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'''कमल जयसिंह रणदिवे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamal Jayasing Ranadive'', जन्म- [[8 नवम्बर]], [[1917]]; मृत्यु- [[11 अप्रॅल]], [[2001]]) प्रसिद्ध भारतीय महिला चिकित्सक थीं। [[भारत]] में महिलाओं के अधिकारों के लिए यूं तो बहुत सी महिलाओं का योगदान है, लेकिन | '''कमल जयसिंह रणदिवे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamal Jayasing Ranadive'', जन्म- [[8 नवम्बर]], [[1917]]; मृत्यु- [[11 अप्रॅल]], [[2001]]) प्रसिद्ध भारतीय महिला चिकित्सक थीं। [[भारत]] में महिलाओं के अधिकारों के लिए यूं तो बहुत सी महिलाओं का योगदान है, लेकिन डॉ। कमल रणदिवे का नाम कुछ विशेष है। डॉ। कमल रणदिवे ने अपनी व्यवसायिक सफलता को भारतीय महिलाओं की समानता के लिए विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में लगाने का काम किया। भारतीय जैव चिकित्सकीय शोधकर्ता के रूप में उन्होंने कैंसर के इलाज के लिए उल्लेखनीय कार्य किया। कमल रणदिवे भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की संस्थापक सदस्य थीं। उनके चिकित्सा में उल्लेखनीय शोधकार्य के लिए उन्हें '[[पद्म भूषण]]' सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। | ||
==परिचय== | |||
डॉ। कमल रणदिवे का जन्म 8 नवंबर, 1917 को [[पुणे]] ([[महाराष्ट्र]]) में हुआ था। उनके [[पिता]] दिनकर दत्तात्रेय समर्थ बायोलॉजिस्ट थे और पूणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ाया करते थे। पिता ने उनकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया और कमल खुद पढ़ाई में बहुत कुशाग्र थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में हुजूरपागा के गर्ल्स स्कूल में हुई थी।<ref name="pp">{{cite web |url=https://hindi.news18.com/news/knowledge/kamal-ranadives-birthday-google-doodle-indian-cancer-researcher-viks-3838409.html |title=जानए कौन हैं कमल रणदिवे जिनके लिए गूगल ने बनाया है डूडल|accessmonthday=08 नवंबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.news18.com |language=हिंदी}}</ref> | |||
==चिकित्सा की जगह जीवविज्ञान== | |||
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==पीएचडी== | |||
उत्तरोस्नातक में कमल रणदिवे का विषय साइनोजेनिक्टस ऑफ एनोकाके था जो साइटोलॉजी की एक शाखा है। साइटोलॉजी उनके पिता का भी विषय था। विवाह के बाद कमल [[मुंबई]] आ गईं जहां उन्होंने टाटा मेमरियल हॉस्पिटल में काम शुरू कर दिया और बांबे यूनिवर्सिटी में पीएचडी की पढ़ाई भी करने लगीं। | |||
==टिशू कल्चर तकनीक पर काम== | |||
पीएचडी पूरी करने के बाद डॉ। कमल रणदिवे ने पोस्ट डॉक्टरल शोध के लिए टीशू कल्चर तकनीक पर बाल्टोर की जान हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के जॉर्ज गे की लैब में टीशू कल्चर तकनीक पर काम किया और [[भारत]] आकर भारतीय कैंसर रिसर्च सैंटर से जुड़ कर अपने प्रोफेशनल करियर शुरू किया। उन्होंने मुंबई में एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी लैबोरेटरी और टिशू कल्चर लैबोरेटरी की स्थापना में अहम योगदान दिया।<ref name="pp"/> | |||
==शोध कार्य== | |||
सन [[1966]] से लेकर [[1970]] के बीच में कमल रणदिवे भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र के निदेशक रहीं। यहीं उन्होंने टिशू कल्चर मीडिया और उससे संबंधित रिएजेंट्स विकसित किए। उन्होंने केंद्र में कार्सिजेनोसिस, सेल बायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के शोध शाखाएं खोलीं। उनकी शोध उपलब्धियों में कैंसर की पैथोफिजियोलॉजी पर शोध प्रमुख था जिससे बल्ड कैंसर, स्तन कैंस और इसोफेगल कैंसर जैसी बीमारियों के कारण पता लगाने में सहायता मिली। | |||
==महिला वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा== | |||
इसके अलावा कमल रणदिवे ने कैंसर, हारमोन और ट्यूमर वायरस के बीच संबंधों का पता लगाया। वहां कोढ़ जैसी असाध्य मानी जाने वाली बीमारी का टीका भी उनके शोध के कारण संभव हुआ जो कोढ़ के बैक्टीरिया से संबंधित था। वे कैंसर पर काम करने वाली भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए बड़ी प्रेरणा बनीं। | |||
शोधकार्य के अलावा डॉ। कमल रणदिवे ने [[महाराष्ट्र]] के अहमदनगर में जनजातीय बच्चों के पोषण स्थिति से संबंधित आंकड़ों को जमा करने का का भी किया। इसके साथ उन्होंने वहां राजपुर और अहमदनगर की ग्रामीण महिलाओं को भी सरकारी परियोजनाओं के जरिए भारतीय महिला संघ के तहत चिकित्सकीय और स्वास्थ्य सहायता प्रदान की। [[1982]] में उन्हें '[[पद्म भूषण]]' से भी सम्मानित किया गया।<ref name="pp"/> | |||
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07:11, 8 नवम्बर 2021 का अवतरण
कमल जयसिंह रणदिवे (अंग्रेज़ी: Kamal Jayasing Ranadive, जन्म- 8 नवम्बर, 1917; मृत्यु- 11 अप्रॅल, 2001) प्रसिद्ध भारतीय महिला चिकित्सक थीं। भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए यूं तो बहुत सी महिलाओं का योगदान है, लेकिन डॉ। कमल रणदिवे का नाम कुछ विशेष है। डॉ। कमल रणदिवे ने अपनी व्यवसायिक सफलता को भारतीय महिलाओं की समानता के लिए विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में लगाने का काम किया। भारतीय जैव चिकित्सकीय शोधकर्ता के रूप में उन्होंने कैंसर के इलाज के लिए उल्लेखनीय कार्य किया। कमल रणदिवे भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की संस्थापक सदस्य थीं। उनके चिकित्सा में उल्लेखनीय शोधकार्य के लिए उन्हें 'पद्म भूषण' सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
परिचय
डॉ। कमल रणदिवे का जन्म 8 नवंबर, 1917 को पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता दिनकर दत्तात्रेय समर्थ बायोलॉजिस्ट थे और पूणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ाया करते थे। पिता ने उनकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया और कमल खुद पढ़ाई में बहुत कुशाग्र थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में हुजूरपागा के गर्ल्स स्कूल में हुई थी।[1]
चिकित्सा की जगह जीवविज्ञान
कमल रणदिवे के पिता चाहते थे कि वे चिकित्सा के क्षेत्र में पढ़ाई करें और उनकी शादी एक डॉक्टर से हो, लेकिन कमल ने फर्ग्यूसन कॉलेज में ही जीवविज्ञान के लिए बीएससी की पढाई डिस्टिंक्शन के साथ पूरी की। इसके बाद उन्होंने पूणे के कृषि कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने जेटी रणदिवे से विवाह किया जो पेशे से गणितज्ञ थे जिन्होंने उनकी पोस्ट ग्रोजुएशन की पढ़ाई में बहुत सहायता की थी।
पीएचडी
उत्तरोस्नातक में कमल रणदिवे का विषय साइनोजेनिक्टस ऑफ एनोकाके था जो साइटोलॉजी की एक शाखा है। साइटोलॉजी उनके पिता का भी विषय था। विवाह के बाद कमल मुंबई आ गईं जहां उन्होंने टाटा मेमरियल हॉस्पिटल में काम शुरू कर दिया और बांबे यूनिवर्सिटी में पीएचडी की पढ़ाई भी करने लगीं।
टिशू कल्चर तकनीक पर काम
पीएचडी पूरी करने के बाद डॉ। कमल रणदिवे ने पोस्ट डॉक्टरल शोध के लिए टीशू कल्चर तकनीक पर बाल्टोर की जान हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के जॉर्ज गे की लैब में टीशू कल्चर तकनीक पर काम किया और भारत आकर भारतीय कैंसर रिसर्च सैंटर से जुड़ कर अपने प्रोफेशनल करियर शुरू किया। उन्होंने मुंबई में एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी लैबोरेटरी और टिशू कल्चर लैबोरेटरी की स्थापना में अहम योगदान दिया।[1]
शोध कार्य
सन 1966 से लेकर 1970 के बीच में कमल रणदिवे भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र के निदेशक रहीं। यहीं उन्होंने टिशू कल्चर मीडिया और उससे संबंधित रिएजेंट्स विकसित किए। उन्होंने केंद्र में कार्सिजेनोसिस, सेल बायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के शोध शाखाएं खोलीं। उनकी शोध उपलब्धियों में कैंसर की पैथोफिजियोलॉजी पर शोध प्रमुख था जिससे बल्ड कैंसर, स्तन कैंस और इसोफेगल कैंसर जैसी बीमारियों के कारण पता लगाने में सहायता मिली।
महिला वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा
इसके अलावा कमल रणदिवे ने कैंसर, हारमोन और ट्यूमर वायरस के बीच संबंधों का पता लगाया। वहां कोढ़ जैसी असाध्य मानी जाने वाली बीमारी का टीका भी उनके शोध के कारण संभव हुआ जो कोढ़ के बैक्टीरिया से संबंधित था। वे कैंसर पर काम करने वाली भारतीय महिला वैज्ञानिकों के लिए बड़ी प्रेरणा बनीं।
शोधकार्य के अलावा डॉ। कमल रणदिवे ने महाराष्ट्र के अहमदनगर में जनजातीय बच्चों के पोषण स्थिति से संबंधित आंकड़ों को जमा करने का का भी किया। इसके साथ उन्होंने वहां राजपुर और अहमदनगर की ग्रामीण महिलाओं को भी सरकारी परियोजनाओं के जरिए भारतीय महिला संघ के तहत चिकित्सकीय और स्वास्थ्य सहायता प्रदान की। 1982 में उन्हें 'पद्म भूषण' से भी सम्मानित किया गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 जानए कौन हैं कमल रणदिवे जिनके लिए गूगल ने बनाया है डूडल (हिंदी) hindi.news18.com। अभिगमन तिथि: 08 नवंबर, 2021।