संगीत नाटक अकादमी
संगीत नाटक अकादमी संगीत, नृत्य और नाटक की राष्ट्रीय अकादमी है जिसे आधुनिक भारत को निर्माण प्रक्रिया में प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में याद किया जा सकता है, जिससे भारत को 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। कलाओं के क्षणिक गुण-स्वभाव तथा उनके संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए इन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार समाहित हो जाना चाहिए कि सामान्य व्यक्ति को इन्हें सीखने, अभ्यास करने और बढ़ाने का अवसर प्राप्त हो सके। बीसवीं सदी के शुरू के कुछ दशकों में ही कलाओं के संरक्षण और विकास का दायित्व सरकार का समझा जाने लगा था।
पारित प्रस्ताव
इस आशय की पहली व्यापक सार्वजनिक अपील 1945 में सरकार से की गई जब बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि एक राष्ट्रीय संस्कृति न्यास (नेशलन कल्चरल ट्रस्ट) बनाया जाए जिससे निम्न् तीन अकादमियां सम्मिलित हों।–
- नृत्य, नाटक एवं संगीत अकादमी
- साहित्य अकादमी और
- कला एवं वास्तुकला अकादमी
इस समूचे मुद्दे पर स्वतंत्रता के पश्चात कोलकाता में 1949 में आयोजित कला सम्मेलन में तथा नई दिल्ली में 1951 में आयोजित साहित्य सम्मेलन तथा नृत्य, नाटक व संगीत सम्मेलन में फिर से विचार किया गया। भारत सरकार द्वारा आयोजित इन सम्मेलनों में अंततः तीन राष्ट्रीय अकादमियां स्थापित करने की सिफारिश की गई। इनमें से एक अकादमी नृत्य, नाटक और संगीत के लिए, एक साहित्य के लिए और एक कला के लिए स्थापित किए जाने का प्रस्ताव किया गया।
स्थापना
- 31 मई, 1952 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलान अबुल कलाम आज़ाद के हस्ताक्षर से पारित प्रस्ताव द्वारा सबसे पहले नृत्य, नाटक और संगीत के लिए राष्ट्रीय अकादमी के रूप में 'संगीत नाटक अकादमी' की स्थापना हुई। 28 जनवरी, 1953 को राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संगीत नाटक अकादमी का विधिवत उदघाटन किया।
- 1952 के प्रस्ताव में शामिल अकादमी के कार्यक्षेत्र और गतिविधियों में 1961 में मूलभावना के अंतर्गत ही विस्तार किया गया और सरकार ने संगीत नाटक अकादमी का समिति के रूप में पुनर्गठन किया और समिति पंजीकरण अधिनियम, 1860 (1957 में संशोधित) के अंतर्गत इसे पंजीकृत किया गया। समिति के कार्यक्षेत्र और गतिविधियां उस नियमावली में निर्धारित किए गए हैं जो 11 सितंबर, 1961 को इसके समिति के रूप में पंजीकरण के समय पारित की कई थी।
उद्देश्य
संगीत नाटक अकादमी की स्थापना संगीत, नाटक और नृत्य कलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए और उनके समग्र विकास और उन्नति के लिए की गयी। इस का कार्य विविध प्रकार के कार्यक्रमों का संचालन करना है। संगीत नाटक अकादमी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए देश में संगीत, नृत्य और नाटक की संस्थाओं को उनके विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के लिए अनुदान देती है, धन की व्यवस्था करती है, निरीक्षण, सर्वेक्षण और अनुसंधान कार्य के लिए प्रोत्साहित करती है। संगीत, नृत्य और नाटक के प्रशिक्षण के लिए संस्थाओं को वार्षिक आर्थिक सहायता प्रदान करती है; विमर्शगोष्ठी, संगोष्ठी और समारोहों का संगठन और संचालन करती है, साथ ही इन विषयों से संबंधित पुस्तकों के प्रकाशन की व्यवस्था करती है। प्रकाशन के लिए आर्थिक सहायता भी देती है।
