"गंगा नहर": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
इस नहर का प्रारंभिक निर्माण 1842 से 1854 के मध्य, 6000 फीट/ सेकण्ड के निस्सरण के लिए किया गया था। उत्तरी गंगा नहर को तब से समय के साथ आज के निस्सरण 10500 फुट/सेकण्ड (295 मी./सेकण्ड) के अनुसार धीरे-धीरे बढ़ाया गया है। नहर प्रणाली में 272 मील लम्बी मुख्य नहर और 4000 मील लंबी वितरण वाहिकायें समाहित हैं। इस नहर प्रणाली से [[उत्तर प्रदेश]] और [[उत्तराखंड]] के कई ज़िलों की लगभग 9000 कि.मी.<sup>2</sup> उपजाऊ कृषि भूमि सींची जाती है। आज यह नहर प्रणाली इन राज्यों में [[कृषि]] समृद्धि का मुख्य स्रोत है और दोनों राज्यों के सिंचाई विभागों द्वारा इसका अनुरक्षण बड़े मनोयोग से किया जाता है। | इस नहर का प्रारंभिक निर्माण 1842 से 1854 के मध्य, 6000 फीट/ सेकण्ड के निस्सरण के लिए किया गया था। उत्तरी गंगा नहर को तब से समय के साथ आज के निस्सरण 10500 फुट/सेकण्ड (295 मी./सेकण्ड) के अनुसार धीरे-धीरे बढ़ाया गया है। नहर प्रणाली में 272 मील लम्बी मुख्य नहर और 4000 मील लंबी वितरण वाहिकायें समाहित हैं। इस नहर प्रणाली से [[उत्तर प्रदेश]] और [[उत्तराखंड]] के कई ज़िलों की लगभग 9000 कि.मी.<sup>2</sup> उपजाऊ कृषि भूमि सींची जाती है। आज यह नहर प्रणाली इन राज्यों में [[कृषि]] समृद्धि का मुख्य स्रोत है और दोनों राज्यों के सिंचाई विभागों द्वारा इसका अनुरक्षण बड़े मनोयोग से किया जाता है। | ||
नहर [[हरिद्वार]] से निकलकर रुड़की, [[मुज़फ्फरनगर ज़िला|मुज़फ्फरनगर]], [[मेरठ]], [[गाज़ियाबाद]], [[बुलंदशहर]] होते हुए [[कानपुर]] तक चली जाती है। रुड़की में नहर के रास्ते में सोलानी नदी आती है। इस नदी पर पुल बनाना | नहर [[हरिद्वार]] से निकलकर रुड़की, [[मुज़फ्फरनगर ज़िला|मुज़फ्फरनगर]], [[मेरठ]], [[गाज़ियाबाद]], [[बुलंदशहर]] होते हुए [[कानपुर]] तक चली जाती है। रुड़की में नहर के रास्ते में सोलानी नदी आती है। इस नदी पर पुल बनाना ज़रूरी था, ताकि इसके ऊपर से नहर का पानी गुजर सके। यह पुल कोई छोटा-मोटा नहीं बनना था। पुल के निर्माण के लिए कुछ लक्कड़ों से काम नहीं चलने वाला था। इसके लिए जितने भी [[कच्चा माल|कच्चे माल]] की ज़रूरत पड़ी, वो पिरान कलियर से आता था। पिरान कलियर रुड़की से लगभग दस किलोमीटर दूर एक [[ग्राम]] है।<ref>{{cite web |url= http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-at-a-glance/who-where-why-in-uttarakhand/265/?wap2|title= रुड़की में चली थी भारत की पहली रेल|accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= merapahadforum.com|language= हिन्दी}}</ref> वह रेल जिसके माध्यम से पुल निर्माण की सामग्री ढोई जानी थी, वह लकड़ी की थी। यह रेल [[22 दिसम्बर]], 1851 ई. को शुरू हुई थी। इसमे केवल दो डिब्बे थे, जो पुल निर्माण की सामग्री ढोते थे। जब [[दिल्ली]] से हरिद्वार जाते हैं तो रुड़की पार करके सोलानी नदी आती है। सड़क वाले पुल से बाएं देखने पर एक और जबरदस्त आकार वाला पुल दिखाई देता है। यही वह ऐतिहासिक पुल है। इसी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को खुशहाल बनाने वाली गंगा नहर बहती है। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
