"चैतन्य महाप्रभु की मूर्ति": अवतरणों में अंतर

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विष्णुप्रिया बचपन से ही पिता-माता और [[विष्णु]] परायणा थीं। विष्णुप्रिया प्रतिदिन तीन बार [[गंगा]] में [[स्नान]] करती थीं। गंगा-स्नान को जाने के दिनों में ही [[शची|शची माता]] के साथ आपका मिलन हुआ था। आप उनको प्रणाम करतीं तो शची माता आपको आशीर्वाद देतीं। आपके और भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी के [[विवाह]] की [[कथा]] को जो सुनता है, उसके तमाम सांसारिक बन्धन कट जाते हैं।
विष्णुप्रिया बचपन से ही पिता-माता और [[विष्णु]] परायणा थीं। विष्णुप्रिया प्रतिदिन तीन बार [[गंगा]] में [[स्नान]] करती थीं। गंगा-स्नान को जाने के दिनों में ही [[शची|शची माता]] के साथ आपका मिलन हुआ था। आप उनको प्रणाम करतीं तो शची माता आपको आशीर्वाद देतीं। आपके और भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी के [[विवाह]] की [[कथा]] को जो सुनता है, उसके तमाम सांसारिक बन्धन कट जाते हैं।
 
[[चित्र:Lord-Caitanya-Dances-with-His-Followers.jpg|thumb|left|300px|[[चैतन्य महाप्रभु]] अपने अनुयायियों के साथ नृत्य करते हुए]]
श्रीमन महाप्रभु जी के द्वारा 24 वर्ष की आयु में सन्न्यास ग्रहण करने पर विष्णुप्रिया अत्यन्त विरह संतप्त हुईं थीं। इन्होंने अद्भुत भजन का आदर्श प्रस्तुत किया था। [[मिट्टी]] के दो बर्तन लाकर अपने दोनों ओर रख लेतीं थीं। एक ओर खाली पात्र और दूसरी ओर [[चावल]] से भरा हुआ पात्र रख लेतीं थीं। सोलह नाम तथा बत्तीस अक्षर वाला मन्त्र (हरे कृष्ण महामन्त्र) एक बार जप कर एक [[चावल]] उठा कर खाली पात्र में रख देतीं थीं। इस प्रकार दिन के तीसरे प्रहर तक हरे कृष्ण महामन्त्र का जाप करतीं रहतीं और चावल एक बर्तन से दूसरे बर्तन में रखती जातीं। इस प्रकार जितने चावल इकट्ठे होते, उनको पका कर [[चैतन्य महाप्रभु|श्री चैतन्य महाप्रभु]] की को भाव से अर्पित करतीं। और वहीं प्रसाद पातीं।
श्रीमन महाप्रभु जी के द्वारा 24 वर्ष की आयु में सन्न्यास ग्रहण करने पर विष्णुप्रिया अत्यन्त विरह संतप्त हुईं थीं। इन्होंने अद्भुत भजन का आदर्श प्रस्तुत किया था। [[मिट्टी]] के दो बर्तन लाकर अपने दोनों ओर रख लेतीं थीं। एक ओर खाली पात्र और दूसरी ओर [[चावल]] से भरा हुआ पात्र रख लेतीं थीं। सोलह नाम तथा बत्तीस अक्षर वाला मन्त्र (हरे कृष्ण महामन्त्र) एक बार जप कर एक [[चावल]] उठा कर खाली पात्र में रख देतीं थीं। इस प्रकार दिन के तीसरे प्रहर तक हरे कृष्ण महामन्त्र का जाप करतीं रहतीं और चावल एक बर्तन से दूसरे बर्तन में रखती जातीं। इस प्रकार जितने चावल इकट्ठे होते, उनको पका कर [[चैतन्य महाप्रभु|श्री चैतन्य महाप्रभु]] की को भाव से अर्पित करतीं। और वहीं प्रसाद पातीं।