संगठन और व्यवस्था
अकादमी अपनी स्थापना के बाद से ही भारत में संगीत, नृत्य और नाटक के उन्नयन में सहायता के लिए एकीकृत ढांचा कायम करने में जुटी है। यह सहायता परंपरागत और आधुनिक शैलियों तथा शहरी और ग्रामीण परिवेशों के लिए समान रूप से दिया जाता है। अकादमी द्वारा प्रस्तुत अथवा प्रायोजित संगीत, नृत्य एवं नाटक समारोह समूचे देश में आयोजित किए जाते हैं। विभिन्न कला-विधाऔं के महान कलाकारों को अकादमी का अध्येता चुनकर सम्मानित किया गया है। प्रतिवर्ष जाने-माने कलाकारों और विद्धानों को दिए जाने वाले संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मंचन कलाओं के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठित सम्मान माने जाते हैं। दूर-दराज क्षेत्रों सहित देश के विभिन्न भागों में संगीत, नृत्य और रंगमंच के प्रशिक्षण और प्रोत्साहन में लगे हज़ारों संस्थानों को अकादमी की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है और विभिन्न संबद्ध विषयों के शोधकर्ताओं, लेखकों तथा प्रकाशकों को भी आर्थिक सहायता दी जाती है।
संगीत नाटक अकादमी की एक महापरिषद है जिसमें 48 सदस्य होते हैं। इनमें से 5 सदस्य भारत सरकार द्वारा मनोनीत किये जाते हैं -
- एक शिक्षा मंत्रालय का प्रतिनिधि,
- एक सूचना और प्रसारण मंत्रालय का प्रतिनिधि,
- भारत सरकार द्वारा नियुक्त वित्त सलाहकार (पदेन),
- 1-1 मनोनीत सदस्य प्रत्येक राज्य सरकार का,
- 2-2 प्रतिनिधि ललित कला अकादमी और साहित्य अकादमी के होते हैं। इस प्रकार मनोनीत ये 28 सदस्य एक बैठक में 20 अन्य सदस्यों का चुनाव करते हैं। ये व्यक्ति संगीत, नृत्य और नाटक के क्षेत्र में विख्यात कलाकार और विद्वा्नों में से होते हैं। इनका चयन करने में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि संगीत और नृत्य की विभिन्न पद्धतियों और शैलियों तथा विभिन्न क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिल सके। इस प्रकार गठित महापरिषद् कार्यकारिणी का चुनाव करती है जिसमें 15 सदस्य होते हैं। सभापति का मनोनयन शिक्षा मंत्रालय की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। उपसभापति का चुनाव महापरिषद करती है। सचिव का पद वैतनिक होता है और सचिव की नियुक्ति कार्यकारिणी करती है।
कार्यकारिणी कार्य के संचालन के लिए अन्य समितियों का गठन करती है, जैसे वित्त समिति, अनुदान समिति, प्रकाशन समिति आदि। अकादमी के संविधान के अधीन सभी अधिकार सभापति को प्राप्त होते हैं। महापरिषद, कार्यकारिणी तथा सभापति सभी का कार्यकाल पाँच वर्ष के लिए होता है।
- अकादमी के सबसे पहले सभापति श्री पी.वी. राजमन्नार बने थे।
- दूसरे सभापति मैसूर के महाराजा श्री जयचामराज वडयर बने थे।
संकलित सामग्री
अकादमी द्वारा अपनी स्थापना के बाद की गई मंचन कलाऔं की व्यापक रिकार्डिंग और फिल्मिंग के आधार पर ऑडियो-वीडियो टेपों, 16 मि. मी. फ़िल्मों, चित्रों और ट्रांसपेरेंसियों का एक बड़ा अभिलेखागार बन गया है। जो मंचन कलाऔं के बारे में शोधकर्ताओं के लिए देश का अकेला सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
प्रकाशन
