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अभिनेत्री दुलारी को आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। दुलारी ने भी शुरुआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे। | अभिनेत्री दुलारी को आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। दुलारी ने भी शुरुआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे। | ||
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अभिनेत्री दुलारी का जन्म 18 अप्रॅल सन 1928 को नागपुर, [[महाराष्ट्र]] में हुआ था। दुलारी जी के अनुसार, उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले [[उत्तर प्रदेश]] के [[अवध|अवध क्षेत्र]] से आकर [[नागपुर]] में बस गए थे। अपने [[माता]]-[[पिता]] की दुलारी जी पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यूँ तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया था, लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री [[अरुणा ईरानी]] के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वे उस कंपनी के साथ [[मुंबई]] आ गए। ये सन [[1930]] के दशक के शुरू का समय था। | अभिनेत्री दुलारी का जन्म 18 अप्रॅल सन 1928 को नागपुर, [[महाराष्ट्र]] में हुआ था। दुलारी जी के अनुसार, उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले [[उत्तर प्रदेश]] के [[अवध|अवध क्षेत्र]] से आकर [[नागपुर]] में बस गए थे। अपने [[माता]]-[[पिता]] की दुलारी जी पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यूँ तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया था, लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री [[अरुणा ईरानी]] के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वे उस कंपनी के साथ [[मुंबई]] आ गए। ये सन [[1930]] के दशक के शुरू का समय था।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2012/12/aan-milo-aan-milo-shyam-sanware-dulari.html |title=दुलारी |accessmonthday=15 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> | ||
==अभिनय की शुरुआत== | ==अभिनय की शुरुआत== | ||
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10:40, 15 जून 2017 का अवतरण
दुलारी का परिचय
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पूरा नाम | दुलारी |
अन्य नाम | अम्बिका (मूल नाम) |
जन्म | 18 अप्रॅल, 1928 |
जन्म भूमि | नागपुर, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 18 जनवरी, 2013 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | विट्ठलराव गौतम डाकतार |
पति/पत्नी | जगन्नाथ भीखाजी जगताप |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | ‘रोटी’, 'शहनाई', ‘अलबेला’, 'पापी, ‘जीवन ज्योति’, देवदास, ‘आए दिन बहार के’, ‘पड़ोसन’, ‘आराधना’, ‘आया सावन झूम के’, ‘आन मिलो सजना’, ‘कारवां’, ‘सीता और गीता’, ‘हाथ की सफ़ाई’, ‘दीवार’, ‘प्रेम रोग’, ‘अगर तुम न होते’ आदि। |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की मशहूर फ़िल्म ‘झूला’ (1941) दुलारी जी की पहली फ़िल्म थी, जिसमें वे आश्रम में रहने वाली लड़की की महज़ एक सीन की एक छोटी से भूमिका में नज़र आयी थीं। |
अद्यतन | 15:33, 15 जून 2017 (IST)
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अभिनेत्री दुलारी को आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। दुलारी ने भी शुरुआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे।
परिचय
अभिनेत्री दुलारी का जन्म 18 अप्रॅल सन 1928 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। दुलारी जी के अनुसार, उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र से आकर नागपुर में बस गए थे। अपने माता-पिता की दुलारी जी पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यूँ तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया था, लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री अरुणा ईरानी के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वे उस कंपनी के साथ मुंबई आ गए। ये सन 1930 के दशक के शुरू का समय था।[1]
अभिनय की शुरुआत
कुछ सालों बाद विट्ठलराव गौतम ने अपने परिवार को भी मुंबई बुला लिया। दुलारी जी के मुताबिक़ साल 1939 में वे मुंबई आयीं तो उस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 12 साल थी। उनकी शुरुआती पढ़ाई नागपुर में हुई थी और मुंबई आने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। दुलारी जी के मुताबिक़, नाटकों से पिता की कोई ख़ास आमदनी न हो पाने की वजह से घर में आर्थिक तंगी बनी रहती थी। ऐसे में पिता का हाथ बंटाने के लिए वे भी अरुणा ईरानी के पिता की नाटक कंपनी ‘अल्फ़्रेड-खटाऊ’ में शामिल हो गयीं। फिर कुछ समय बाद वे दो अन्य कंपनियों ‘देसी नाटक समाज’ और ‘आर्यनैतिक’ के गुजराती नाटकों में हिस्सा लेने लगीं। यहां से उनके अभिनय जीवन की शुरुआत हुई।
‘बॉम्बे टॉकीज़’ की मशहूर फ़िल्म ‘झूला’ (1941) दुलारी जी की पहली फ़िल्म थी जिसमें वे आश्रम में रहने वाली लड़की की महज़ एक सीन की एक छोटी से भूमिका में नज़र आयी थीं। उन्हीं दिनों उन्हें सेठ यूसुफ़ फ़ज़लभाई के ‘नेशनल स्टूडियो’ में 100 रुपए महिने के वेतन पर नौकरी मिल गयी। दुलारी जी ने इस बैनर की फ़िल्मों ‘रोटी’, ‘अपना पराया’ और ‘जवानी’ (सभी 1942) में छोटी छोटी भूमिकाएं कीं। दुलारी जी के मुताबिक़, ‘फ़िल्म ‘जवानी’ में मैं फ़िल्म की हिरोईन हुस्नबानो की सहेली बनी थी, जिनके साथ मुझे एक गीत पर डांस करना था। लेकिन डांस करना मुझे आता ही नहीं था। ये एक ऐसी कमी थी, जिसने आख़िर तक मेरा पीछा नहीं छोड़ा’।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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