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==अर्थ सहित व्याख्या==
==अर्थ सहित व्याख्या==
[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! यौवन पर गर्व करना व्यर्थ है। यह क्षणभंगुर है। पलाश के फूल के समान इसकी बहार थोड़े दिनों के लिए है। जैसे यह फूल थोड़े ही दिनों में मुरझाकर गिर जाता है, वैसे ही जवानी की प्रफुल्लता भी अल्प दिनों की होती है। कुछ दिनों के पश्चात जैसे पलाश पत्र-पुष्प-विहीन होकर ठूँठ मात्र रह जाता है, वैसे ही यह शरीर भी यौवन-विहीन होकर कंकाल मात्र रह जाता है।
[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! यौवन पर गर्व करना व्यर्थ है। यह क्षणभंगुर है। पलाश के फूल के समान इसकी बहार थोड़े दिनों के लिए है। जैसे यह फूल थोड़े ही दिनों में मुरझाकर गिर जाता है, वैसे ही जवानी की प्रफुल्लता भी अल्प दिनों की होती है। कुछ दिनों के पश्चात् जैसे पलाश पत्र-पुष्प-विहीन होकर ठूँठ मात्र रह जाता है, वैसे ही यह शरीर भी यौवन-विहीन होकर कंकाल मात्र रह जाता है।





07:42, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

कबीर कहा गरबियो -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

कबीर कहा गरबियो, इस जोवन की आस।
केसू फूले दिवस दोइ, खंखर भये पलास।।

अर्थ सहित व्याख्या

कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! यौवन पर गर्व करना व्यर्थ है। यह क्षणभंगुर है। पलाश के फूल के समान इसकी बहार थोड़े दिनों के लिए है। जैसे यह फूल थोड़े ही दिनों में मुरझाकर गिर जाता है, वैसे ही जवानी की प्रफुल्लता भी अल्प दिनों की होती है। कुछ दिनों के पश्चात् जैसे पलाश पत्र-पुष्प-विहीन होकर ठूँठ मात्र रह जाता है, वैसे ही यह शरीर भी यौवन-विहीन होकर कंकाल मात्र रह जाता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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