सन 1837-38 में पड़े भीषण [[अकाल]] के बाद चले राहत कार्यों में खर्च हुए लगभग दस मिलियन (एक करोड़) रुपये और इस कारण से [[ईस्ट इंडिया कंपनी|ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी]] को हुई राजस्व हानि के बाद, एक सुचारू सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता महसूस की गयी। गंगा नहर को अस्तित्व में लाने का श्रेय कर्नल प्रोबी कॉटली को जाता है, जिन्हें पूरा विश्वास था कि एक 500 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण किया जा सकता है। उनकी इस परियोजना के विरोध में बहुत-सी बाधायें और आपत्तियां आयीं, जिनमें से ज्यादातर वित्तीय थीं। लेकिन कॉटली ने लगातार छ: महीने तक किये गये पूरे इलाके का दौरे और सर्वेक्षण के बाद अंतत: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को इस परियोजना को प्रायोजित करने के लिए राजी कर लिया। नहर की खुदाई का काम [[अप्रैल]], 1842 ई. में शुरू हुआ। कॉटली ने नहर के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली ईंटों के लिए भट्ठों की स्थापना की। प्रारंभ में कॉटली को [[हरिद्वार]] के हिंदू पुजारियों के विरोध का सामना करना पड़ा, जो यह सोचते थे कि पवित्र [[गंगा नदी]] के पानी को कैद करना सही नहीं होगा। कॉटली ने उन्हें यह कहकर शांत किया कि वो बनने वाले बाँध में एक अंतराल छोड़ देंगे, जहां से गंगा का पानी निर्बाध रूप से प्रवाहित हो सकेगा। इसके अलावा कॉटली ने पुजारियों को खुश करने के लिए नदी किनारे स्थित स्नान घाटों की मरम्मत कराने का वादा भी किया। कॉटली ने नहर निर्माण कार्य का उद्घाटन भी [[गणेश|भगवान गणेश]] की वंदना से किया। | सन 1837-38 में पड़े भीषण [[अकाल]] के बाद चले राहत कार्यों में खर्च हुए लगभग दस मिलियन (एक करोड़) रुपये और इस कारण से [[ईस्ट इंडिया कंपनी|ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी]] को हुई राजस्व हानि के बाद, एक सुचारू सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता महसूस की गयी। गंगा नहर को अस्तित्व में लाने का श्रेय कर्नल प्रोबी कॉटली को जाता है, जिन्हें पूरा विश्वास था कि एक 500 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण किया जा सकता है। उनकी इस परियोजना के विरोध में बहुत-सी बाधायें और आपत्तियां आयीं, जिनमें से ज्यादातर वित्तीय थीं। लेकिन कॉटली ने लगातार छ: महीने तक किये गये पूरे इलाके का दौरे और सर्वेक्षण के बाद अंतत: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को इस परियोजना को प्रायोजित करने के लिए राजी कर लिया। नहर की खुदाई का काम [[अप्रैल]], 1842 ई. में शुरू हुआ। कॉटली ने नहर के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली ईंटों के लिए भट्ठों की स्थापना की। प्रारंभ में कॉटली को [[हरिद्वार]] के हिंदू पुजारियों के विरोध का सामना करना पड़ा, जो यह सोचते थे कि पवित्र [[गंगा नदी]] के पानी को कैद करना सही नहीं होगा। कॉटली ने उन्हें यह कहकर शांत किया कि वो बनने वाले बाँध में एक अंतराल छोड़ देंगे, जहां से गंगा का पानी निर्बाध रूप से प्रवाहित हो सकेगा। इसके अलावा कॉटली ने पुजारियों को खुश करने के लिए नदी किनारे स्थित स्नान घाटों की मरम्मत कराने का वादा भी किया। कॉटली ने नहर निर्माण कार्य का उद्घाटन भी [[गणेश|भगवान गणेश]] की वंदना से किया। |
10:48, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
