"जाके हिरदै हरि बसै -कबीर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kabirdas-2.jpg |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
<poem> | <poem> | ||
जाके हिरदै हरि बसै, सो नर कलपै काँइ। | जाके हिरदै हरि बसै, सो नर कलपै काँइ। | ||
एकै लहरि समुंद की, | एकै लहरि समुंद की, दु:ख दालिद सब जाइ॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||||
|
जाके हिरदै हरि बसै, सो नर कलपै काँइ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जिसके हृदय में प्रभु का निवास है, वह और किसके लिए कल्पित है ? भगवान के अनुग्रह रूपी समुद्र की एक लहर मात्र से उसके सभी दु:ख और दारिद्रय नष्ट हो जाते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख