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आज का दिन - 14 जनवरी 2025 (भारतीय समयानुसार)
- राष्ट्रीय शाके 1946, 24 गते 01, माघ, मंगलवार
- विक्रम सम्वत् 2081, माघ, कृष्ण पक्ष, प्रतिपदा, मंगलवार, पुनर्वसु
- इस्लामी हिजरी 1446, 13, रजब, मंगल, ज़िराअ
- मकर संक्रांति, कुम्भ मेला, प्रथम शाही स्नान, माघबिहू, पोंगल, महाश्वेता देवी (जन्म), सी. डी. देशमुख (जन्म), दुर्गा खोटे (जन्म), दशरथ मांझी (जन्म), अबुल फ़ज़ल, नारायण कार्तिकेयन (जन्म), सुधाताई जोशी (जन्म), मंगूराम (जन्म), बिन्देश्वरी दुबे (जन्म), ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह (जन्म), सुरजीत सिंह बरनाला (मृत्यु)
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भारतकोश हलचल
राष्ट्रीय बालिका दिवस (24 जनवरी) • सुभाष चंद्र बोस जयंती (23 जनवरी) • पराक्रम दिवस (23 जनवरी) • मणिपुर स्थापना दिवस (21 जनवरी) • त्रिपुरा स्थापना दिवस (21 जनवरी) • मेघालय स्थापना दिवस (21 जनवरी) • गणेश चतुर्थी (17 जनवरी) • थल सेना दिवस (15 जनवरी) • मकर संक्रांति (14 जनवरी) • कुम्भ मेला, प्रथम शाही स्नान (14 जनवरी) • लोहड़ी (13 जनवरी) • कल्पवास प्रारम्भ, प्रयागराज (13 जनवरी) • कुम्भ मेला प्रारम्भ (13 जनवरी) • राष्ट्रीय युवा दिवस (12 जनवरी) • राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह(11-17 जनवरी) (11 जनवरी) • प्रदोष व्रत (11 जनवरी) • विश्व हिन्दी दिवस (10 जनवरी) • पुत्रदा एकादशी(10 जनवरी) • प्रवासी भारतीय दिवस (09 जनवरी) • गुरु गोविंद सिंह जयंती (06 जनवरी) • लुई ब्रेल दिवस (04 जनवरी) • नववर्ष (01 जनवरी) • सोमवती अमावस्या (30 दिसम्बर) • मासिक शिवरात्रि (29 दिसम्बर) • सफला एकादशी(26 दिसम्बर) • क्रिसमस (25 दिसम्बर) • सुशासन दिवस (25 दिसम्बर) • राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (24 दिसम्बर) • किसान दिवस (23 दिसम्बर) • राष्ट्रीय गणित दिवस (22 दिसम्बर)
जन्म
अश्विनी कुमार दत्त (15 जनवरी) • मायावती (15 जनवरी) • सैफ़ुद्दीन किचलू (15 जनवरी) • ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर (15 जनवरी) • चुनी गोस्वामी (15 जनवरी) • खाशाबा जाधव (15 जनवरी) • बाबासाहेब भोसले (15 जनवरी) • सरदूल सिकंदर (15 जनवरी) • महाश्वेता देवी (14 जनवरी) • सी. डी. देशमुख (14 जनवरी) • दुर्गा खोटे (14 जनवरी) • दशरथ मांझी (14 जनवरी) • बिन्देश्वरी दुबे (14 जनवरी) • ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह (14 जनवरी) • नारायण कार्तिकेयन (14 जनवरी) • अबुल फ़ज़ल (14 जनवरी)
मृत्यु
गुलज़ारीलाल नन्दा (15 जनवरी) • तपन सिन्हा (15 जनवरी) • होमाई व्यारावाला (15 जनवरी) • सदाशिवराव भाऊ (15 जनवरी) • सुरजीत सिंह बरनाला (14 जनवरी) • एडमंड हैली (14 जनवरी)
भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। ...पूरा पढ़ें
पिछले सभी लेख → | सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी | शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र | शर्मदार की मौत |
एक आलेख
संसद भवन नई दिल्ली में स्थित सर्वाधिक भव्य भवनों में से एक है, जहाँ विश्व में किसी भी देश में मौजूद वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों की उज्ज्वल छवि मिलती है। राजधानी में आने वाले भ्रमणार्थी इस भवन को देखने ज़रूर आते हैं जैसा कि संसद के दोनों सभाएं लोक सभा और राज्य सभा इसी भवन के अहाते में स्थित हैं। संसद भवन संपदा के अंतर्गत संसद भवन, स्वागत कार्यालय भवन, संसदीय ज्ञानपीठ (संसद ग्रंथालय भवन) संसदीय सौध और इसके आस-पास के विस्तृत लॉन, जहां फ़व्वारे वाले तालाब हैं, शामिल हैं। संसद भवन की अभिकल्पना दो मशहूर वास्तुकारों - सर एडविन लुटय़न्स और सर हर्बर्ट बेकर ने तैयार की थी जो नई दिल्ली की आयोजना और निर्माण के लिए उत्तरदायी थे। संसद भवन की आधारशिला 12 फ़रवरी, 1921 को महामहिम द डय़ूक ऑफ कनाट ने रखी थी । इस भवन के निर्माण में छह वर्ष लगे और इसका उद्घाटन समारोह भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने 18 जनवरी, 1927 को आयोजित किया। इसके निर्माण पर 83 लाख रुपये की लागत आई। ... और पढ़ें
