हिंदी) प्रभा साक्षी। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख