"अलंकार": अवतरणों में अंतर
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जिस रचना में व्यंजन वर्णों की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। जैसे - | जिस रचना में व्यंजन वर्णों की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। | ||
यहाँ पहले पद में 'म' वर्ण की और दूसरे वर्ण में 'स' वर्ण की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। इसके निम्न भेद है:- | *जैसे - मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सुमंत्र बुलाए। | ||
*यहाँ पहले पद में 'म' वर्ण की और दूसरे वर्ण में 'स' वर्ण की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। इसके निम्न भेद है:- | |||
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जहाँ स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है। जैसे : | जहाँ स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है। | ||
यहाँ 'रीझि-रीझि', 'रहसि-रहसि', 'हँसि-हँसि', और 'दई-दई' में छेकानुप्रास है, क्योंकि व्यंजन वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है। | *जैसे : रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै<br /> साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई। | ||
*यहाँ 'रीझि-रीझि', 'रहसि-रहसि', 'हँसि-हँसि', और 'दई-दई' में छेकानुप्रास है, क्योंकि व्यंजन वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है। | |||
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जहाँ एक [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] की आवृत्ति एक या अनेक बार हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास होता है। जैसे : | जहाँ एक [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] की आवृत्ति एक या अनेक बार हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास होता है। | ||
यहाँ 'स' वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है। | *जैसे : सपने सुनहले मन भाये। | ||
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जब एक [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो, तो वहाँ 'लाटानुप्रास' होता है। जैसे : | जब एक [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो, तो वहाँ 'लाटानुप्रास' होता है। | ||
इन दो पंक्तियों में शब्द प्रायः एक से हैं और अर्थ भी एक ही हैं। अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है। | *जैसे : तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ, <br /> तेगबबादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ। | ||
*इन दो पंक्तियों में शब्द प्रायः एक से हैं और अर्थ भी एक ही हैं। अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है। | |||
====<u>यमक</u>==== | ====<u>यमक</u>==== | ||
जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है। जैसे : | जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है। | ||
यहाँ 'घटा' शब्द की अवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'घटा' शब्द 'वर्षाकाल' में उड़ने वाली 'मेघमाला' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार 'घटा' का अर्थ है 'कम हुआ'। अतः यहाँ यमक अलंकार है। | *जैसे : काली घटा का घमण्ड घटा। | ||
*यहाँ 'घटा' शब्द की अवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'घटा' शब्द 'वर्षाकाल' में उड़ने वाली 'मेघमाला' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार 'घटा' का अर्थ है 'कम हुआ'। अतः यहाँ यमक अलंकार है। | |||
====<u>श्लेष</u>==== | ====<u>श्लेष</u>==== | ||
जहाँ किसी शब्द का अनेक अर्थों में एक ही बार प्रयोग हो, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। जैसे : | जहाँ किसी शब्द का अनेक अर्थों में एक ही बार प्रयोग हो, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। | ||
यहाँ 'कलियाँ' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किन्तु इसमें अर्थ की भिन्नता है। | *जैसे : मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ। | ||
*खिलने से पूर्व फूल की दशा | *यहाँ 'कलियाँ' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किन्तु इसमें अर्थ की भिन्नता है। | ||
*यौवन पूर्व की अवस्था | **खिलने से पूर्व फूल की दशा | ||
**यौवन पूर्व की अवस्था | |||
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जहाँ शब्दों के अर्थ से चमत्कार स्पष्ट हो, वहाँ अर्थालंकार माना जाता है। इसके निम्न भेद हैं:- | जहाँ शब्दों के अर्थ से चमत्कार स्पष्ट हो, वहाँ अर्थालंकार माना जाता है। इसके निम्न भेद हैं:- | ||
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'''उपमान''' - जिससे उपमा दी जाए।<br /> | '''उपमान''' - जिससे उपमा दी जाए।<br /> | ||
'''साधारण धर्म''' - उपमेय तथा उपमान में पाया जाने वाला परम्पर समान गुण।<br /> | '''साधारण धर्म''' - उपमेय तथा उपमान में पाया जाने वाला परम्पर समान गुण।<br /> | ||
'''वाचक शब्द''' - उपमेय और उपमान में समानता प्रकट करने वाला शब्द जैसे - ज्यों, सम, सा, सी, तुल्य, नाई। उदाहरण:- | '''वाचक शब्द''' - उपमेय और उपमान में समानता प्रकट करने वाला शब्द जैसे - ज्यों, सम, सा, सी, तुल्य, नाई। | ||
उदाहरण:- नवल सुन्दर श्याम-शरीर की, सजल नीरद-सी कल कान्ति थी। | |||
इस उदहारण का विश्लेषण इस प्रकार होगा। कान्ति - उपमेय, नीरद - उपमान, कल - साधारण धर्म, सी - वाचक शब्द | इस उदहारण का विश्लेषण इस प्रकार होगा। कान्ति - उपमेय, नीरद - उपमान, कल - साधारण धर्म, सी - वाचक शब्द | ||
====<u>रूपक</u>==== | ====<u>रूपक</u>==== | ||
जहाँ गुण की अत्यन्त समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोपन हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है। जैसे : | जहाँ गुण की अत्यन्त समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोपन हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है। | ||
यहाँ [[चन्द्रमा]] (उपमेय) में खिलौना (उपमान) का आरोप होने से रूपक अलंकार होता है। | *जैसे : मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों। | ||
*यहाँ [[चन्द्रमा]] (उपमेय) में खिलौना (उपमान) का आरोप होने से रूपक अलंकार होता है। | |||
====<u>उत्प्रेक्षा</u>==== | ====<u>उत्प्रेक्षा</u>==== | ||
जहाँ समानता के कारण उपमेय में संभावना या कल्पना की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु आदि इसके बोधक शब्द हैं। जैसे : | जहाँ समानता के कारण उपमेय में संभावना या कल्पना की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु आदि इसके बोधक शब्द हैं। | ||
यहाँ उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस-कण युक्त पंकज (उपमान) की संभावना की गई है। | *जैसे : कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। <br />हिम के कर्णों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए॥ | ||
*यहाँ उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस-कण युक्त पंकज (उपमान) की संभावना की गई है। | |||
====<u>उपमेयोपमा</u>==== | ====<u>उपमेयोपमा</u>==== | ||
उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की प्रक्रिया को उपमेयोपमा कहते हैं। | उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की प्रक्रिया को उपमेयोपमा कहते हैं। | ||
====<u>अतिशयोक्ति</u>==== | ====<u>अतिशयोक्ति</u>==== | ||
जहाँ उपमेय का वर्णन लोक सीमा से बढ़कर किया जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे : | जहाँ उपमेय का वर्णन लोक सीमा से बढ़कर किया जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। | ||
यहाँ सोचने की क्रिया की पूर्ति होने से पहले ही घड़ी का नदी के पार पहुँचना लोक-सीमा का अतिक्रमण है, अतः अतोशयोक्ति अलंकार है। | *जैसे : आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार। <br />राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार। | ||
*यहाँ सोचने की क्रिया की पूर्ति होने से पहले ही घड़ी का नदी के पार पहुँचना लोक-सीमा का अतिक्रमण है, अतः अतोशयोक्ति अलंकार है। | |||
====<u>उल्लेख</u>==== | ====<u>उल्लेख</u>==== | ||
जहाँ एक वस्तु का वर्णन अनेक प्रकार से किया जाए, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है। जैसे : | जहाँ एक वस्तु का वर्णन अनेक प्रकार से किया जाए, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है। | ||
*जैसे : तू रूप है किरण में, सौन्दर्य है सुमन में, <br /> तू प्राण है किरण में, विस्तार है गगन में। | |||
====<u>विरोधाभास</u>==== | ====<u>विरोधाभास</u>==== | ||
जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास दिया जाए, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे : | जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास दिया जाए, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। | ||
यहाँ 'बैन सुन्य' और 'सुनत न बैन' में विरोध दिखाई पड़ता है जबकि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं है। | *जैसे : बैन सुन्य जबतें मधुर, तबतें सुनत न बैन। | ||
*यहाँ 'बैन सुन्य' और 'सुनत न बैन' में विरोध दिखाई पड़ता है जबकि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं है। | |||
====<u>दृष्टान्त</u>==== | ====<u>दृष्टान्त</u>==== | ||
जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो, दृष्टान्त अलंकार होता है। जैसे : | जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो, दृष्टान्त अलंकार होता है। | ||
यहाँ सुख-दुख और शशि तथा घन में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है। | *जैसे : सुख-दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन। <br /> फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो घन। | ||
*यहाँ सुख-दुख और शशि तथा घन में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है। | |||
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05:13, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण
काव्य में भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले चमत्कारपूर्ण मनोरंजन ढंग को अलंकार कहते हैं। अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, 'आभूषण'। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य की।
- संस्कृत के अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य दण्डी के शब्दों में 'काव्य' शोभाकरान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते' - काव्य के शोभाकारक धर्म (गुण) अलंकार कहलाते हैं।
- हिन्दी के कवि केशवदास एक अलंकारवादी हैं।
भेद
अलंकार को दो भागों में विभाजित किया गया है:-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
1.शब्दालंकार
जहाँ शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य में वृद्धि होती है और काव्य में चमत्कार आ जाता है, वहाँ शब्दालंकार माना जाता है। इसके निम्न भेद हैं:-
अनुप्रास
जिस रचना में व्यंजन वर्णों की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
- जैसे - मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सुमंत्र बुलाए।
- यहाँ पहले पद में 'म' वर्ण की और दूसरे वर्ण में 'स' वर्ण की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। इसके निम्न भेद है:-
- छेकानुप्रास
जहाँ स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है।
- जैसे : रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई। - यहाँ 'रीझि-रीझि', 'रहसि-रहसि', 'हँसि-हँसि', और 'दई-दई' में छेकानुप्रास है, क्योंकि व्यंजन वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है।
- वृत्त्यनुप्रास
जहाँ एक व्यंजन की आवृत्ति एक या अनेक बार हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास होता है।
- जैसे : सपने सुनहले मन भाये।
- यहाँ 'स' वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है।
- लाटानुप्रास
जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो, तो वहाँ 'लाटानुप्रास' होता है।
- जैसे : तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबबादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ। - इन दो पंक्तियों में शब्द प्रायः एक से हैं और अर्थ भी एक ही हैं। अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।
यमक
जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है।
- जैसे : काली घटा का घमण्ड घटा।
- यहाँ 'घटा' शब्द की अवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'घटा' शब्द 'वर्षाकाल' में उड़ने वाली 'मेघमाला' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार 'घटा' का अर्थ है 'कम हुआ'। अतः यहाँ यमक अलंकार है।
श्लेष
जहाँ किसी शब्द का अनेक अर्थों में एक ही बार प्रयोग हो, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
- जैसे : मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
- यहाँ 'कलियाँ' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किन्तु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
- खिलने से पूर्व फूल की दशा
- यौवन पूर्व की अवस्था
2.अर्थालंकार
जहाँ शब्दों के अर्थ से चमत्कार स्पष्ट हो, वहाँ अर्थालंकार माना जाता है। इसके निम्न भेद हैं:-
उपमा
जहाँ एक वस्तु या प्राणी की तुलना अत्यंत सादृश्य के कारण प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। अपमा अलंकार के चार तत्व होते हैं :-
उपमेय - जिसकी अपमा दी जाए अर्थात जिसका वर्णन हो रहा है।
उपमान - जिससे उपमा दी जाए।
साधारण धर्म - उपमेय तथा उपमान में पाया जाने वाला परम्पर समान गुण।
वाचक शब्द - उपमेय और उपमान में समानता प्रकट करने वाला शब्द जैसे - ज्यों, सम, सा, सी, तुल्य, नाई।
उदाहरण:- नवल सुन्दर श्याम-शरीर की, सजल नीरद-सी कल कान्ति थी।
इस उदहारण का विश्लेषण इस प्रकार होगा। कान्ति - उपमेय, नीरद - उपमान, कल - साधारण धर्म, सी - वाचक शब्द
रूपक
जहाँ गुण की अत्यन्त समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोपन हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
- जैसे : मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।
- यहाँ चन्द्रमा (उपमेय) में खिलौना (उपमान) का आरोप होने से रूपक अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा
जहाँ समानता के कारण उपमेय में संभावना या कल्पना की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु आदि इसके बोधक शब्द हैं।
- जैसे : कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कर्णों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए॥ - यहाँ उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस-कण युक्त पंकज (उपमान) की संभावना की गई है।
उपमेयोपमा
उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की प्रक्रिया को उपमेयोपमा कहते हैं।
अतिशयोक्ति
जहाँ उपमेय का वर्णन लोक सीमा से बढ़कर किया जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
- जैसे : आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार। - यहाँ सोचने की क्रिया की पूर्ति होने से पहले ही घड़ी का नदी के पार पहुँचना लोक-सीमा का अतिक्रमण है, अतः अतोशयोक्ति अलंकार है।
उल्लेख
जहाँ एक वस्तु का वर्णन अनेक प्रकार से किया जाए, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है।
- जैसे : तू रूप है किरण में, सौन्दर्य है सुमन में,
तू प्राण है किरण में, विस्तार है गगन में।
विरोधाभास
जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास दिया जाए, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।
- जैसे : बैन सुन्य जबतें मधुर, तबतें सुनत न बैन।
- यहाँ 'बैन सुन्य' और 'सुनत न बैन' में विरोध दिखाई पड़ता है जबकि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं है।
दृष्टान्त
जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो, दृष्टान्त अलंकार होता है।
- जैसे : सुख-दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन।
फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो घन। - यहाँ सुख-दुख और शशि तथा घन में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है।
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