कहाँ तक विष्णुप्रिया जी की महिमा कोई कहे, आप तो श्रीमन महाप्रभु की प्रेयसी हैं और निरन्तर हरे कृष्ण महामन्त्र करती रहती हैं। आपने ही सर्वप्रथम श्रीगौर-महाप्रभु जी की मूर्ति (विग्रह) का प्रकाश कर उसकी [[पूजा]] की थी। कोई-कोई [[भक्त]] ऐसा भी कहते हैं। [[सीता|श्रीमती सीता देवी]] के वनवास काल में एक पत्नी व्रती भगवान [[राम|श्रीरामचन्द्र]] जी ने सोने की सीता का निर्माण करवाकर [[यज्ञ]] किया था, पर दूसरी बार [[विवाह]] नहीं किया था। श्रीगौर-नारायण लीला में श्रीमती विष्णुप्रिया देवी ने उस ऋण से उऋण होने के लिए ही श्री गौरांग महाप्रभु जी की मूर्ति का निर्माण करा कर पूजा की थी। श्रीमती विष्णुप्रिया देवी द्वारा सेवित श्रीगौरांग की मूर्ति की अब भी [[नवद्वीप|श्रीनवद्वीप]] में पूजा की जाती है।<ref>{{cite web |url=http://hindivina.blogspot.in/2014/02/blog-post.html |title= किसने बनवाई 'पहली बार' श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की मूर्ति और क्यों ?|accessmonthday=16 मई |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वीणा हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref>
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13:24, 7 सितम्बर 2016 का अवतरण

चैतन्य महाप्रभु विषय सूची
चैतन्य महाप्रभु की मूर्ति
चैतन्य महाप्रभु
चैतन्य महाप्रभु
पूरा नाम चैतन्य महाप्रभु
अन्य नाम विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर
जन्म 18 फ़रवरी सन् 1486 (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा)
जन्म भूमि नवद्वीप (नादिया), पश्चिम बंगाल
मृत्यु सन् 1534
मृत्यु स्थान पुरी, उड़ीसा
अभिभावक जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी
पति/पत्नी लक्ष्मी देवी और विष्णुप्रिया
कर्म भूमि वृन्दावन, मथुरा
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंश के राजा श्रीसत्राजित की कन्या सत्यभामा से विवाह किया था। वही सत्यभामा जी, भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी की लीला में श्रीमती विष्णुप्रिया जी के रूप में आईं व राजा सत्राजित, श्रीमती विष्णुप्रिया जी के पिताजी श्रीसनातन मिश्र के रूप में प्रकट हुए।

विष्णुप्रिया बचपन से ही पिता-माता और विष्णु परायणा थीं। विष्णुप्रिया प्रतिदिन तीन बार गंगा में स्नान करती थीं। गंगा-स्नान को जाने के दिनों में ही शची माता के साथ आपका मिलन हुआ था। आप उनको प्रणाम करतीं तो शची माता आपको आशीर्वाद देतीं। आपके और भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी के विवाह की कथा को जो सुनता है, उसके तमाम सांसारिक बन्धन कट जाते हैं।

चैतन्य महाप्रभु अपने अनुयायियों के साथ नृत्य करते हुए

श्रीमन महाप्रभु जी के द्वारा 24 वर्ष की आयु में सन्न्यास ग्रहण करने पर विष्णुप्रिया अत्यन्त विरह संतप्त हुईं थीं। इन्होंने अद्भुत भजन का आदर्श प्रस्तुत किया था। मिट्टी के दो बर्तन लाकर अपने दोनों ओर रख लेतीं थीं। एक ओर खाली पात्र और दूसरी ओर चावल से भरा हुआ पात्र रख लेतीं थीं। सोलह नाम तथा बत्तीस अक्षर वाला मन्त्र (हरे कृष्ण महामन्त्र) एक बार जप कर एक चावल उठा कर खाली पात्र में रख देतीं थीं। इस प्रकार दिन के तीसरे प्रहर तक हरे कृष्ण महामन्त्र का जाप करतीं रहतीं और चावल एक बर्तन से दूसरे बर्तन में रखती जातीं। इस प्रकार जितने चावल इकट्ठे होते, उनको पका कर श्री चैतन्य महाप्रभु की को भाव से अर्पित करतीं। और वहीं प्रसाद पातीं।

कहाँ तक विष्णुप्रिया जी की महिमा कोई कहे, आप तो श्रीमन महाप्रभु की प्रेयसी हैं और निरन्तर हरे कृष्ण महामन्त्र करती रहती हैं। आपने ही सर्वप्रथम श्रीगौर-महाप्रभु जी की मूर्ति (विग्रह) का प्रकाश कर उसकी पूजा की थी। कोई-कोई भक्त ऐसा भी कहते हैं। श्रीमती सीता देवी के वनवास काल में एक पत्नी व्रती भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने सोने की सीता का निर्माण करवाकर यज्ञ किया था, पर दूसरी बार विवाह नहीं किया था। श्रीगौर-नारायण लीला में श्रीमती विष्णुप्रिया देवी ने उस ऋण से उऋण होने के लिए ही श्री गौरांग महाप्रभु जी की मूर्ति का निर्माण करा कर पूजा की थी। श्रीमती विष्णुप्रिया देवी द्वारा सेवित श्रीगौरांग की मूर्ति की अब भी श्रीनवद्वीप में पूजा की जाती है।[1]


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