गंगा नहर
| |
विवरण | 'गंगा नहर' उत्तर प्रदेश राज्य की प्रमुख नहर प्रणाली है। मुख्य रूप से एक सिंचाई नहर है, हालांकि इसके कुछ हिस्सों को नौचालन के लिए भी इस्तेमाल किया गया था। |
राज्य | उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड |
लम्बाई | 272 मील |
विभाजन | ऊपरी गंगा नहर और निचली गंगा नहर |
संबंधित लेख | उत्तर प्रदेश की नहरें, नदी घाटी परियोजनाएँ |
अन्य जानकारी | प्रशासनिक रूप से गंगा नहर को 'ऊपरी गंगा नहर' जो अपनी कई शाखाओं के साथ हरिद्वार से लेकर अलीगढ़ तक है और, 'निचली गंगा नहर' जो अलीगढ़ से नीचे के भाग में स्थित है, में विभाजित किया गया है। |
गंगा नहर एक नहर प्रणाली है, जिसका प्रयोग गंगा नदी और यमुना नदी के बीच के दोआब क्षेत्र की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह नहर मुख्य रूप से एक सिंचाई नहर है, हालांकि इसके कुछ हिस्सों को नौचालन के लिए भी इस्तेमाल किया गया था। इस नहर प्रणाली में नौकाओं के लिए जल यातायात सुगम बनाने के लिए अलग से जलपाश युक्त नौवहन वाहिकाओं का निर्माण किया गया था। यह नहर हरिद्वार से निकलकर रुड़की, मुज़फ्फरनगर, मेरठ, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर होते हुए कानपुर तक चली जाती है।
निर्माण
इस नहर का प्रारंभिक निर्माण 1842 से 1854 के मध्य, 6000 फीट/ सेकण्ड के निस्सरण के लिए किया गया था। उत्तरी गंगा नहर को तब से समय के साथ आज के निस्सरण 10500 फुट/सेकण्ड (295 मी./सेकण्ड) के अनुसार धीरे-धीरे बढ़ाया गया है। नहर प्रणाली में 272 मील लम्बी मुख्य नहर और 4000 मील लंबी वितरण वाहिकायें समाहित हैं। इस नहर प्रणाली से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई ज़िलों की लगभग 9000 कि.मी.2 उपजाऊ कृषि भूमि सींची जाती है। आज यह नहर प्रणाली इन राज्यों में कृषि समृद्धि का मुख्य स्रोत है और दोनों राज्यों के सिंचाई विभागों द्वारा इसका अनुरक्षण बड़े मनोयोग से किया जाता है।
नहर हरिद्वार से निकलकर रुड़की, मुज़फ्फरनगर, मेरठ, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर होते हुए कानपुर तक चली जाती है। रुड़की में नहर के रास्ते में सोलानी नदी आती है। इस नदी पर पुल बनाना ज़रूरी था, ताकि इसके ऊपर से नहर का पानी गुजर सके। यह पुल कोई छोटा-मोटा नहीं बनना था। पुल के निर्माण के लिए कुछ लक्कड़ों से काम नहीं चलने वाला था। इसके लिए जितने भी कच्चे माल की ज़रूरत पड़ी, वो पिरान कलियर से आता था। पिरान कलियर रुड़की से लगभग दस किलोमीटर दूर एक ग्राम है।[1] वह रेल जिसके माध्यम से पुल निर्माण की सामग्री ढोई जानी थी, वह लकड़ी की थी। यह रेल 22 दिसम्बर, 1851 ई. को शुरू हुई थी। इसमे केवल दो डिब्बे थे, जो पुल निर्माण की सामग्री ढोते थे। जब दिल्ली से हरिद्वार जाते हैं तो रुड़की पार करके सोलानी नदी आती है। सड़क वाले पुल से बाएं देखने पर एक और जबरदस्त आकार वाला पुल दिखाई देता है। यही वह ऐतिहासिक पुल है। इसी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को खुशहाल बनाने वाली गंगा नहर बहती है।
इतिहास
