"दुनियाँ भाँड़ा दुख का -कबीर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kabirdas-2.jpg |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
दुनियाँ भाँड़ा | दुनियाँ भाँड़ा दु:ख का, भरी मुहाँमुह भूष। | ||
अदया अल्लह राम की, कुरलै कौनी कूष।। | अदया अल्लह राम की, कुरलै कौनी कूष।। | ||
</poem> | </poem> |
14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||||
|
दुनियाँ भाँड़ा दु:ख का, भरी मुहाँमुह भूष। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! यह संसार तृष्णा से लबालब भरे हुए पात्र स्वरूप है। अत: यह दु:ख का भण्डार है। इसमें पूर्ण तृप्ति के लिए प्रयास करना व्यर्थ है। अल्लाह या राम की दया के बिना यह तृष्णा समाप्त नहीं हो सकती। हे जीव! जब सारा संसार एक अतृप्त वासना का भण्डार है तो ऐसे संसार में किस खजाने के लिए चीखता रहता है?
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख