चुनी गोस्वामी
चुनी गोस्वामी
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पूरा नाम | सुबिमल गोस्वामी |
जन्म | 15 जनवरी, 1938 |
जन्म भूमि | किशोरगंज, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 30 अप्रॅल, 2020 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
अभिभावक | पिता: प्रमोथोनाथ गोस्वामी |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | फ़ुटबॉल |
पुरस्कार-उपाधि | ‘अर्जुन पुरस्कार’ (1963), ‘पद्मश्री’ (1983) |
प्रसिद्धि | फ़ुटबॉल खिलाड़ी |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | जरनैल सिंह तथा पी.के. बनर्जी |
विशेष | 1958 में चुनी गोस्वामी को वेटरन्स स्पोर्टस क्लब कलकत्ता द्वारा ‘बेस्ट फुटबॉलर’ पुरस्कार दिया गया। |
अन्य जानकारी | 1954 में चुनी गोस्वामी ने अपना पहला बड़ा मैच मोहन बागान की ओर से खेला जिसमें टीम का मुकाबला ईस्टर्न रेलवे से था और टीम 3-0 से मुकाबला जीत गई। |
अद्यतन | 05:03, 11 नवम्बर-2016 (IST) |
चुनी गोस्वामी (अंग्रेज़ी: Chuni Goswami, जन्म- 15 जनवरी, 1938, किशोरगंज, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 30 अप्रॅल, 2020, कोलकाता) का नाम भारतीय फ़ुटबॉल के इतिहास में बहुत इज्जत से लिया जाता है। उन्होंने 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में उस भारतीय फ़ुटबॉल टीम का नेतृत्व किया, जिसने पहली बार एशियाई स्तर पर स्वर्ण पदक जीता था। उन्हें 1963 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया तथा 1983 में उन्हें ‘पद्मश्री’ देकर सम्मानित किया गया। उनका खेल में गेंद पर कमाल का नियंत्रण रहता था और उन्हें यह पता रहता था कि अपने साथी खिलाड़ी को कैसे और कब गेंद देनी है। यदि उन्हें फ़ुटबॉल के इतिहास में सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फ़ुटबॉल खिलाड़ी कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा।
परिचय
भारतीय फ़ुटबॉल के स्वर्ण युग में चुनी गोस्वामी भारत की राष्ट्रीय टीम के मुख्य खिलाड़ियों में से एक रहे। वह स्ट्राइकर पोजीशन पर खेलते रहे। उनका पूरा नाम 'सुबिमल गोस्वामी' है, जिन्हें फ़ुटबॉल प्रेमी 'चुनी गोस्वामी' के नाम से जानते हैं। उनका जन्म 15 जनवरी, 1938 को बंगाल के दक्षिण कलकत्ता के किशोरगंज में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रमोथोनाथ गोस्वामी था। उन्होंने तीर्थोवाटी इंस्टिट्यूट कलकत्ता स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी। फिर कलकत्ता स्कूल के कुमार आशुतोष कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की। उनके स्कूल के फ़ुटबॉल कोच सिबदास बनर्जी थे तथा उनके प्रथम फ़ुटबॉल कोच का नाम बलईदास चटर्जी था।[1]
कॅरियर की शुरुआत
चुनी गोस्वामी बाईं ओर के भीतरी भाग तथा दायीं ओर के भीतरी सिरे पर ‘स्ट्राइकर’ पोजीशन पर खेलते रहे। उन्होंने 1953 में अपना पहला महत्वपूर्ण मैच कलकत्ता लीग के किसी भी क्लब में शामिल होने के पूर्व खेला था। यह मैच रांची में एक प्रदर्शन मैच था जो उन्होंने आई.एफ.ए. (इलेवन) की ओर से खेला था। 1954 में उन्होंने प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत मोहन बागान जैसे महत्वपूर्ण क्लब के जूनियर खिलाड़ी के रूप में की। 29 मई, 1954 को मोहन बागान तथा ईस्टर्न रेलवे के बीच हुए इस मैच में वह मोहन बागान की ओर से खेले और टीम ने 3-0 से जीत हासिल की।
1950 तथा 1960 के दशक में भारतीय फ़ुटबॉल की स्थिति संतोषजनक रही और टीम ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की। इसका श्रेय चुनी गोस्वामी तथा कुछ अन्य कुशल फ़ुटबॉल खिलाड़ियों को जाता है। तब भारतीय फ़ुटबॉल टीम की स्थिति आज से कहीं बेहतर थी। 1955 में वह पहली बार मोहन बागान की ओर से विदेश दौरे पर गए। 1955 से 1956 के बीच वह इंडोनेशिया, सिंगापुर तथा हागकांग दौर पर मोहन बगान की ओर से खेले। उनके 1955 में हुए प्रथम अन्तरराष्ट्रीय मैच में मोहन बागान का मुकाबला इंडोनेशिया टीम से था, जिसमें 4-4 से मैच बराबरी पर रहा।[1]
बंगाल टीम के कप्तान
