जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क
जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क दिल्ली से 240 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। उत्तराखण्ड के नैनीताल के पास हिमालय की पहाड़ियों पर स्थित इस राष्ट्रीय पार्क ने 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं। विविध प्रजातियों के वन्यजीवों और वनस्पतियों के लिए प्रसिद्ध यह पार्क अब ऑनलाइन हो गया है। जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क का प्राकृतिक सौंदर्य अपूर्व है। वनाच्छादित पहाड़ियों और घाटियों के मध्य से रामगंगा कल-कल निनाद करती हुई बहती है। कभी-कभी इसके तट पर घड़ियाल भी देखे जाते हैं। जंगलों में हाथी, चीता, तेंदुआ, साँभर और यदा-कदा काले भालू भी प्राकृतिक सौन्दर्य को बड़ा देते हैं।
इतिहास
इस पार्क का इतिहास काफ़ी समृद्ध है। कभी यह पार्क टिहरी गढ़वाल के शासकों की निजी सम्पत्ति हुआ करता था। गोरखा आन्दोलन के दौरान 1820 ई. के आसपास राज्य के इस हिस्से को ब्रिटिश शासकों को उसके सहयोग के लिए सौंप दिया गया था। अंग्रेज़ों ने इस पार्क का लकड़ी के लिए काफ़ी दोहन किया और रेलगाड़ियों की सीटों के लिए टीक के पेड़ों को भारी संख्या में काटा। पहली बार मेजर रैमसेई ने इसके संरक्षण की व्यापक योजना तैयार की। 1879 में वन विभाग ने इसे अपने अधिकार में ले लिया और संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया। 1934 में संयुक्त प्रान्त के गवर्नर मैलकम हैली ने इस संरक्षित वन को जैविक उद्यान घोषित कर दिया। क़रीब 325 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पार्क को 1936 में गवर्नर मैलकम हैली के नाम पर 'हैली नेशनल पार्क' का नाम दिया गया था। यह भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पार्क बना।
नामकरण
'जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क' से होकर रामगंगा नदी बहती है। आज़ादी के बाद इस पार्क का नाम इसी नदी के नाम पर 'रामगंगा राष्ट्रीय पार्क' रखा गया था, लेकिन 1957 में पार्क का नाम 'जिम कार्बेट नेशनल पार्क' कर दिया गया। जिस जिम कार्बेट के नाम पर पार्क का नामकरण किया गया, वह एक शिकारी था, लेकिन पर्यावरण में उसकी काफ़ी दिलचस्पी थी और उसने इस पार्क को विकसित करने में काफ़ी सहयोग दिया था।
जैव विविधता
भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अधीन आने वाला यह पार्क देश का पहला राष्ट्रीय पार्क है। बाघों की घटती संख्या पर रोक लगाने के उद्देश्य से 1973 में इसे 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अधीन लाया गया। बाघ, तेंदुआ और हाथियों की संख्या के कारण यह पार्क दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहाँ पक्षियों की 600 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
सम्पर्क
इस राष्ट्रीय पार्क तक पहुँचने के लिए दो रेलवे स्टेशन है- रामनगर और हलद्वानी। रामनगर से 'धिकाला'[1] के लिए 47 किमी. की पक्की सड़क है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पार्क का मुख्य विश्राम गृह
बाहरी कड़ियाँ
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