पिछले आलेख → | राष्ट्रपति | रसखान की भाषा | मौर्य काल |
एक व्यक्तित्व
महापण्डित राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। बौद्ध धर्म की ओर जब झुकाव हुआ तो पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, एवं सिंहली भाषाओं की जानकारी लेते हुए सम्पूर्ण बौद्ध ग्रन्थों का मनन किया और सर्वश्रेष्ठ उपाधि 'त्रिपिटिका चार्य' की पदवी पायी। साम्यवाद के क्रोड़ में जब राहुल जी गये तो कार्ल मार्क्स, लेनिन तथा स्तालिन के दर्शन से पूर्ण परिचय हुआ। प्रकारान्तर से राहुल जी इतिहास, पुरातत्त्व, स्थापत्य, भाषाशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे। ... और पढ़ें
पिछले लेख → | पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर | जे. आर. डी. टाटा | आर. के. लक्ष्मण |
पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा गया एक महाकाव्य है, जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन-चरित्र का वर्णन किया गया है। यह महाकवि चंदबरदाई की रचना है, जो पृथ्वीराज के अभिन्न मित्र तथा राजकवि थे। इसमें दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं का विशद वर्णन है। यह तेरहवीं शती की रचना है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त इसे 1400 विक्रमी संवत के लगभग की रचना मानते हैं। इसमें पृथ्वीराज व उनकी प्रेमिका संयोगिता के परिणय का सुन्दर वर्णन है। यह ग्रंथ ऐतिहासिक कम काल्पनिक अधिक है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है- 'पृथ्वीराज रासो ढाई हज़ार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है जिसमें 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं। प्राचीन समय में प्रचलित प्राय: सभी छंदों का व्यवहार हुआ है। मुख्य छंद हैं कवित्त (छप्पय), दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या। ...और पढ़ें
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नर्मदा नदी भारत के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली एक प्रमुख नदी है, जो गंगा के समान पूजनीय है। नर्मदा का उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी शृंखला में अमरकंटक नामक स्थान में है। मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को 'मैकाल कन्या' भी कहते हैं। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन 'रेवा खंड' के अंतर्गत किया गया है। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को 'रेवा' का संबोधन मिला है, जिसका अर्थ है- पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को 'रुद्र कन्या' भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं। अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर नर्मदा क़रीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। ... और पढ़ें |
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ब्रज डिस्कवरी पर हम आपको एक ऐसी यात्रा का भागीदार बनाना चाहते हैं जिसका रिश्ता ब्रज के इतिहास, संस्कृति, समाज, पुरातत्व, कला, धर्म-संप्रदाय, पर्यटन स्थल, प्रतिभाओं आदि से है।
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