सन 1837-38 में पड़े भीषण अकाल के बाद चले राहत कार्यों में खर्च हुए लगभग दस मिलियन (एक करोड़) रुपये और इस कारण से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को हुई राजस्व हानि के बाद, एक सुचारू सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता महसूस की गयी। गंगा नहर को अस्तित्व में लाने का श्रेय कर्नल प्रोबी कॉटली को जाता है, जिन्हें पूरा विश्वास था कि एक 500 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण किया जा सकता है। उनकी इस परियोजना के विरोध में बहुत-सी बाधायें और आपत्तियां आयीं, जिनमें से ज्यादातर वित्तीय थीं। लेकिन कॉटली ने लगातार छ: महीने तक किये गये पूरे इलाके का दौरे और सर्वेक्षण के बाद अंतत: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को इस परियोजना को प्रायोजित करने के लिए राजी कर लिया। नहर की खुदाई का काम अप्रैल, 1842 ई. में शुरू हुआ। कॉटली ने नहर के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली ईंटों के लिए भट्ठों की स्थापना की। प्रारंभ में कॉटली को हरिद्वार के हिंदू पुजारियों के विरोध का सामना करना पड़ा, जो यह सोचते थे कि पवित्र गंगा नदी के पानी को कैद करना सही नहीं होगा। कॉटली ने उन्हें यह कहकर शांत किया कि वो बनने वाले बाँध में एक अंतराल छोड़ देंगे, जहां से गंगा का पानी निर्बाध रूप से प्रवाहित हो सकेगा। इसके अलावा कॉटली ने पुजारियों को खुश करने के लिए नदी किनारे स्थित स्नान घाटों की मरम्मत कराने का वादा भी किया। कॉटली ने नहर निर्माण कार्य का उद्घाटन भी भगवान गणेश की वंदना से किया।
नहर संरचना
प्रशासनिक रूप से गंगा नहर को 'ऊपरी गंगा नहर' जो अपनी कई शाखाओं के साथ हरिद्वार से लेकर अलीगढ़ तक है और, 'निचली गंगा नहर' जो अलीगढ़ से नीचे के भाग में स्थित है, में विभाजित किया गया है।
ऊपरी गंगा नहर
ऊपरी गंगा नहर ही मूल गंगा नहर है, जो हरिद्वार में 'हर की पौड़ी' से शुरु होकर मेरठ, बुलंदशहर से अलीगढ़ में स्थित नानु तक जाती है, जहां से यह कानपुर और इटावा शाखाओं में बंट जाती है। गंगा नहर के साथ-साथ चलने वाला एक राजमार्ग कई बार प्रस्तावित किया गया है। 2010 में ऐसा ही एक प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया गया, क्योंकि प्रस्तावित राजमार्ग के निर्माण से लगभग एक लाख वृक्ष प्रभावित होते, जिसके कारण इस क्षेत्र की वनस्पतियों को नुकसान पहुँचता और वन्य जीवन के प्राकृतिक पर्यावास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। यह प्रस्तावित एक्सप्रेस वे (आशुगमार्ग) कुछ स्थानों पर तो हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से सिर्फ 500-600 मीटर ही दूर था। दो सड़कें एक तो राष्ट्रीय राजमार्ग 58 और दूसरी कांवड़ मार्ग पहले से ही आवागमन के लिए उपलब्ध हैं।
निचली गंगा नहर
नरोरा बांध से एक वाहिका नहर प्रणाली को नानु से 48 कि.मी. नीचे से काटती है और सेंगुर नदी, सेरसा नदी और मैनपुरी ज़िले के शिकोहाबाद को पार कर आगे बढ़ती है और गंगा नहर की भोगनीपुर शाखा कहलाती है। इसे 1880 ई. में खोला गया था। यह शाखा मैनपुरी ज़िले के जेरा गांव से शुरु होकर 166 कि.मी. की दूरी के बाद कानपुर पहुंचती है। 64 किलोमीटर की दूरी पर बलराय सहायक शाखा जो एक 6.4 कि.मी. लंबी वाहिका है, अतिरिक्त पानी को यमुना नदी में छोड़ती है। इस शाखा में सहायक वाहिकाओं की कुल दूरी 386 किलोमीटर है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रुड़की में चली थी भारत की पहली रेल (हिन्दी) merapahadforum.com। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।