"गोविन्द निहलानी": अवतरणों में अंतर
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'''गोविन्द निहलानी''' ([[अंग्रेजी]] | '''गोविन्द निहलानी''' ([[अंग्रेजी]]: Govind Nihalani, जन्म: [[19 दिसंबर]], [[1940]] [[कराची]]) प्रसिद्ध [[हिंदी]] फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक है। अपनी उम्र के 74वें पड़ाव पर पहुंचे गोविंद को समानांतर फ़िल्मों को मुख्यधारा की फ़िल्मों के बराबर ला खड़ा करने और सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को बेहद कुशलता से पर्दे पर उतारती उत्कृष्ट फ़िल्मों के निर्माण के लिए जाना जाता है।<ref name="aa"/> | ||
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12:56, 28 जुलाई 2017 का अवतरण
गोविन्द निहलानी
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पूरा नाम | गोविन्द निहलानी |
जन्म | 19 दिसंबर, 1940 |
जन्म भूमि | कराची |
मुख्य फ़िल्में | आक्रोश, विजेता, अर्ध सत्य, पार्टी |
पुरस्कार-उपाधि | पांच फ़िल्मफेयर पुरस्कार और 2002 में नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से भी नवाजा जा चुका है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गोविन्द निहलानी को निर्देशक के रूप में अपना हुनर साबित करने का मौका 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म 'आक्रोश' के जरिए मिला। |
अद्यतन | 18:04, 28 जुलाई 2017 (IST)
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गोविन्द निहलानी (अंग्रेजी: Govind Nihalani, जन्म: 19 दिसंबर, 1940 कराची) प्रसिद्ध हिंदी फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक है। अपनी उम्र के 74वें पड़ाव पर पहुंचे गोविंद को समानांतर फ़िल्मों को मुख्यधारा की फ़िल्मों के बराबर ला खड़ा करने और सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को बेहद कुशलता से पर्दे पर उतारती उत्कृष्ट फ़िल्मों के निर्माण के लिए जाना जाता है।[1]
परिचय
गोविन्द निहलानी का जन्म 19 दिसंबर, 1940 को कराची में हुआ था। गोविंद निहलानी का परिवार 1947 के विभाजन के दौरान भारत आ गया था। गोविंद ने 'आक्रोश', 'विजेता', 'अर्ध सत्य', 'रुकमावती की हवेली', 'द्रोहकाल', 'देव' और 'हजार चौरासी की मां' जैसी समानांतर और कालजयी फ़िल्में बनाई हैं। उनकी फ़िल्मों को समीक्षकों और दर्शकों, दोनों ही वर्गो ने सराहा है। व्यावसायिक फ़िल्मों में कैमरामैन वीके मूर्ति के सहायक के रूप में काम करके जहां उन्हें तकनीकी कौशल हासिल करने का मौका मिला, वहीं श्याम बेनेगल जैसे मंझे हुए फ़िल्मकार के साथ काम करके उन्हें समानांतर सिनेमा के निर्देशन की बारीकियां सीखने में मदद मिली।[1]
फ़िल्मी कॅरियर
अपने करियर की शुरुआत उन्होंने विज्ञापन फ़िल्मों से की थी, जिसके बाद उन्हें प्रसिद्ध निर्देशक श्याम बेनेगल के साथ उनकी फ़िल्मों 'निशांत', 'मंथन', 'जुनून' में एक छायाकार के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने का मौका मिला। लेकिन उन्हें निर्देशक के रूप में अपना हुनर साबित करने का मौका 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म 'आक्रोश' के जरिए मिला। सच्ची कहानी पर आधारित इस फ़िल्म की पटकथा प्रख्यात नाटककार विजय तेंदुलकर ने लिखी थी। निहलानी की इस फ़िल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया था। अस्सी के दशक में जब गोविंद निहलानी की पहली फ़िल्म 'अर्धसत्य' आई थी, तो न सिर्फ तहलका मचा गई थी, बल्कि एक नया कीर्तिमान भी गढ़ गई थी। 'अर्धसत्य' में निहलानी ने अपने कैमरे और कहानी के माध्यम से जो तानाबाना बुना था, उसे आज भी एक खास स्थान हासिल है। 'अर्धसत्य' ने अलग-अलग वर्गो में पांच फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीते थे। पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन पर आधारित उनकी फ़िल्म 'हजार चौरासी की मां' भी फ़िल्मी पायदान पर एक अलग उपलब्धि हासिल करने में सफल रही थी।[1]
इसी प्रकार उनकी फ़िल्म 'द्रोहकाल' ने भी दर्शकों और आलोचकों सभी का दिल जीत लिया था। प्रख्यात अभिनेता और निर्देशक कमल हासन ने 'द्रोहकाल' का तमिल रीमेक 'कुरुथीपुनल' भी बनाया था, जिसे बाद में 68 वें अकादमी पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फ़िल्म श्रेणी में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के तौर पर चुना गया। निहलानी की फ़िल्में ऐसी नहीं होतीं, जिन्हें आप देखें और देखकर भूल जाएं। अव्वल तो उनकी फ़िल्म का प्रभाव फ़िल्म खत्म होने के बाद शुरू होता है। उनके पात्र आमतौर पर बुद्धिमान, गंभीर और विश्वास से भरे नजर आते हैं तो वहीं उनके कई पात्रों के भीतर एक आग दिखाई देती है, समाज के प्रति आक्रोश दिखाई देता है। निहलानी रंगमंच को भी बॉलीवुड के समान ही बेहद सशक्त माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि सिनेमा और रंगमंच दो बहनों की तरह हैं और बॉलीवुड के प्रभुत्व के बावजूद रंगमंच का अपना अलग स्थान और महत्व है।[1]
पुरस्कार एंव सम्मान
निहलानी को 'जुनून', 'हजार चौरासी की मां', 'तमस', 'आक्रोश', 'अर्धसत्य' और 'दृष्टि' के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें पांच फ़िल्मफेयर पुरस्कार और 2002 में नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से भी नवाजा जा चुका है।[1]
फ़िल्में
गोविन्द द्वारा कुछ मुख्य फ़िल्में निर्देशित की गयी है। गोविंद निहलानी की कुछ खास फिल्मे हैं :- आक्रोश (1980),विजेता (1982),अर्ध सत्य (1983),पार्टी आदि।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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