अकादमी की संगीत वाद्ययत्रों की वीधि में 600 से अधिक वाद्ययंत्र रखे हैं और इन वाद्ययंत्रों में बड़ी मात्रा में प्रकाशित सामग्री का भी यह स्रोत रही है। संगीत नाटक अकादमी का पुस्तकालय भी इन विषयों के लेखकों, विद्यार्थियों और शोधकर्ताऔं के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अकादमी 1965 से एक पत्रिका ' संगीत नाटक ' नाम से निकाल रही है। जो अपने क्षेत्र और विषय की सबसे ज़्यादा अवधि से निकलने वाली पत्रिका कही जा सकती है और इसमें जाने-माने लेखकों के साथ-साथ उभरते नए लेखकों की रचनाएं भी प्रकाशित की जाती हैं।
राष्ट्रीय संस्थान और परियोजनाएँ
- अकादमी मंचन कलाओं के क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और परियोजनाऔं की स्थापना एवं देखरेख भी करती है।
- इनमें सबसे पहला संस्थान है- इंफाल की जवाहर लाल नेहरू मणिपुरी नृत्य अकादमी। जिसकी स्थापना 1954 में की गई थी। यह मणिपुरी नृत्य का अग्रणी संस्थान है।
- 1959 में अकादमी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना की और 1964 में कत्थक केन्द्र स्थापित किया। ये दोनों संस्थान दिल्ली में हैं। *अकादमी द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाऔं में केरल का कुटियट्टम थियेटर है जो 1991 में शुरू हुआ था और 2001 में इसे यूनेस्को की ओर से मानवता की उल्लेखनीय धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त की गई।
- 1994 में उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में छाऊ नृत्य परियोजना आरंम्भ की गई।
- 2002 में असम के सत्रिय संगीत, नृत्य, नाटक और संबद्ध कलाऔं के लिए परियोजना समर्थन शुरू किया गया।
परामर्शदात्री और सहायक संस्था
मंचन कलाऔं की शीर्षस्थ संस्था होने के कारण अकादमी भारत सरकार को इन क्षेत्रों में नीतियां तैयार करने और उन्हें क्रियान्वित करने में परामर्श और सहायता उपलब्ध कराती है। इसके अतिरिक्त अकादमी भारत के विभिन्न क्षेत्रों के बीच तथा अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संपर्कों के विकास और विस्तार के लिए राज्य की जिम्मेदारियों को भी एक हद तक पूरा करती है। अकादमी ने अनेक देशों में प्रदर्शनियों और बड़े समारोहों-उत्सवों का आयोजन किया है। अकादमी ने हांगकांग, रोम, मास्को, एथेंस, बल्लाडोलिड, काहिरा और ताशकंद तथा स्पेन में प्रदर्शनियां तथा गोष्ठियां आयोजित की हैं। अकादमी ने जापान, जर्मनी और रूस जैसे देशों के प्रमुख उत्सवों को प्रस्तुत किया है।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा पोषित
वर्तमान में संगीत नाटक अकादमी भारत सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत संस्था है और इसकी योजनाऔं तथा कार्यक्रमों को लागू करने के लिए पूरी तरह से मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित है।
समाचार
बुधवार, 29 सितंबर, 2010
राष्ट्रपति ने प्रदान किए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने मंगलवार को एक विशेष समारोह के दौरान वर्ष 2009 के लिए प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और अकादमी पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर राज्यमंत्री (प्रधानमंत्री कार्यालय) पृथ्वीराज चव्हाण ने प्रधानमंत्री की ओर से उनका प्रतिनिधित्व किया। चाव्हाण संस्कृति मंत्री भी हैं। पाटिल ने वायलिन वादक लालगुडी जयरमन, थियेटर अभिनेता श्रीराम लागू, भरतनाट्यम नृत्यांगना यामिनी कृष्णामूर्ति, संस्कृत थियेटर के विद्वान कमलेश दत्त त्रिपाठी के साथ-साथ हिंदुस्तानी गायक किशोरी अमोलकर और पंडित जसराज को अकादमी का फेलो होने पर अपनी शुभकामनाएं दीं...
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