17 वर्ष की आयु में चुनी गोस्वामी ने 1955 में बंगाल संतोष ट्रॉफी टीम की ओर से खेला और बंगाल टीम ने मैसूर टीम को हरा कर चैंपियनशिप जीत ली। 1956 में वह भारत की ओलंपिक टीम के सदस्य रहे और टीम ने चीन की टीम को हरा कर 1-0 से मुकाबला जीत लिया। 1957 में चुनी गोस्वामी ने आल इंडिया यूनिवर्सिटी फ़ुटबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया, बंगाल टीम के वह कप्तान थे और टीम ने बम्बई युनिवर्सिटी टीम को 1-0 से हरा कर मुकाबला जीत लिया। उनके कैरियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तब देखने को मिला, जब 1962 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता। उस समय टीम के कप्तान चुनी गोस्वामी थे और फाइनल में भारत ने कोरिया को 2-1 से हराया था। भारत की ओर से ये गोल जरनैल सिंह तथा पी.के. बनर्जी ने किये थे।
पुरस्कार व सम्मान
1958 में चुनी गोस्वामी को वेटरन्स स्पोर्टस क्लब कलकत्ता द्वारा ‘बेस्ट फुटबॉलर’ पुरस्कार दिया गया। वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में तथा 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में चुनी गोस्वामी भारतीय टीम के सदस्य थे। गोस्वामी ने मोहन बागान टीम का 1960 से 1964 तक नेतृत्व किया। उनकी कप्तानी के दौरान टीम ने राष्ट्रीय स्तर पर हुई सभी प्रतियोगिताओं में बेहद अच्छा प्रदर्शन किया और डूरंड कप में भी टीम का प्रदर्शन लाजवाब रहा। 1962 में गोस्वामी को एशिया का ‘सर्वश्रेष्ठ स्ट्राइकर’ का पुरस्कार दिया गया। 1963 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया और 1983 में उन्हें ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1986 से 1989 तक चुनी गोस्वामी टाटा फ़ुटबॉल अकादमी, झारखंड राज्य के डायरेक्टर रहे। 2005 में वह कोलकाता कारपोरेशन के शेरिफ रहे तथा 2005 में मोहन बागान ने उन्हें ‘रत्न’ सम्मान प्रदान किया।[1]
उपलब्धियां
- उन्होंने जूनियर मोहन बागान क्लब के लिए 1946 से 1954 तक खेला।[1]
- सीनियर मोहन बागान क्लब में उन्होंने 1954 से 1968 तक खेला तथा पांच बार वह मोहन बागान क्लब के कप्तान रहे।
- 1954 में अपना पहला बड़ा मैच मोहन बागान की ओर से खेला जिसमें टीम का मुकाबला ईस्टर्न रेलवे से था और टीम 3-0 से मुकाबला जीत गई।
- 17 वर्ष की उम्र में बंगाल टीम की ओर से खेला और टीम ने मैसूर को हरा कर 1955 में संतोष ट्राफी जीत ली।
- 1956 में वह पहली बार टीम में शामिल हुए और भारतीय टीम का मुकाबला चीन की ओलंपिक टीम से था जिसमें टीम 1-0 से जीत गई।
- 1957 में उन्होंने बंगाल टीम की कप्तानी की और ऑल इंडिया युनिवर्सिटी फ़ुटबॉल में बम्बई युनिवर्सिटी को 1-0 से हरा कर मुकाबला जीता।
- 1958 में चुनी गोस्वामी को कलकत्ता वेटरन्स स्पोर्ट्स क्लब की ओर से ‘बेस्ट फ़ुटबॉलर’ का अवॉर्ड दिया गया।
- 1962 में जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के कप्तान चुनी गोस्वामी थे।
- 1962 में उन्हें ‘बेस्ट स्ट्राइकर ऑफ एशिया’ चुना गया।
- तेल अवीव एशियाई कप में रजत पदक जीतने वाली भारतीय टीम के वह कप्तान थे।
- 1963 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया।
- 1983 में उन्हें ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया।
- 1986 से 1989 तक वह झारखंड राज्य के टाटा फ़ुटबॉल अकादमी के डायरेक्टर रहे।
- 2005 में वह कोलकाता कारपोरेशन के शेरिफ बने।
- 2005 में मोहन बागान ‘रत्न’ चुने गए।
निधन
महान फुटबॉलर और प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी खेलने वाले चुनी गोस्वामी का निधन 30 अप्रॅल, 2020 को कोलकाता में दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुआ। चुनी गोस्वामी ने भारत के लिए बतौर फुटबॉलर 1956 से 1964 तक 50 मैच खेले।
'अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ' (एआईएफएफ) ने चुनी गोस्वामी के निधन पर शोक व्यक्त किया। एआईएफएफ अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल का कहना था कि- "यह सुनकर दु:ख हुआ कि भारत के सबसे महान फुटबॉलरों में से एक ‘चुनी दा’ अब नहीं रहे। भारतीय फुटबॉल में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। वह भारतीय फुटबाल की स्वर्णिम पीढ़ी का पर्याय बने रहेंगे। चुनी दा, आप हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहोगे।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 चुनी गोस्वामी का जीवन परिचय (हिंदी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 07 सितम्बर, 2016।