"संजय ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर": अवतरणों में अंतर
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'''संजय ख़ान''' | '''संजय ख़ान''' फ़िल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और चंडी सोना (1977), अब्दुल्ला (1980) और कल ढांडा गोरो लॉग (1986) जैसी लोकप्रिय फिल्मों के लेख लिखें। | ||
‘दोस्ती’, ‘दस लाख’, ‘एक फूल दो माली’, ‘इंतकाम’, ‘उपासना’, ‘मेला’ और ‘नागिन’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बतौर अभिनेता उनकी आखिरी फिल्म 1986 में आई. नाम था ‘काला धंधा गोरे लोग' थी। उसके बाद वह छोटे पर्दे पर लौट आए और उनके करियर ने नई उड़ान भरी। 1990 में उन्होंने टीवी सीरीज ‘द स्वोर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान’ शुरू की। खुद ही निर्माण किया और खुद ही टीपू सुल्तान का अभिनय किया।<ref>{{cite web |url=http://www.thelallantop.com/bherant/happy-birthday-sanjay-khan/ |title=ये है सबसे बड़ा हनुमान भक्त मुसलमान |accessmonthday=10 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.thelallantop.com |language=हिंदी}}</ref> | ‘दोस्ती’, ‘दस लाख’, ‘एक फूल दो माली’, ‘इंतकाम’, ‘उपासना’, ‘मेला’ और ‘नागिन’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बतौर अभिनेता उनकी आखिरी फिल्म 1986 में आई. नाम था ‘काला धंधा गोरे लोग' थी। उसके बाद वह छोटे पर्दे पर लौट आए और उनके करियर ने नई उड़ान भरी। 1990 में उन्होंने टीवी सीरीज ‘द स्वोर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान’ शुरू की। खुद ही निर्माण किया और खुद ही टीपू सुल्तान का अभिनय किया।<ref>{{cite web |url=http://www.thelallantop.com/bherant/happy-birthday-sanjay-khan/ |title=ये है सबसे बड़ा हनुमान भक्त मुसलमान |accessmonthday=10 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.thelallantop.com |language=हिंदी}}</ref> |
12:12, 11 जून 2017 का अवतरण
संजय ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर
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पूरा नाम | संजय ख़ान |
जन्म | 3 जनवरी, 1941 |
जन्म भूमि | बैंगलोर |
अभिभावक | पिता: सादिक अली ख़ान तानोली और माता - फातिमा ख़ान |
पति/पत्नी | जीनत अमान (1978-1979), जरीन ख़ान (1955) |
संतान | फ़राह ख़ान अली, सिमोन अरोड़ा, सुजैन ख़ान, जायद ख़ान |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता, निर्माता-निर्देशक |
पुरस्कार-उपाधि | उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981), लाइफ़टाइम अचीवर अवॉर्ड (1996) |
प्रसिद्धि | अभिनेता |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | संजय ख़ान कारों, खास तौर से इंपोर्टेड कारों के बड़े शौक़ीन हैं। घोड़ों और कुत्तों से उन्हें खास लगाव है। वह बढ़िया घुड़सवार भी हैं। |
संजय ख़ान फ़िल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और चंडी सोना (1977), अब्दुल्ला (1980) और कल ढांडा गोरो लॉग (1986) जैसी लोकप्रिय फिल्मों के लेख लिखें।
‘दोस्ती’, ‘दस लाख’, ‘एक फूल दो माली’, ‘इंतकाम’, ‘उपासना’, ‘मेला’ और ‘नागिन’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बतौर अभिनेता उनकी आखिरी फिल्म 1986 में आई. नाम था ‘काला धंधा गोरे लोग' थी। उसके बाद वह छोटे पर्दे पर लौट आए और उनके करियर ने नई उड़ान भरी। 1990 में उन्होंने टीवी सीरीज ‘द स्वोर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान’ शुरू की। खुद ही निर्माण किया और खुद ही टीपू सुल्तान का अभिनय किया।[1]
‘द स्वोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ की शूटिंग के दौरान 8 फरवरी, 1990 को वह एक आग की दुर्घटना में 65 फीसदी तक झुलस गए थे। इस हादसे में 52 लोगों की मौत हो गई थी। 13 दिनों में 73 सर्जरी करवाने के बाद संजय को अस्पताल से छुट्टी मिल गई और लौटकर उन्होंने ‘टीपू सुल्तान’ की शूटिंग पूरी की। इसमें उनके निर्देशक और अभिनय दोनों को सराहा गया। 1997 में संजय ख़ान ने मेगा टीवी सीरीज ‘जय हनुमान’ को प्रोड्यूस और डायरेक्ट किया। भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान की कहानी को इस तरह पहली बार भारत की टीवी इंडस्ट्री में पेश किया गया। इसे ज़बरदस्त सराहना मिली। साल 2000 तक ‘जय हनुमान’ का प्रसारण हुआ। उन्होंने मराठा जनरल महाद जी सिंधिया के जीवन पर आधारित मेगा भारतीय टीवी श्रृंखला का निर्माण और निर्देशन किया। 'द ग्रेट मराठा' यह तीसरे पानीपत युद्ध को मराठों के साहस और दृढ़ता को दर्शाता है, जो 1769 में अफ़गान हमलावर अहमद शाह अब्दाली की एक ताकतवर सेना का सामना कर रहे थे। 1990 के दशक के दौरान उन्होंने '1857 क्रांति' और 'महारथी कर्ण' जैसी टीवी-सीरीज का निर्माण और निर्देशन किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ये है सबसे बड़ा हनुमान भक्त मुसलमान (हिंदी) www.thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 10 जून, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
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